विंध्य में इतिहास बनाने की बात फिलहाल एक सवाल है…?

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विंध्य में इतिहास बनाने की बात फिलहाल एक सवाल है…?

विंध्य में 2023 के विधानसभा चुनाव में कौन सा राजनैतिक दल इतिहास बनाएगा, इसके बारे में फिलहाल घोषणा करना जल्दबाजी होगी। यह बात खुले मन से स्वीकार करना पड़ेगी कि मध्यप्रदेश में 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक था। तब महाकौशल में कमलनाथ के प्रभाव में कांग्रेस ने इतिहास रचा था और तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस ने इतिहास बनाया था। आदिवासी क्षेत्र में भी विंध्य को छोड़कर कांग्रेस को बढ़त मिली थी। मालवा-निमाड़, बुंदेलखंड और भोपाल संभाग में भी मिश्रित परिणाम कांग्रेस को ऊर्जा देने वाले थे। यदि किसी क्षेत्र में क्लीन स्वीप की वजह से कांग्रेस बैकफुट पर आई थी, तो वह विंध्य प्रदेश था। जिसमें तब कांग्रेस में कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह विंध्य में प्रमुख चेहरा था, तो वह अजय सिंह राहुल भैया का। और उन्हें भी अपनी परंपरागत चुरहट विधानसभा सीट गंवानी पड़ी थी। वैसे 2003 के बाद के विधानसभा चुनाव परिणामों पर यदि नजर डालें तो विंध्य में कांग्रेस कभी भी इतिहास नहीं बना पाई है। और स्थितियां वर्तमान सरकार के कितनी भी विपरीत नजर आएं और पूर्व नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल भैया अपनी जीत सुनिश्चित कर लें…तब भी इतिहास बनाने का दावा फिलहाल सतही ही माना जाएगा, जब तक कि सभी दलों के चेहरे आमने-सामने खड़े होकर विंध्य के मतदाताओं की पारखी नजर में अपनी-अपनी अहमियत साबित नहीं करते। क्योंकि विंध्य में मतदाता का मूड समझ पाना इतना सहज और सरल कतई नहीं है।
वैसे 2003 से पहले यानि 1998 में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब विंध्य में कांग्रेस को 15 सीटें हासिल हुई थीं। विंध्य की 28 विधानसभा सीट में से 15 सीट हासिल करने को भी इतिहास नहीं कहा जा सकता। इसके बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस चार सीटों पर सिमट गई थी। 2008 में परिसीमन के बाद विंध्य में विधानसभा सीटों की संख्या तीस हो गई है। फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस केवल दो सीटों तक सिमट गई थी।‌ वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दो अंकों में ग्यारह सीटें मिली थीं।‌ यह 21 वी सदी में मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मिली सर्वाधिक सीटें थीं। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में जब पंद्रह साल की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी जोर मार रही थी, तब अगर कांग्रेस को पूरी तरह से नकार कर और भाजपा पर पूरी तरह से भरोसा जताकर इतिहास रचा था…तो विंध्य प्रदेश ने। और तब कांग्रेस को विंध्य में गिनी-चुनी सीटें मिली थीं। उपचुनाव में रैगांव सीट पर कांग्रेस को जीत मिली, तब जाकर फिलहाल विंध्य में भाजपा की 24 सीट और कांग्रेस की छह सीट‌ हैं।
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विंध्य क्षेत्र में पिछले पांच विधानसभा चुनाव का आकलन यह बता रहा है कि क्षेत्र के मतदाताओं का मन आसानी‌ से कांग्रेस के इतिहास बनाने तक पसीज‌ जाएगा, यह बहुत आसान नहीं है।‌ कांग्रेस के लिए इतिहास बनना तो तब ही माना जा सकता है, जब यहां की 30 विधानसभा सीट में भाजपा दो-चार सीट पर सिमट जाए। और पिछले पांच विधानसभा चुनाव यह बयां कर रहे हैं कि ऐसे दावों का कोई आधार नहीं है। क्योंकि मतदाताओं ने यहां बहुजन समाज पार्टी,‌ समाजवादी पार्टी,‌ राष्ट्रीय समानता दल, कम्युनिस्ट पार्टी और निर्दलीय सबको सीमित स्थानों पर अलग-अलग समय पर संतुष्ट होने की मोहलत दी, लेकिन कम से कम पिछले पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एकतरफा समर्थन नहीं दिया। ऐसे में वर्तमान में जब चुनाव भविष्यवाणी करने के लिहाज से बहुत दूर है, तब यही कहा जा सकता है कि विंध्य में इतिहास बनाने की बात फिलहाल में तो एक सवाल है…?