
Bihar Election का सबसे रोचक तथ्य: सत्ता वही, स्टाइल बदला- नीतीश की राजनीति अब भाजपा की फ्रेम में फिट
– राजेश जयंत
बिहार की राजनीति में इस बार एक ऐसा दृश्य बना है जो पहले कभी नहीं देखा गया। नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि उनका राजनीतिक कंपास हवा देखकर तुरंत दिशा बदल लेता है। लेकिन इस चुनाव के बाद पहली बार हालत ऐसी है कि हवा चले या तूफान आए, करवट बदलने की जगह ही नहीं बची। भाजपा ने गठबंधन की संरचना को इस तरह पैक कर दिया है कि न खिडकी खुल रही है, न दरवाजा। राजनीतिक गलियारों में चुटकी लेते हुए लोग कह रहे हैं कि अब चाहे नीतीश की पीठ दुखे या मन ऊब जाए, करवट वही रहेगी जो भाजपा चाहेगी। यह बात सुनने में हल्की लग सकती है, लेकिन इसके भीतर बिहार की राजनीति का बहुत बड़ा संकेत छिपा है- खेल बदल गया है और बारी-बारी बदलने की पुरानी राजनीति अब इतिहास बनने जा रही है।

▪️भाजपा का पॉलिटिकल लॉक: हर संभावित दरवाजा बंद
▫️भाजपा ने इस बार गठबंधन की राजनीति में जो ढांचा खड़ा किया है, वह नीतीश के लिए किसी सुरंग से कम नहीं है। सीट वितरण, नेतृत्व की स्थिति, निर्णय प्रक्रिया और चुनावी प्रबंधन सब कुछ भाजपा ने अपने हाथ में लेकर ऐसा माहौल बनाया कि पलटने के रास्ते अपने आप बंद होते चले गए। गठबंधन सिर्फ राजनीतिक समझौता नहीं रहा, यह अब एक कंट्रोल्ड स्ट्रक्चर बन चुका है जिसमें फैसलों की चाबी पूरी तरह भाजपा की जेब में है। नीतीश पहले की तरह अचानक रास्ता बदलकर किसी नए समीकरण में चले जाएं, यह गुंजाइश लगभग खत्म हो चुकी है।

▪️जनता की मुस्कान और बिहार की व्यंग्य राजनीति
▫️चाय की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक एक लाइन खूब घूम रही है- “अब चाहकर भी नीतीश पलट नहीं पाएंगे, चाहे मन करे या मौका मिले।” लोग इसे मजाक में कह रहे हैं लेकिन इसमें राजनीतिक सत्य कूट-कूटकर भरा है। बिहार की आम जनता अब पहली बार यह महसूस कर रही है कि नीतीश के पास वैसा राजनीतिक ‘फ्री पास’ नहीं बचा जैसा पहले हुआ करता था।

▪️महागठबंधन की बेचैनी: रणनीतियां धरी की धरी रह गईं
▫️महागठबंधन के नेताओं के चेहरे वाले भाव सबसे ज्यादा समझने लायक हैं। वे जानते हैं कि उनकी सबसे बड़ी उम्मीद हमेशा यह रही कि किसी नाजुक मौके पर नीतीश का रुख बदल जाएगा और समीकरण पलट जाएगा। लेकिन इस बार चुनाव के बाद उनका यह भरोसा सीधे जमीन में धंस गया है। भाजपा के सख्त मैकेनिज्म ने विपक्ष का यह कार्ड बेअसर कर दिया है।

▪️नीतीश के राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा मोड़
▫️दस बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले नेता के सामने यह अनोखी स्थिति है। उनकी पूरी राजनीति लचीलापन, विकल्प और समीकरण बदलने की क्षमता पर टिकी रही। लेकिन इस बार वे इतिहास के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां उनकी शक्ति संरचना सीमित हो गई है। यह केवल चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि एक युग-परिवर्तन जैसा है। अब राजनीतिक व्याख्याकार इसे नीतीश के करियर का निर्णायक क्षण मान रहे हैं क्योंकि पहली बार उनके पास विकल्पों का झोला खाली दिख रहा है।

▪️वोटर का निर्णय: स्थिरता बनाम अनिश्चितता
▫️मतदाता ने भी स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह स्थिरता चाहता है, न कि हर दो साल में बनने-बिगड़ने वाले गठबंधन। जनादेश में यह बात साफ दिखी कि लोग भरोसे वाले नेतृत्व और स्थिर गठबंधन को प्राथमिकता दे रहे हैं।

▪️राजनीतिक व्यंग्य के पीछे गंभीर संकेत
▫️राजनीति में भले मजाक उड़ता रहे कि “अब करवट नहीं बदल पाएंगे”, लेकिन इसकी असल गंभीरता यही है कि बिहार में एक ऐसा राजनीतिक ढांचा बन चुका है जिसमें अनिश्चितता की गुंजाइश कम और जवाबदेही की अपेक्षा ज्यादा हो गई है। अब नीतीश चाहे भी तो पुराने अंदाज में खेल नहीं बदल पाएंगे।

▪️पलटी की राजनीति अब इतिहास
▫️बिहार के राजनीतिक इतिहास में यह घटना हमेशा दर्ज रहेगी-
नीतीश प्रधानमंत्री नहीं बने, लेकिन “पलटी” मॉडल जरूर बंद हो गया।
यह गठबंधन उनके लिए सत्ता में वापसी का रास्ता साबित हुआ, लेकिन इस बार शर्तें नई हैं और नियंत्रण भाजपा के हाथ में है। राजनीतिक खेल वही है, लेकिन अब रिमोट कंट्रोल पूरी तरह बदल चुका है।





