“सेंट्रल विस्टा” का नाम इतिहास में दर्ज हो रहा आज…

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“सेंट्रल विस्टा” का नाम इतिहास में दर्ज हो रहा आज…

विपक्षी दलों की नाराजगी और समर्थक दलों की खुशी संग आज देश के नए संसद भवन “सेंट्रल विस्टा” का नाम देश के इतिहास में दर्ज हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नए संसद भवन के लोकार्पण पर विपक्ष नाराज है। वजह यह कि राष्ट्रपति कार्यक्रम में उपस्थित नहीं रहेंगी और राष्ट्र प्रमुख संग संसदीय प्रमुख के नाते उनके हाथों नए संसद भवन को लोकार्पित नहीं करवाया जाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तानाशाही भरा रवैया है। संविधान में भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च नागरिक माना गया है। संसद की सारी शक्तियां राष्ट्रपति में समाहित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ के लिये एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों यानि लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर बनेगी। उपराष्ट्रपति का कार्यालय राष्ट्रपति के बाद दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक कार्यालय है और पूर्वता के क्रम में दूसरे स्थान पर है और राष्ट्रपति पद के उत्तराधिकार की पहली पंक्ति में है। उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति भी होता है। संवैधानिक क्रम में तीसरे स्थान पर देश का प्रधानमंत्री है, लेकिन संसद के अलग-अलग सदन में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति प्रमुख हैं। तो विपक्षी दलों के नए संसद भवन के लोकार्पण समारोह के बहिष्कार की वजह साफ है, पर विपक्षी दलों की यह आपत्ति राजनैतिक पुट भी समाहित किए हुए है। इसके बहाने से भी विपक्षी दलों को एकजुटता का एक महत्वपूर्ण अवसर तो मिला ही है। जिसे पूरी तरह से कसौटी पर परखा जा रहा है।
अब दूसरे पक्ष पर गौर करें तो लोकतंत्र का व्यावहारिक मुखिया प्रधानमंत्री ही होता है। भारत की संसदीय राजनैतिक प्रणाली में राष्ट्रप्रमुख और शासनप्रमुख के पद को पूर्णतः विभक्त रखा गया है। भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमन्त्री केंद्र सरकार के मंत्रिपरिषद का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वह भारत सरकार की कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों को लेकर संसद के प्रति जवाबदेह होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट रूप से मन्त्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमन्त्री की उपस्थिति को आवश्यक माना गया है। वह स्वेच्छा से ही मंत्रीपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मन्त्रिगण की नियुक्ति उसकी सलाह से ही करते हैं। मन्त्रियों के विभाग का निर्धारण भी वही करता है। कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है। देश के मन्त्रियों को निर्देश भी वही देता है तथा सभी कार्यकारी निर्णय भी वही लेता है। राष्ट्रपति तथा मन्त्रिपरिषद के मध्य सम्पर्क सूत्र भी वही हैं। मन्त्रिपरिषद का प्रधान प्रवक्ता भी वही है। वह सत्तापक्ष के नाम से लड़ी जाने वाली संसदीय बहसों का नेतृत्व करता है। संसद मे हो रही किसी भी बहस में वह भाग ले सकता है। संविधान, विशेष रूप से, प्रधानमन्त्री को केंद्रीय मंत्रिमण्डल पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है। इस पद के पदाधिकारी को कार्यपालिका पर दी गयी अत्यधिक नियंत्रणात्मक शक्ति, प्रधानमन्त्री को भारतीय गणराज्य का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति बनाती है। विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे बड़ी जनसंख्या, सबसे बड़े लोकतंत्र और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य बलों समेत एक परमाणु-शस्त्र संपन्न राष्ट्र के नेता होने के कारण भारतीय प्रधानमन्त्री को विश्व के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है। और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। और विश्व के सबसे बड़े राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक प्रभावशाली नेता भी हैं।2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, जिसने भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था, ने अभूतपूर्व बहुमत प्राप्त किया और नरेंद्र मोदी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया। वे पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री हैं, जो कि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर विद्यमान हुए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें और भी ज्यादा बहुमत हासिल हुआ है।नए संसद भवन के निर्माण का फैसला भी प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का ही है। और वर्तमान में संवैधानिक पदों पर आसीन विभूतियां राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भी उनके दल से जुड़े रहे नेता ही हैं। ऐसे में अगर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति खुश हैं कि देश की नई संसद का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों हो रहा है, तो एक सवाल यह भी है कि आपत्ति लेने के नाम पर ऐसे ऐतिहासिक पल का बहिष्कार करने का अधिकार क्या विपक्षी दलों को संविधान में प्रदत्त है?
विपक्षी दलों की राय है कि प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता होने के बाद भी राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति यानि उपराष्ट्रपति से क्रम में नीचे ही है। ऐसे में नए संसद भवन के देश को लोकार्पित करने के ऐतिहासिक पल का गवाह क्या राष्ट्रपति को नहीं होना चाहिए? क्या देश के उपराष्ट्रपति को इन ऐतिहासिक पलों का साक्षी नहीं बनना चाहिए? सामान्य बुद्धि के मुताबिक उत्तर यही है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री सहित संवैधानिक संसदीय पदों पर आसीन उस हर व्यक्ति की उपस्थिति ऐसे पलों को गौरवान्वित करती है। लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों पर देश की जो विभूतियां आसीन हुईं हैं, उसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका किसकी है? उत्तर एक ही पंक्ति का है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से ही इन पदों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ विराजमान हैं। ऐसे में जब देश ही नहीं बल्कि दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सब मुरीद हैं, तब नई संसद “सेंट्रल विस्टा” का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर-कमलों से होना तय हुआ है तो इतना हंगामा करने की नौबत क्यों आन पड़ी? और वह भी तब जब विपक्ष यह भी मानता है कि राष्ट्रपति के कार्यक्रम ही प्रधानमंत्री की रजामंदी से तय होते हैं। बेहतर तो यही होता कि सभी दल के नेता नए संसद भवन के लोकार्पण के साक्षी बनते और अहसास कराते कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में समारोह गरिमामय नहीं बन पाया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि नया संसद भवन “सेंट्रल विस्टा” देश की विशिष्ट पहचान है और आज यह राष्ट्र के इतिहास में दर्ज हो रहा है…।