अपनी भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है शिक्षाविद श्री चंद्रे

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प्रसंगवश- हिंदी दिवस पर विशेष

अपनी भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है शिक्षाविद श्री चंद्रे

(प्रस्तुति मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल)

 

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शिक्षाविद श्री रमेशचंद्र चंद्रे मंदसौर

देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी दिवस और इस विशेष अवसर पर हिंदी भाषा से जुड़ी गतिविधियों के विभिन्न आयोजन – प्रयोजन होरहे हैं । अच्छी बात है एक दिन – सप्ताह या पखवाड़े में हिंदी का गुणगान करते हैं । वातावरण बनता भी है पर जैसे लगता है सब औपचारिक होरहा है । मन से भाव से प्रतिबद्धता से जुनून से दायित्व से होने का अभाव सा महसूस होता है । आज अवसर है आकलन का कि हम , समाज , राष्ट्र क्या आजादी के सात दशकों बाद भी राष्ट्र भाषा के प्रति न्याय कर पाए हैं , वास्तविक हक़ हिंदी को दिला पाए हैं ? यह बात व्यथित मन से मंदसौर के शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री रमेशचंद्र चंद्रे ने कही ।
आप इस प्रतिनिधि से चर्चा कर रहे थे

श्री चंद्रे कहते हैं कि महात्मा गांधी ने कहा था कि, जिस राष्ट्र की अपनी कोई राष्ट्र भाषा नहीं होती वह राष्ट्र गूंगा होता है, और राष्ट्रभाषा के परिपेक्ष में भारत गूंगा है! कई भाषाओं में संवाद होता है पर आधिकारिक रूप से हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं मिला ।

जबकि हिंदी, भारत के 80% लोगों द्वारा बोली जाती है। 1917 में महात्मा गांधी ने “गुजरात शिक्षा सम्मेलन” में सभापति के रूप में कहा था कि, किसी देश की राष्ट्रभाषा, वही भाषा हो सकती है जो वहां की अधिकांश जनता बोलती है!
वह सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में माध्यम भाषा बनने की शक्ति रखती हो, वह सरकारी कर्मचारियों एवं सरकारी कामकाज के लिए सुगम तथा सरल हो जिसे सुगमता और सरलता से सीखा जा सकता हो!

बहुभाषी भारत में केवल हिंदी ही एक भाषा है जिसमें ये सभी गुण पाए जाते हैं! प्रमाण है कि चौहत्तर वर्ष पूर्व 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया, किंतु राष्ट्रभाषा के रूप में नहीं। ओर कतिपय कारणों से , राजनीतिक प्रतिबद्धताओं , उत्तर – दक्षिण में भाषाई विरोध से अबतक हिंदी राष्ट्रभाषा को दर्ज़े की कसक भुगतना पड़ रही है ।

श्री चंद्रे बताते हैं कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में उल्लेख है कि, “देवनागरी में लिखित हिंदी, भारतीय संघ की राजभाषा होगी” किंतु अनुच्छेद 343 (2) में यह उल्लेख किया गया है कि, संविधान लागू होने के 15 वर्षों तक हिंदी के साथ अंग्रेजी भी राजकाज की भाषा बनी रहेगी। अतः अंग्रेजी को 1965 तक की छूट या राजआश्रय प्राप्त हो गया था! भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अब तक 22 भाषाओं को स्थान दिया गया है और भारत में बोली जाने वाली लगभग 39 भाषाएं इस सूची में सम्मिलित होने के लिए संघर्षशील है!
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सूची में अंग्रेजी कहीं नहीं है।

श्री चंद्रे के अनुसार यूं तो सारे विश्व में हिंदी का डंका बज रहा है तथा हिंदी संसार की सभी संस्कृतियों के बीच में एक सेतु का काम कर रही है, फिर भी भारत में अभी भी इसके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। हमें इस बात पर गौर करना होगा कि, केवल साहित्य लेखन, दर्शन आदि से कोई भाषा समृद्ध नहीं हो जाती जब तक जीवन के दूसरे व्यावहारिक अनुशासन तथा समाज, राजनीति, अर्थ तंत्र, वाणिज्य ,व्यवसाय, प्रशासन ,कार्यालययीन पद्धति, विधि, पत्रकारिता चिकित्सा, शिल्प कला, विज्ञान, रोजगार आदि क्षेत्रों में उनकी बढ़त नहीं होगी तब तक हिंदी सच्चे अर्थों में पूर्ण राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती!
हाल में सम्पन्न जी20 की अंतरराष्ट्रीय समिट में अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री ने की और संबोधित हिंदी में ही दिया अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने सुना , अनुवादक से समझा और सकारात्मक प्रतिक्रिया दी , यह भी भारत की हिंदी की सफलता है ।

शिक्षाविद श्री चंद्रे कहते हैं कि – भाषाएं मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने के लिए बनी है वे मनुष्यों को जोड़ें इसी में उनकी सार्थकता और सफलता है! वे परस्पर कलह का कारण नहीं बन जाए इसके लिए सदैव समाज और सरकार को सजग रहने की जरूरत है! फर्क, सिर्फ समझ का है कि हम इन चीजों को कैसे लेते हैं! यदि उदार दृष्टि से सोचेंगे तो हमें हिंदी और अपनी भाषा में कोई विरोध नजर नहीं आएगा।

आपने सुझाव देते हुए कहा हिंदी दिवस को हम “हिंदी दिवस” के साथ-साथ अपनी भाषा के दिवस के रूप में भी मना पाएंगे इसके लिए क्षेत्रीय भाषा के अहंकार छोडना होगा और हिंदी को अपनाना होगा ताकि हमें भविष्य में हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता ही ना पड़े। हिंदी राजभाषा से राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित होसकेगी ।

आपने भाव व्यक्त किया कि – मातृभाषा मां के दूध के समान होती है
मातृभाषा के माध्यम के समक्ष और कोई माध्यम शक्तिशाली नहीं होता है। जैसे मां के दूध के मुकाबले शिशु के लिए और कोई दूध नहीं होता है वैसे ही शिक्षा के लिए मातृभाषा के अलावा और कोई भाषा नहीं हो सकती है।
विद्यालयों में अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण हमारे देश के कईं विद्यार्थी, अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते हैं और जो जैसे तैसे अंग्रेजी से कुश्ती जीतने के बाद डिग्री धारण कर लेते हैं। उसमें से अधिकांश बेरोजगारी के शिकार हो जाते हैं। यह समस्या बन रही है ।

हमारे विद्यालयों से हिंदी माध्यम में निकले हुए विद्यार्थियों को यदि उचित सम्मान ,उचित रोजगार, उचित आमदनी के अवसर प्राप्त हो तो देश में अंग्रेजी भाषा के महत्व को कम करके हिंदी भाषा को सम्मानित किया जा सकता है। आपने विश्वास व्यक्त किया कि देश मे लागू नई शिक्षा नीति से हिंदी सहित अन्य भाषाओं को लाभ मिलेगा ।

अन्यथा, डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था ,कि मेरी समझ में वे लोग बेवकूफ है जो अंग्रेजी के चलते हुए समाजवाद कायम करना चाहते हैं , वह भी बेवकूफ है जो समझते हैं कि अंग्रेजी के रहते हुए लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है। ये ही थोड़े से लोग इस अंग्रेजी के जादू द्वारा देश के करोड़ों लोगों को धोखा देते रहेंगे ।
विदेशी भी उत्साह से हिंदी सीख रहे हैं लिख रहे और परस्पर बोल भी रहे हैं यह सुखद है ।
हिंदी दिवस के मौके पर बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य की कामना की है ।