
ट्रंप की ‘तबाही और डर’ की मानसिकता को आइना दिखा रहा साहित्य का नोबेल पुरस्कार…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
दुनिया में डर और तबाही फैलाकर शांति कायम करने का दावा कर शांति का नोबेल पुरस्कार पाने की होड़ में लगे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को स्वीडन की स्वीडिश एकेडमी ने गुरुवार (09 अक्तूबर) को साहित्य का नोबेल पुरस्कार घोषित कर आइना दिखा दिया है। इस बार साहित्य के नोबेल पुरस्कार से हंगरी के लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई को सम्मानित किया गया है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुए एक भव्य कार्यक्रम में नोबेल की कमेटी ने उनके नाम की घोषणा की और कहा, क्रास्जनाहोरकाई को उनके प्रभावशाली और दूरदर्शी साहित्य के लिए सम्मानित किया गया, जो सर्वविनाशकारी आतंक के बीच कला की शक्ति को पुनः स्थापित करता है। उनका लेखन आतंक के बीच भी कला की ताकत दर्शाता है। लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई की रचनाएं बहुत प्रभावशाली और दूरदर्शी हैं। वे दुनिया में तबाही और डर के बीच भी कला की ताकत को दिखाती हैं। लास्जलो मध्य यूरोपीय परंपरा के एक महाकाव्य लेखक हैं।लास्लो क्रस्नाहोरकाई एक हंगेरियन उपन्यासकार हैं, जो अपनी जटिल कथाओं और दस-पृष्ठों तक लंबे वाक्यों के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ रहस्यमय घटनाओं और विचित्र अफवाहों से भरी होती हैं।
उनके सबसे प्रसिद्ध उपन्यासों में सैटानटैंगो (1985), द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस (1989), सेइओबो देयर बिलो (2008), और बैरन वेंकहाइम्स होमकमिंग (2016) शामिल हैं।लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई का पहला उपन्यास सैटानटैंगो 1985 में प्रकाशित हुआ था और हंगरी में उन्हें एक लेखक के तौर पर साबित करने में कामयाब रहा। यह उपन्यास, साम्यवाद के पतन से ठीक पहले, हंगरी के ग्रामीण इलाके में एक बंजर खेत पर रहने वाले बेसहारा निवासियों के समूह पर केंद्रित था। यह हताशा में डूबे कम्युनिस्ट हंगरी के एक बिखरते हुए गाँव के जीवन की कहानी पर केंद्रित है, जहां इरिमियास नाम का एक आदमी, जिसे लंबे समय से मृत माना जाता है और जो एक भविष्यवक्ता, एक गुप्त एजेंट या शैतान हो सकता है, कहीं से प्रकट होता है और शेष नागरिकों को बरगलाना शुरू कर देता है।
उनका दूसरा उपन्यास ‘द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस’ एक छोटे से गांव और उसके लोगों की मुश्किल जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो मानव स्वभाव के दोषों और गुणों को बखूबी पेश करती है। सैटानटैंगो पर तो 7 घंटे लंबी फिल्म भी बनाई गई थी, जिसकी काफी तारीफ हुई थी। कमेटी ने बताया कि उनकी किताबों में दर्शन होता है। मानवता, अराजकता और आधुनिक समाज के संकटों का जिक्र बड़ी बेबाकी से किया जाता है। कुल मिलाकर लास्जलो डीप थिंकिंग वाली उदास कहानियां लिखने के लिए मशहूर हैं। उनकी किताब ‘द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस’ पर भी फिल्म बन चुकी हैं। ‘वार एण्ड वार’, और ‘एनिमल इन साइड’ आदि भी इनके चर्चित उपन्यास हैं। विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। अगर एक नोबेल पुरस्कार एक से ज्यादा लोगों को मिलता है तो प्राइज मनी उनके बीच बंट जाती है। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे। नोबेल एकेडमी ने अब तक फिजिक्स, केमिस्ट्री, मेडिसिन और साहित्य के लिए पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। अब शांति पुरस्कार की तरफ सबकी निगाहें हैं।
लास्लो क्रस्नाहोरकाई का जन्म 5 जनवरी 1954 को हंगरी के ग्युला शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता, जिर्ज़ी क्रास्नाहोरकाई एक वकील थे और उनकी माँ, जूलिया पालिनकास, एक सामाजिक सुरक्षा प्रशासक थीं। उनके पिता ने अपनी यहूदी विरासत को छुपाकर रखा था, और इसे उन्होंने क्रास्नाहोरकाई को तब बताया जब वह ग्यारह वर्ष के थे। उन्होंने 1972 में एर्केल फेरेंक हाई स्कूल से स्नातक किया, जहाँ उन्होंने लैटिन विषय में विशेषज्ञता हासिल की। 1973 में क्रास्नाहोरकाई ने योजेफ़ अटिला विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई शुरू की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से क्रास्नाहोरकाई एक स्वतंत्र लेखक के रूप में कार्य कर रहे हैं। लास्लो क्रस्नाहोरकाई को इससे पहले साल 2015 में मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज और 2019 में नेशनल बुक अवॉर्ड फॉर ट्रांसलेटेड लिटरेचर भी मिल चुका है।
उल्लेखनीय है कि इस बार साहित्य के नोबेल के लिए दो भारतवंशी लेखकों अमिताव घोष और सलमान रुश्दी के नामों की भी खासी चर्चा थी। इसके अलावा जापानी लेखक मुराकामी का नाम भी इस बार भी चर्चा में था। लेकिन इन सबको पीछे छोड़ कर हंगरी के लाजलो क्रासनाहोरकाई को चुना गया।
स्वीडिश अकादमी द्वारा घोषित किया गया साहित्य का नोबेल पुरस्कार यह बताने के लिए काफी है कि डर और अराजकता का माहौल फैला कर शांति के नोबेल पुरस्कार तक नहीं पहुंचा जा सकता है। ट्रंप की ‘तबाही और डर’ की मानसिकता को साहित्य का नोबेल पुरस्कार आइना दिखा रहा है। और इसके साथ ही एक बार फिर सबकी निगाहें शांति के नोबेल पुरस्कार की तरफ हैं…।के
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





