एक कहावत तो आप सभी लोगों ने सुनी ही होगी ‘शुतुरमुर्गी चरित्र’,मैंने देखा उस कहावत का झूठ और एक पक्षी की सच्चाई

  शुतुरमुर्ग  की दुनिया की सैर और टूटते मिथक :  दक्षिण अफ्रीका के यात्रा संस्मरण 

यह एक नया अनुभव था .कहाँ कभी सोचा था कि मुर्गी फॉर्म तक नहीं देख पाने वाली(वहाँ की गंध के कारण ) मैं  एक बहुत ही रोमांचक यात्रा भी करने वाली हूँ .कहाँ लायन्स पार्क के बब्बर शेर और कहाँ यह डरपोक कहे जाने की हद तक कहावतों में बदल जाने वाला शुतुरमुर्ग भी देखने को मिलेगा ?केप प्रांत की चमकदार सड़कों से गुजरते हुए ड्राइवर ने पूछा था क्या रास्ते के ओस्त्रीच फ़ार्म देखने में हमारी कोई रूचि है ?पति देव ने कहा नहीं मुर्गी फ़ार्म जैसे ही तो होते होंगे ?लेकिन तब तक अपने दिमाग की बत्ती जल  गई थी और अपने जीव विज्ञानी होने से लेकर पक्षी प्रेमी होने तक के बहुत से तर्क रखे जा चुके थे कि नहीं देखना ही है .

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यह तो ज्ञान का कोई  नया अध्याय भी तो हो सकता है पक्षियों में रूचि रखने वाली मैं जानती थी कि शुतुरमुर्ग दक्षिण अफ्रीका का एक सबसे बड़ा पक्षी है इसकी गर्दन और पैर पक्षी वर्ग में सबसे लंबे जीवित प्राणी के है. यह पक्षी उड़ने के बजाय दौड़ में सबसे अधिक तेज दौड़ता है, इसकी चाल 70 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास होती है। यह एक ऐसा पक्षी है, जो अन्य पक्षियों की तुलना में सबसे बड़े अंडे देता है. यह एक शाकाहारी पक्षी है और खाना बदोश गुटों .में रहता है. जिनकी संख्या 5 से 50 तक होती है।इतना विस्तार से बताते बताते पति देव ने कहा कि मुझे पता तुम जन्तुविज्ञान की मास्टर हो बस ?औदत्शोर्न का शांत जगह  क्लेन कारू के राजसी पहाड़ों के बीच स्थित है यह फार्म जहाँ  सर्दियों में, सफ़ेद बर्फ पास की पर्वत चोटियों को ढँक लेती है और गर्मियों में तापमान तवे सा तपता हुआ हो जाता है। लेकिन जगह शायद इन पक्षियों को पालने के लिए लम्बे समय से अनुकूल रही होगी तभी तो इस क्षेत्र में इनके लिए ये  विशाल फ़ार्म बनाए है .

पति देव की बहुत अधिक रूचि दिखाई नहीं दी तो लगा ये इनके लिए  कोई ख़ास बात नहीं है, तब फिर रोचकता के किस्से बताने शुरु किये आपको पता है ?जब कभी कोई खतरा इसे महसूस होता है, तो यह अपने पैरों को समेटकर जमीन में सट जाता है.लेकिन जवाब मिलाता उसके पहले हम उस द्वार पर खड़े थे  जहाँ बड़ा सा पोस्टर लगा था और अपना परपस भी हो गया था .चलो देख ही लेते है के उत्तर के साथ .

विश्व में सबसे तेज दौड़ने वाला, सबसे भारी और सबसे बड़ा पक्षी है ऑस्ट्रिच . जब हम केप ऑफ़ गूड हॉप देखने जा रहे थे तो रास्तें में एक अवसर  शुतुरमुर्ग के खेत का दौरा करने का भी इस तरह मिला. रास्ते में कई फार्म आये जैसे सफारी शुतुरमुर्ग फार्म,कांगो शुतुरमुर्ग फार्म इत्यादि.  यात्रा का यह पड़ाव बेहद रोचक और शांत अनुभूति से भरा बिलकुल अलग  अनुभव था. एक बहुत ही मजेदार और दिलचस्प गतिविधि जैसा हल्का और आनंददायक ।अब गाइड की तरह मेरे हाथ में कमान आ गई थी ज्ञान बांटने की .

एक अजीब सा पक्षी जो उड़ना नहीं जानता पर वह पक्षी परिवार का जीव है . हमने  पुराने शुतुरमुर्ग शो फार्म का दौरा किया जो कि हाईगेट है। यह सिर्फ शो फार्म ही नहीं बल्कि वर्किंग फार्म भी है। बताया गया कि लगभग दो घंटे तक आप वहां रह कर ostrichostउनकी जीवन की रोचक गतिविधियों का अवलोकन और आनंद ले सकते है .पर जो मैं जानती थी वह किताबी ज्ञान था असली तो देखते  हुए ही मिला .

मुझे सबसे आकर्षक उनका दौड़ना लगा .तेजी से जब वे भागते है तो पंखों को खोल लेते है और यह दृश्य बेहद  खुबसूरत होता है .पंखो को खोलने का कारण भी समझ आया दरअसल शुतुरमुर्ग अपने पंखों का इस्तेमाल दौड़ते समय अपनी दिशा को बदलने के लिए और संतुलन बनाने में करता है. ।यहाँ हमें  सुगम्य रेस कोर्स में शुतुरमुर्ग की दौड़ देखने का भी मौका मिलता .यह किसी मेराथन को देखने जैसा ही रोमांचक लगता है .

इस दौड़ में मैंने हलके से गुलाबी पैरो वाले पक्षी पर मन ही मन बाजी लगाई कि यही  सबसे आगे जायेगा .लेकिन शायद वह सुन्दर होने के साथ उम्र में भी छोटा और अनुभवहीन रहा होगा .वह आधे रास्ते में रुका और फिर  पिछड़ गया उस दौड़ में

देखो!  इसके पैर बहुत ही ज्यादा मजबूत और लंबे होते हैं। इनका प्रयोग दौड़ने में तो होता ही है, लेकिन इसका इस्तेमाल शुतुरमुर्ग अपनी आत्मरक्षा में भी करता है.यह  दुनिया के उन पक्षियों में से एक हैं, जो बहुत ऊंची आवाज में स्वर उत्पन्न कर सकते हैं।

शुतुरमुर्ग आमतौर पर काफी शांत होते हैं। लेकिन नर शुतुरमुर्ग, हालांकि, हवा से अपनी गर्दन को फुला सकते हैं (अपने मुंह को बंद रखते हुए) और एक गड़गड़ाहट की आवाज पैदा कर सकते हैं जो मीलों तक गूँजती है। नर शुतुरमुर्ग प्रायः अपने साथी को आकर्षित करने के लिए ऐसा करते हैं।

मादा शुतुरमुर्ग भी अपनी अनूठी आवाज निकालती हैं। संकट की स्थिति में मादा शुतुरमुर्ग फुफकार जैसी ध्वनि उत्पन्न करती है।वह अपने बच्चे को बचाने के लिए लड़ने लगती है .चलते चलते रक साथ ढेर सारे चूजे एक बड़े शुतुरमुर्ग के पीछे चल रहे थे बिलकुल स्कूल जाते बच्चे और कोई एक केयरटेकर वाला यह दृध्य अनूठा था ,हम रुके हुए थे उनके निकलने तक .थोडा सा आगे जाने पर कहावत चरितार्थ होती देखी .वही एक कहावत तो आप सभी लोगों ने सुनी ही होगी ‘शुतुरमुर्गी चरित्र’, दरअसल मुहावरों और कहावतें सदियों के अनुभव का निचोड़ होती हैं पर गाइड ने इस निचोड़ का अर्थ बदल दिया उसने बताया कि यह अपने वंश को बचाने के लिए अपने अण्डों को धरती के भीतर हिटिंग के लिए उलट पलट करता है. सेने का यही तरीका है इसका .

 

अब पतिदेव ने ज्ञान वर्धन शुरू किया .

यह बात सच है कि शुतुर्मुर्ग पक्षी होने के बावज़ूद उड़ नहीं पाता। परंतु शुतुर्मुर्ग दो पैरों वाले जीवों में सबसे तेज़ दौड़ता है।आपको कैसे पता ?तुम्हारे गूगल जी पर पढ़ लिया है. ज़रूरत पड़ने पर यह तकरीबन 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी दौड़ सकता है। अब सोचने वाली बात यह है कि इस की रफ्तार से भागने वाले जन्तु को खतरे से बचने के लिए भाग जाने में क्या मुश्किल होगी।तब फिर हमारे यहाँ प्रचलित मिथक है कि  शुतुरमुर्ग खतरा देखकर वे अपना सिर रेत/जमीन में गड़ा लेते हैं?जब फॉर्म में गतिविधियों का अवलोकन किया तो यह भ्रम टूटा और गाइड के बताये अनुसार शुतुरमुर्ग अंडे देने के लिए जमीन की मिट्टी खोदकर घोंसला बनाते हैं.

अक्सर अंडों को पलटने के लिए वे घोंसले में अपना सिर डालते हैं, जो ऐसा दिखता है मानो वे अपना सिर रेत/जमीन में गड़ा रहे हैं. जब शुतुरमुर्ग खतरा महसूस करने पर भी भाग नहीं पाते, तो अपना सिर और गर्दन जमीन के समानान्तर कर लेट जाते है. सिर और गर्दन का हल्का रंग रेत/जमीन के रंग से मिल जाने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अपना सिर रेत/जमीन में गड़ा लिया है. .हमारेदेश में कितने मुहावरे ,कहावतें और मिथक असली सच्चाई को अनदेखा कर देते है ..खैर हम एक पक्षी बाग़ में थे जहाँ    शुतुरमुर्ग के आधुनिक प्रजनन विधियों के बारे में बहुत सी जानकारी मिलाती है जो छात्रों के लिए उपयोगी हो सकती है जैसे  एक वर्ष में लगभग 15000 शुतुरमुर्ग चूजे पैदा करते हैं। शुतुर्मुर्ग का अंडा लगभग नारियल के आकार का होता है। सबसे रोचक यह है बताने का कि यह एक सामाजिक जीव है और  सभी मादा शुतुरमुर्ग एक सामुदायिक घोंसले में अंडे देती हैं, जिसे Dump nest कहा जाता है. Dump nest 30 से 60 सेमी गहरा और 3 मीटर चौड़ा होता है, जिसे नर शुतुरमुर्ग जमीन की मिट्टी खोद कर बनाता है. यह घोंसला एक बार में लगभग 60 अंडों का वजन संभाल सकता है. अंडों को सेने की जिम्मेदारी नर और मादा शुतुरमुर्ग दोनों निभाते हैं. नर रात के समय अंडों को सेते हैं और मादा दिन के समय अंडों को सेती हैं.28. शुतुरमुर्ग के अंडों से चूजे निकलने में 42-46 दिन का समय लगता है.

दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी है, जो अफ्रीका के वुडलैंड्स और सिवाना  क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. कई शारीरिक विशेषताएं इसे अन्य  पक्षियों से पृथक बनाती है. मसलन, पक्षी होने के बावजूद ये उड़ नहीं सकता, इसके तीन पेट होते हैं और पैरों में मात्र दो उँगलियाँ होती है. दुनिया में सबसे बड़ी आँखें शुतुरमुर्ग की होती है और सबसे बड़ा अंडा भी. इसका अंडा इतना मजबूत होता है कि सामान्य वजन का व्यक्ति उस पर आसानी से खड़ा हो सकता है. ये ऐसा पक्षी है, जिसे पानी पीने की ज़रूरत ही नहीं होती और ये अपने पेट में 1 से 1.5 किलो तक ककड़ भरकर चलता है.शुतुर्ण

 

.यात्रा का एक आकर्षण अन्य पर्यटकों के लिए  पारंपरिक शुतुरमुर्ग भोजन भी हो सकता है पर हम ठहरे शुद्ध शाकाहारी तो इस आनन्द के बारे में आपको कुछ खास नहीं बता सकती . फार्म सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक खुलता है .आप शुतुरमुर्ग सवारी तभी कर सकते है जब आपका वज़न ४५ से ५० के अन्दर ही हो .सरकार भी इसके पालन को बढ़ावा दे रही है क्योंकि 18 वीं शताब्दी में उत्तरी अफ्रीका (North Africa) में महिलाओं के फैशन में शुतुरमुर्ग के पंख इतने लोकप्रिय थे कि पूरे उत्तरी अफ्रीका से शुतुरमुर्ग लगभग लुप्त हो गये थे. 1838 में प्रारंभ हुए शुतुरमुर्ग पालन से यह पक्षी पूर्णतः लुप्त होने से बच सका.

यह यात्रा इस बात के लिए भी सन्देश देती लगी कि हमने जैव विविधता पर इतना गहन विचार क्यों नहीं किया ..लेकिन अफ्रीका में शेर चीते .हाथी जेब्रा ,जिराफ और अब शुतुरमुर्ग कितना कुछ है जो दुनिया से अलग है देखने के लिए .पर शुतुरमुर्ग तुम्हारी जिजीविषा  को सलाम निश्चित रूप से एक प्राचीन प्रागैतिहासिक पक्षी हो .सदियों से अपने अस्तित्व को बचाए हुए हो  पता चला   60,000 साल पहले पुरातात्विक स्थलों से शुतुरमुर्ग अंडा खोल मिले है .

तुम्हें देखना तो बनता था .मेरे पास एक छोटा  सा  कागज़ का पैकेट है जिसमें उन्हें खिलाने के लिए कोई खाद्य सामग्री  है पर हथेली के ऊपर ना रखते हुए उनके पात्र में ही छोड़ देती हूँ ..मन ही मन बाय बाय पंछी प्यारे बोलते हुए ,समय कम है अब आगे अभी सफ़र बहुत है अभी तो कैंगो गुफाएं देखनी है हालांकि हमने लुरे केव्स अमेरिका में देख रखी है पर यह एक अलग पर्यावरण के गरम देश की प्रागैतिहासिक महत्व की  एक प्राकृतिक आश्चर्य और अफ्रीका में एकमात्र शो गुफाएं हैं  जिनमें प्रागैतिहासिक सुरंगों और कक्षों की एक विस्तृत प्रणाली है जहां शानदार ड्रिपस्टोन संरचनाओं को देखना किसी  शिल्पकार के संग्रहालय से भी ज्यादा आश्चर्य जनक है क्योंकि इनका शिल्पकार खुद प्रकृति है .

Author profile
डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : stswatitiwari@gmail.com

मो. : 7974534394