अपमानित-उपेक्षित महसूस कर रहे विंध्य के लोग या पत्र के जरिए पीड़ा का इजहार करने को मजबूर नारायण …!

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इन दिनों भाजपा से दूसरी बार और इससे पहले सपा-कांग्रेस से विधायक रह चुके नारायण त्रिपाठी की बेचैनी पत्रों के जरिए बयां हो रही है। दिग्गज नेता का दिल जब भी जिस पर आया, बहुत खुलकर आया। पंद्रह महीने की कांग्रेस सरकार में नारायण का दिल नाथ के लिए धड़कने लगा और उन्हें भरोसा था कि नाथ के नेतृत्व में ही विकास होता रहेगा। पर ऐसा नहीं हो पाया और विकास के लिए नाथ का खुलकर साथ दे रहे नारायण फिलहाल कमल दल में रहते हुए भी पत्रों के जरिए राजनीति करने को मजबूर हैं।
उनकी नाराजगी अब कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व सीएम अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण न हो पाने को लेकर है। उन्होंने सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर पीड़ा व्यक्त की है कि विंध्य क्षेत्र के इस महान नेता के अपमान से विंध्य के लोग अपमानित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अलग विंध्य प्रदेश की मांग कर चुके नारायण खुद को समूचे विंध्य का नेता मानते हैं और ऐसे में विंध्य के लोग यानि खुद नारायण भी शिवराज की चौथी पारी में खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में अपनी ही सरकार को पत्र के जरिए चेतावनी और नसीहत देने का कोई मौका वह नहीं छोड़ते हैं।

 

इस बार उन्होंने पूर्व सीएम अर्जुन सिंह की प्रतिमा के अनावरण के लिए सीएम को पत्र लिखकर समय मांगा है। लिखा है कि अर्जुन सिंह केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री जैसे पदों पर रहे हैं और उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। उनकी प्रतिमा लंबे समय से राजधानी भोपाल के नानके तिराहे और अब व्यापम चौराहे पर स्थापित कर दी गई लेकिन अभी तक प्रतिमा का अनावरण नहीं हो सका है। भाजपा विधायक ने आरोप लगाया कि विंध्य क्षेत्र के इस महान नेता के अपमान से विंध्य के लोग अपमानित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने जल्द से जल्द अर्जुन सिंह की प्रतिमा के गरिमामय तरीके से अनावरण की मांग की है।
पत्रों का सिलसिला लगातार जारी हैै। शायद अब पत्र ही नारायण के लिए शिव से संवाद का जरिया बचे हैं। पत्र लिखते ही सार्वजनिक तौर पर भी वायरल हो जाता है। वैसे सरकार का ध्यान भी इन मुद्दों पर तो केंद्रित होता है लेकिन विधायक को इसका श्रेय नहीं मिल पाता। कोरोना की दूसरी लहर में सरकार की नीतियों को लेकर भी उन्होंने सीएम को पत्र लिखकर अनलॉक करने की व्यवहारिक और कारगर नीति अपनाए जाने की अपील की थी।
तो पत्र लिखकर ही ‘सरकार’ को नसीहत दी थी कि वर्चुअल मीटिंग के तमाशे से कुछ नहीं होने वाला। बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों का इंतजाम करें।सीएम चौहान को संवेदनशील मुखिया बताते हुए वह निशाना साधने का काम भी बखूबी करने में कोताही नहीं बरतते।
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एक और पत्र लिखकर उन्होंने सवर्ण आयोग बनाने की मांग की थी। एक अन्य पत्र लिखकर मांग की थी कि प्रदेश में जनता कर्फ्यू के दौरान यात्री बसें बंद रहीं, जिसके कारण उनका विभिन्न टैक्स माफ किया जाए। एक अन्य पत्र लिखकर अवैध खनन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज को बताया था कि प्रदेश में रेत और पत्थर के अवैध खनन और कारोबार ने वर्तमान में माफिया का रूप ले लिया है। तो शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को लेकर पत्र लिख 180 करोड़ रुपए बोर्ड परीक्षा की फीस छात्रों को लौटाने की मांग की थी।
रैगांव विधानसभा उपचुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज को अलग विंध्य प्रदेश की मांग के ज्ञापन सौंपे गए। अघोषित बिजली कटौती की बात पत्र लिखकर बताई तो सरकार के विरोध में आंदोलनरत आशा ऊषा कार्यकर्ताओं को समर्थन देकर सरकार को पत्र लिखने सहित जब भी मौका मिला, वह सरकार को पत्र लिखने से नहीं चूके। कभी शिवराज की प्रशंसा के पात्र रहे नारायण शायद अब पूरी तरह बदल चुके हैं। देखना यह है कि अगले विधानसभा चुनाव के समय वह कमल दल में नजर आते हैं या नाथ के साथ हाथ को मजबूत करने की कवायद में जुटेंगे। फिलहाल तो वह कमल दल में रहकर भी सरकार पर पत्र-वार कर विंध्य के लोगों को अपमानित और उपेक्षित होने से बचाने में जुटे हैं।