कबीर का भजन है कि “हंसा सुन्दर काया रो, मत करजे अभिमान,आखिर एक दिन जाणो रे,मालिक रे दरबार, आखिर एक दिन जाणो रे, सायब रे दरबार…।”
विजेश लुनावत यानि मध्यप्रदेश की राजनीति का जाना-माना नाम। भारतीय जनता पार्टी में तीन दशक तक कमल खिलाने के लिए संगठन में सक्रिय रहकर हर सांस का समर्पण करने वाले एक जिंदादिल शख्स का नाम। मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर प्रदेश के सभी जिलों के भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए समर्पित एक काया का नाम। वह काया जो सुंदर थी, लेकिन अभिमान दूर-दूर तक उस काया को छू भी नहीं पाया था। मालिक पर भरोसा था, सायब पर भरोसा था और हर जरूरतमंद में मालिक और सायब का चेहरा देखकर मदद करने का जुनून था। शायद ही ऐसे कुछ बिरले नाम होंगे, जिन्होंने सिर्फ संगठन में रहकर सेवा-समर्पण के जरिए अपना कद इतना ऊंचा कर पाया हो कि जिसके जाने का मलाल उस हर शख्स को हो…जो कभी एक बार भी उनसे मिला हो। वही बिरला नाम था विजेश लुनावत का। ऐसा कृतित्व जिसके दम पर जो व्यक्तित्व गढ़ चुका था, उसने व्यक्ति को कोसों पीछे छोड़ दिया था।
और इसी का प्रमाण है कि मात्र 55 वर्ष की आयु में काया तो चली गई, लेकिन विजेश लुनावत की छाया सभी चाहने वालों के संग जिंदा है। विजेश लुनावत स्मृति फाउंडेशन के जरिए अब “सेवा, सहयोग और समर्पण” का सिलसिला जारी है, ताकि व्यक्तित्व का आभामंडल नित नई ऊंचाईयों पर पहुंचकर उस काया की सोच को जिंदा रख सके। वही व्यक्तित्व जो काया रहते किए गए कृतित्व से दमक रहा है। और छाया बनकर भी सभी चाहने वालों को प्रेरणा दे रहा है कि जितना हो सके, सेवा करो-मदद करो और लोगों के दुखों को दूर करो।
पिछली 5 मई को काया को त्याग विदा लेने वाले विजेश लुनावत की पहली पुण्य स्मृति पर गुरु पवन सिन्हा ने जो भाव प्रकट किए उसका संदेश यही था कि ईश्वर की पूजा का मतलब यही है कि जरूरतमंदों की मदद की जाए। पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं सभी की मदद की जाए। सेवा के हर अवसर को पूजा समझ पूरा किया जाए। और विजेश लुनावत इसी का पर्याय थे और यही वजह है कि वह हमेशा जिंदा रहेंगे उनकी स्मृति में होने वाले सेवा कार्यों के जरिए। यानि कि जीवन को सार्थक जो कर पाया, वही जीवन सफल है। और सफल जीवन का पर्याय थे विजेश लुनावत।
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जो अच्छे चुनाव प्रबंधक भी थे। जो पत्रकारों के साथी, अनुज और अग्रज बनकर हर विपदा में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे। जो सकारात्मक ऊर्जा से भरे थे और दो विपरीत ध्रुवों के संग तालमेल बिठाने की कला के धनी थे। कैलाश विजयवर्गीय ने उनकी इस खूबी को बखूबी बयां किया कि जिससे उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा हो, उसकी मदद करवाने का काम भी यदि उनसे कोई करवा सकता था…तो वह विजेश लुनावत ही था। और भोपाल की हर विश्वसनीय खबर अगर किसी के पास रहती थी…तो वह विजेश लुनावत के पास। दुश्मनों के प्रति भी सकारात्मक भाव से जीने का यदि कोई पर्याय था, तो वह विजेश लुनावत था।
विजेश लुनावत स्मृति फाउंडेशन सेवा, सहयोग और समर्पण के नए मापदंड गढ़ेगा। फाउंडेशन ने पिछले ग्यारह महीने में हर माह की पांच तारीख को सेवा कार्य के जरिए यह साबित कर दिया है। और हर जरूरतमंद तक पहुंचने के लिए अपना दायरा बढ़ाने के लिए जिस तरह संकल्पित है, उससे यह माना जा सकता है कि जल्दी ही फाउंडेशन सेवा कार्य में आकाश को छुएगा। उसी आकाश को, जो विजेशमय है। जिन्हें उसने इस धरती से काया के तौर पर चुरा लिया है। पर विजेश की सेवाभाव की खुशबू इस हवा में अब भी बिखरकर उस आकाश को छू रही है और छूती रहेगी। काया है,तो निश्चित तौर पर कमियां भी रही होंगीं…पर विजेश ने कमियों को खूबियों में बदलकर जो व्यक्तित्व गढ़ा है, वह सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता से भरा है। सेवा, सहयोग और समर्पण से भरे रहने का संदेश दे रहा है।