पूंजीपतियों से रिश्तों का राजनीतिक हिसाब किताब बहुत महंगा 

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पूंजीपतियों से रिश्तों का राजनीतिक हिसाब किताब बहुत महंगा 

आलोक मेहता

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध प्रचार के दौरान पूंजीपतियों से रिश्तों का पुराना राग सुना रहे हैं | विशेष रूप से अंबानी अडानी और नाम लिए बिना अन्य चार- पांच पूंजीपतियों को सर्वाधिक लाभ देने का आरोप लगा रहे हैं | शायद वह भूल जाते हैं कि पूंजीपतियों के साथ कांग्रेस के शीर्ष नेताओं , प्रधानमंत्रियों , मुख्यमंत्रियों के साथ रहे संबंधों , उनकी सरकारों के दौरान बड़े पूंजीपतियों को मिले प्रश्रय अथवा लाइसेंस , परमिट , अनुबंध , ठेकों का हिसाब किताब उनके लिए ही बहुत महंगा साबित होगा | कई बार ऐसा लगता है कि वह 60 -70 के दशक में वामपंथी राजनीतिक दलों अथवा श्रमिक संगठनों द्वारा टाटा बिरला और पूंजीपतियों के विरुद्ध की जाने वाली नारेबाजी के बल पर जनता को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं | जबकि भारत ही नहीं चीन और रुस जैसे कम्युनिस्ट देशों में भी प्राइवेट और मल्टीनेशनल कंपनियां बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं | भारत में आर्थिक उदारवाद भी 1991 में कांग्रेस राज नरसिंहा राव की सरकार और मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते हुए लागू हुआ |

अम्बानी अडानी समूह तो पिछले तीस वर्षों के दौरान तेजी से आगे बढ़े हैं | राहुल गाँधी अपने को युवा सम्राट मानकर संभव है भारत की राजनीतिक आर्थिक पृष्ठभूमि नहीं जानना चाहते या उनके सलाहकार उनको नहीं बताते | लेकिन बिहार ही नहीं देश के सामान्य लोग भी बिरला टाटा से लेकर अम्बानी अडानी जैसे समूहों को किसी न किसी रुप में सुने हुए या जानते हैं | यही नहीं करोड़ों लोगों ने इन कंपनियों के अलावा अन्य उद्योग व्यापार की कंपनियों के शेयर ख़रीदे हुए हैं यानी अपनी पूंजी भी लगा रखी है | वे न समझना चाहें लेकिन इस विवाद पर कुछ तथ्यों पर ध्यान दिलाना उचित लगता है | बिरला समूह की ही बात की जाए , तो कृष्ण कुमार बिरला न केवल सदा कांग्रेस पार्टी को हर संभव सहयोग और चुनावी चंदा देते रहे , स्वयं कांग्रेस पार्टी द्वारा 1984 से 2002 तक राज्य सभा के सांसद के रुप में साथ में जोड़कर रखा | बाद में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार में उनकी बेटी श्रीमती शोभना भरतिया को 2006 से 2012 तक राज्य सभा का नामजद सदस्य बनाकर रखा | बिरला समूह की कंपनियों ने कांग्रेस सहित हर सरकार के काल में प्रगति की |

राहुल गाँधी को क्या यह तथ्य नहीं पता हैं कि बिरला परिवारों की दूसरी कंपनी हिन्दुस्तान मोटर्स की अम्बेसेडर कारों को सरकार की एकमात्र मान्यता प्राप्त कार के नाते सर्वाधिक खरीदी भाजपा की अटल सरकार आने तक होती रही | बाद में मारुति और अन्य बड़ी गाड़ियों की खरीदी होने लगी | वैसे पिछले दशकों में चीनी , खाद , पटसन के कारखानों या टेलीकॉम उद्योग और नई टेक्नोलॉजी के कई उद्यमों में बिरला समूह आगे बढ़ते रहे | बहरहाल उन्हें अम्बानी परिवार पर बड़ी आपत्ति होती है | वे यह कैसे नहीं जानते कि रिलायन्स समूह धीरुभाई अम्बानी से लेकर मुकेश अथवा अनिल अम्बानी को सर्वाधिक सहयोग कांग्रेस सत्ता काल में रहा | यही नहीं राजीव गाँधी के राजनीतिक संकट यानी वी पी सिंह के विद्रोह के दौरान अम्बानी ने पर्दे के पीछे उनका साथ दिया | दिलचस्प बात यह है कि अनिल अम्बानी तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के वोटों से ही उत्तर प्रदेश से राज्य सभा में 2004 में सांसद बने | तब सोनिया गाँधी पार्टी प्रमुख और राहुल गाँधी भी सांसद थे |

राजीव गाँधी से मनमोहन सिंह तक की कांग्रेस सरकारों के दौरान पॉलिएस्टर , गैस , टेलीकॉम के उद्यमों के लिए रिलायन्स के साथ विशेष रियायतों के आरोप लगते रहे | सही बात यही है कि उदार आर्थिक नीतियों और देश के आर्थिक विकास के लिए उनके साथ कई अन्य कंपनियां आगे बढ़ती रहीं | मनमोहन सिंह ही नहीं प्रणव मुखर्जी , नारायणदत्त तिवारी और चिदंबरम के वित्त या उद्योग वाणिज्य मंत्री या मुरली देवड़ा के पेट्रोलियम मंत्री रहते हुए इन समूहों ने तेजी से प्रगति की | गुजरात देश का सबसे प्रगति करता प्रदेश रहा है | इसलिए टाटा बिरला अम्बानी अडानी समूहों को वहां मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल या प्रधान मंत्री बनने पर भी समुचित अवसर मिलते रहे | राहुल गांधी यह कैसे भूल गए कि 2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान वह पार्टी प्रमुख थे और उनकी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा को मुंबई से चुनावी विजय के लिए रिलायंस के अध्यक्ष मुकेश अम्बानी ने अलग से अपील जारी की थी |

यों बिरला अम्बानी के अलावा एक और बड़े उद्योगपति आर पी गोयनका रहे हैं | वे कांग्रेस और गाँधी परिवार के करीबी रहे | उनका औद्योगिक समूह भी तेजी से आगे बढ़ा | कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल से राज्य सभा का चुनाव जितवाकर सन 2000 से 2006 तक सांसद बनाकर संसद में रखा | आर पी गोयनका तो गाँधी परिवार के कुछ ट्रस्टों के सदस्य भी रहे |

इसी सप्ताह मुजफ्फरपुर की एक चुनावी सभा में राहुल गाँधी ने अम्बानी परिवार की शादी के समारोह में प्रधान मंत्रीं नरेंद्र मोदी के जाने और खुद न जाने का दावा करते हुए अम्बानी समूह को लाभ मिलने का आरोप लगाने को साहसिक काम समझा , लेकिन उनके साथ बैठे और कांग्रेस राजद के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव के चेहरे के रंग उतर गए क्योंकि वह और लालू यादव का पूरा परिवार अम्बानी के विवाह उत्सव में पूरी शान के साथ शामिल हुए और वहां उनकी अच्छी खातिर भी हुई थी | वैसे कांग्रेस के कुछ अन्य वरिष्ठ नेता भी इस समारोह में गए थे | भारत में पारिवारिक कार्यक्रमों में आना जाना सामान्य शिष्टाचार रहा है | परस्पर राजनीतिक या व्यावसायिक प्रतिद्वंदी होने पर भी सामान्य सम्बन्ध बने रहते हैं |

राहुल गांधी को जिस अडानी समूह को पोर्ट या एयर पोर्ट के रखरखाव या निर्माण का काम दिए जाने पर तकलीफ हो रही है , उन्हें यह जानकारी कैसे नहीं है कि गुजरात के कांडला पोर्ट अडानी समूह को 1994 में दिया गया , जब केंद्र में राव की और गुजरात में छबिलदास मेहता की कांग्रेस सरकारें थी | तब तो नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं थे | इसी तरह राजस्थान में अडानी समूह को ग्रीन एनर्जी यानी सौर ऊर्जा के बड़े प्रोजेक्ट का काम 2018 में मिला , जहाँ अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार थी | छत्तीसगढ़ में भी कोयला खदानों आदि से जुड़े काम कांग्रेस और भाजपा सरकारों के दौरान मिले | अब बिहार में वही अशोक गहलोत और भूपेश बघेल पार्टी उम्मीदवारों का हिसाब किताब देख रहे हैं | ये कुछ बातें तो एक झलक हैं | यदि विस्तार में जाएंगे तो बहुत दूर या करीबी की दास्तान मिल जाएगी | तभी तो उन्हें यह गीत याद रखना होगा – ‘ राज को राज ही रहने दो , वरना भेद खुल जाएगा | ‘