देश का सबसे गरीब और पिछड़ा इलाका लेकिन बेटियों का मोल सबसे ज्यादा

देश का एक ऐसा इलाका जो सबसे पिछड़ा औऱ गरीब माना जाता है लेकिन यहाँ के आदिवासी बेटियों को लेकर बेहद जागरुक हैं। भले ही यहां के लोग अशिक्षित हों, गरीब हों, पिछड़े हों लेकिन बेटियों का मोल सबसे ज्यादा समझते हैं।

यह इलाका बेटी बचाने के लिए पूरे देश में एक नज़ीर है। देश भर को यहाँ से सीख लेना चाहिए।

आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि आखिर यहाँ बेटियों का मोल क्यों ज्यादा है। क्यों यहाँ लड़कों से ज्यादा लड़कियों की चाहत रखी जाती है। आइये आपको बताते हैं।

मध्यप्रदेश का अलीराजपुर जिला आदिवासी बाहुल्य है। यहाँ की 89 फीसदी आबादी आदिवासियों की हैं। निती आयोग के सूचकांक के मुताबिक यहाँ 71 फीसदी लोग गरीब हैं। देश की सबसे कम शिक्षा दर 36.6 फीसदी ही है। लेकिन अलीराजपुर जिले में लिंगानुपात काबिल-ए-तारीफ है। यहाँ 1000 पुरुषों पर 1009 महिलाएँ हैं।

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सोमवार को ग्वालियर में राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर कहा कि मध्यप्रदेश में एक हज़ार पुरुषों पर 927 से बढ़कर अब 956 महिलाएँ हो गई हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि लिंगानुपात को बराबर करना उनका लक्ष्य है। अलीराजपुर को मध्यप्रदेश ही नही देश और दुनिया में एक आदर्श इलाका माना जाना चाहिए।

दरअसल आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में लड़के-लड़कियों को बराबरी का दर्जा है। शिक्षित समाज होने के बावजूद शहरों में कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य किए जाते हैं। बेटा होने पर आज भी जश्न मनाया जाता है लेकिन इस गरीब, पिछ़ड़े और अशिक्षित इलाके में बेटियों के जन्म लेने पर ज्यादा खुशियाँ मनाई जाती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है।

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आदिवासी समुदाय बेहद खुली मानसिकता के लोग है। मर्दों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर दिहाड़ी मज़दूरी का काम करती हैं। इससे भी बड़ी वजह यहाँ रिवर्स डोवरी सिस्टम है। यानी शादी के मौके पर लड़की के घर वालों को लड़के वालों की तरफ से धनराशि देना होती है।

देश के बाकी हिस्से को इस इलाके से सीख लेना चाहिए कि बटियाँ अनमोल हैं। उन्हें भी लड़कों की तरह हक दिया जाना चाहिए। कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए इस इलाके को धूरी बना कर इसकी मिसाल दी जाना चाहिए।