केन्द्र सरकार के पास राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता दिलाने सम्बन्धी प्रस्ताव गत 19 वर्षों से लंबित

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला,केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केन्द्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और सांसदों को सौंपा ज्ञापन

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केन्द्र सरकार के पास राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता दिलाने सम्बन्धी प्रस्ताव गत 19 वर्षों से लंबित

नई दिल्ली से गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट

नई दिल्ली: राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची शामिल कर उसे मान्यता देने सम्बन्धी मामला केन्द्र सरकार के पास गत 19 वर्षों से लंबित पड़ा है।राजस्थान विधानसभा द्वारा 25 अगस्त 2003 को सर्वसम्मति से इस सम्बन्ध में एक संकल्प पारित कर भारत सरकार को भेजा गया था।

इस संकल्प में राजस्थान के सभी जिलों में बोली जाने वाली उप भाषाओं को (भारतीय भाषायी सर्वेक्षण एवं प्रमाणिक जनगणना आंकड़ों अनुसार) ‘राजस्थानी’ में समाहित किया हुआ है।

नई दिल्ली में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और केन्द्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तथा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय और राजस्थान के सभी सांसद गणों को ज्ञापन प्रेषित कर मानसून सत्र में ही राजस्थानी भाषा को मान्यता का विधेयक पारित कराने का अनुरोध किया गया है।

ज्ञापन पत्र में यह भी बताया गया है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करने की मांग को लेकर किए गए विशाल धरना, प्रदर्शन तथा संसद के दोनों सदनों एवं विधानसभा में इस मामले को लेकर किये गए प्रयास बाबत विस्तार से जानकारी दी गई है। जनगणना के प्रमाणिक आंकड़ों के अनुसार संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित कुल 22 भाषाओं में से 17 भाषाओं के बोलने वालों की संख्या से राजस्थानी भाषियों की संख्या सबसे अधिक है। केवल हिंदी सहित शेष 5 भाषाओं के बोलने वाले (मातृभाषा लिखाने वाले) राजस्थानी से अधिक है। यही नहीं राजस्थान में हिंदी मातृभाषा लिखाने वालों की अपेक्षा मातृभाषा राजस्थानी लिखाने वाले (वृहद रूप में राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित संकल्प की परिभाषा अनुसार) ढाई गुना है। इस कारण राजस्थानी को अपना हक और मान-सम्मान दिलाने में तत्काल निर्णय अत्यावश्यक है। राजस्थानी के साथ भोजपुरी को भी संवैधानिक मान्यता का मामला विचाराधीन है।

ज्ञापन में कहा गया है कि राजस्थान के नवम्बर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तथा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इस निर्णय से राजस्थान प्रदेश ही नहीं विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले करोड़ों लोगों का केंद्र के प्रति विशेष सम्मान बढ़ेगा।

राजस्थानी भाषा को देश-विदेश के भाषाविदों द्वारा एक महान देशप्रेम सिखाने वाली, विपुल शब्द भंडार युक्त, समृद्ध तथा स्वतंत्र भाषा माना है। जिसके बारे में अनगिनत अकाट्य प्रमाण केन्द्रीय गृह मंत्रालय को समय-समय पर प्रेषित किये हुए हैं। केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं में अंग्रेजी को छोड कर ‘राजस्थानी’ ही एकमात्र ऐसी भाषा रह गई है जो संविधान की आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित होने से वंचित है। सोलह वर्ष पूर्व तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री द्वारा दिनांक 18 दिसम्बर 06 को लोकसभा में दी गई जानकारी अनुसार सीताकांत महापात्र समिति की सिफारिशों के आधार पर मानदंड निर्धारित करते हुए राजस्थानी व भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने संबंधी प्रक्रिया शुरू करने की जानकारी दी गई थी। यह ऐतिहासिक सत्य है कि ‘गुजराती’ 14-15वीं शताब्दी तक पश्चिमी राजस्थानी (मरु गुर्जरी) का ही एक भाग थी। नरसी मेहता एवं मीरांबाई के पद इसी भाषा में रचित हैं, जो एक समान लगते हैं। हिंदी का आदिकाल राजस्थानी ही है। राजस्थानी, हिंदी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, नेपाली सहित दस भाषाओं की लिपि देवनागरी ही है।

मेहता ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत का मान बढ़ाने वाले जोधपुर में जाये जन्मे जस्टिस दलवीर भंडारी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व में राजस्थानी भाषा को शीघ्र आठवीं सूची में सम्मिलित करने का विश्वास दिलाया था। इसके अलावा समय-समय पर प्रतिनिधि मंडलों तथा सांसदों द्वारा ध्यानाकर्षण पर राज्यसभा एवं लोकसभा में राजस्थानी भाषा को मान्यता का जो विश्वास दिलाया गया है उसी के अनुसरण में यदि इस सत्र में सम्भव नही होंतों आने वाले शीतकालीन सत्र के दौरान होने वाले विधायी कार्यों में ‘राजस्थानी भाषा’ को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करवाने हेतु संबंधित विधेयक लाने बाबत निर्णय किया जायें ताकि वर्षों से लंबित यह मांग पूरी हो सकती है। इसके अभाव में राजस्थान में नई शिक्षा नीति का लाभ भी हमारी मातृ भाषा राजस्थानी को नही मिल पा रहा है।

राजस्थानी भाषा आन्दोलन से जुड़े पदम मेहता ने देश-विदेश में फैले 10 करोड़ से अधिक राजस्थानियों के मन में मातृभाषा को सम्मान एवं हक संबंधी पीड़ा हैं। अत: कई दशकों से लंबित उक्त मांग को पूरी कर म ‘राजस्थानी भाषा’ को अपना हक एवं सम्मान दिलाया जाना चाहिये।