धर्म की रक्षक और प्रेम की पोषक, महिषासुरमर्दिनी माँ कात्यायनी…

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धर्म की रक्षक और प्रेम की पोषक, महिषासुरमर्दिनी माँ कात्यायनी…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

नवरात्रि की नौ दिवसीय आध्यात्मिक यात्रा का छठा दिन माँ दुर्गा के अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप माँ कात्यायनी को समर्पित है। जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर असहनीय हो गया, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया, उनका नाम कात्यायनी है। कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं। ‘कात्यायनी’ अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, भद्रकाली और चंडिका भी कहा जाता है। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतञ्जलि के महाभाष्य में किया गया है, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रचित है। उनका वर्णन देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है जिसे 400 से 500 ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (10 वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।

नवरात्रि का छठा दिन केवल शक्ति की पूजा ही नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा का संकल्प भी है। इस दिन पूजित माँ कात्यायनी को शौर्य और साहस की देवी माना जाता है। ये महर्षि कात्यायन के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इसलिए इन्हें महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है और महिषासुर के अत्याचार से धरा को मुक्त कर कात्यायनी धर्म की रक्षक बनीं। माँ कात्यायनी का जन्म ही दुष्टों का संहार करने के लिए हुआ था। उनकी पूजा करने से भक्तों को अपने शत्रुओं, नकारात्मक ऊर्जा और बुरे विचारों से मुक्ति मिलती है। वे अपने भक्तों को शक्ति और आत्म-विश्वास प्रदान करती हैं।

ऐसी मान्यता है कि माँ कात्यायनी की आराधना करने से विवाह से संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। प्रेम संबंध में सफलता प्राप्त होती है। गृहस्थ जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। किवदंती यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण को अपने वर रूप में प्राप्त करने के लिए राधारानी ने भी कात्यायनी माता की पूजा की थी। श्री कात्यायनी शक्ति पीठ भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। महर्षि वेदव्यास ने श्री कात्यायनी शक्तिपीठ के बारे में श्रीमद्भागवत में भी वर्णन किया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जिस स्थान पर कात्यायनी शक्ति पीठ है वहां माता सती के केश गिरे थे। कात्यायनी शक्ति पीठ उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृन्दावन में स्थित है। यह एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जो वृन्दावन में राधाबाग के पास है। तो प्रेम की पोषक के रूप में भी माँ कात्यायनी पूजनीय हैं।

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत भव्य और प्रभावशाली है। वे शौर्य, साहस और निडरता का प्रतीक हैं। वे सिंह पर सवार हैं, जो उनकी शक्ति, पराक्रम और अपने भक्तों की रक्षा के लिए उनकी तत्परता को दर्शाता है। उनके चार हाथ हैं। उनके दाहिने हाथ की ऊपर वाली मुद्रा अभय मुद्रा में है, जो भक्तों को निर्भय रहने का आशीर्वाद देती है। दाहिने हाथ की नीचे वाली मुद्रा वरद मुद्रा में है, जो भक्तों को वरदान देने के लिए तैयार है। उनके बाएँ हाथ की ऊपर वाली मुद्रा में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। तलवार अधर्म का नाश करने की शक्ति का प्रतीक है, और कमल का फूल पवित्रता और शांति को दर्शाता है। यह स्वरूप हमें सिखाता है कि बुराई का संहार करते हुए भी हमें अपनी आंतरिक पवित्रता को बनाए रखना चाहिए। माँ के बाल काले और बिखरे हुए हैं, जो उनके उग्र स्वरूप को दर्शाते हैं। उनकी पूजा करने वालों को यह अनुभव होता है कि वे अपने सभी शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित हैं।

योग शास्त्र के अनुसार, माँ कात्यायनी का संबंध आज्ञा चक्र से है, जो हमारे माथे के बीच में स्थित होता है। यह चक्र अंतर्ज्ञान, ज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है। इनकी पूजा से यह चक्र जागृत होता है, जिससे व्यक्ति के भीतर स्पष्टता और सही-गलत को पहचानने की शक्ति आती है। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं। देवी कात्यायनी को शहद अत्यंत प्रिय है। इसलिए, नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा में शहद या शहद से बनी चीज़ों का भोग लगाना चाहिए।

यदि नवरात्रि के शुरुआती पाँच दिनों ने हमें आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की प्रेरणा दी, तो छठा दिन हमें यह सिखाता है कि अन्याय और अधर्म के विरुद्ध खड़े होना कितना आवश्यक है। माँ कात्यायनी का यह स्वरूप हमें धर्म की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए साहस और बल प्रदान करता है। तो धर्म की रक्षक और प्रेम की पोषक, महिषासुरमर्दिनी माँ कात्यायनी धरा को असुरों से मुक्त रखें और प्रेम को पल्लवित और पुष्पित करें…।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।