दो सप्ताह और बरसेगी महाकुंभ में आस्था की वर्षा…

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दो सप्ताह और बरसेगी महाकुंभ में आस्था की वर्षा…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

माघ माह में प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भीड़ ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं और भीड़ में भगदड़ ने मन में थोड़ी खटास भी भरी थी। पर सनातन के महापर्व महाकुंभ और श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह पर कोई असर नहीं हुआ। अब कुंभ का कोलाहल बस दो सप्ताह का बाकी है। महाशिवरात्रि पर शाही स्नान के आसपास एक बार फिर भीड़ रिकार्ड तोड़ने पर भले ही उतारू हो जाए, लेकिन फिलहाल स्थितियां संतुलन में हैं। सड़कों पर जाम जैसी स्थिति फिलहाल नहीं है। पूरे देश से हजारों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं। त्रिवेणी संगम पर नाव के जरिए कुछ लोग पहुंच रहे हैं, तो बाकी श्रद्धालुओं से घाट भरे नजर आ रहे हैं। महाशिवरात्रि का शाही स्नान 26 फरवरी को है। यह शाही स्नान प्रयागराज में हर-हर महादेव और हर-हर गंगे के नारों से गुंजाएगा। गंगा और महादेव का बेहद खास संबंध भी है। और हर बारह साल में महाकुंभ में यह खास संयोग बनता ही है। वैसे हर साल गंगा तट पर महाशिवरात्रि पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता हो, लेकिन महाकुंभ का यह संयोग खास है। और उसके अगले दिन 27 फरवरी को अमावस्या है। इस अमावस्या पर एक तरह से महाकुंभ का समापन हो ही जाएगा। ऐसे में अब दो सप्ताह ही महाकुंभ की विदाई के बचे हैं। इसके बाद प्रयागराज एक बार फिर अगले महाकुंभ की प्रतीक्षा में पल-पल बिताएगा।

महाकुंभ के भव्य आयोजन के बाद अब इसके समापन की तैयारी है। अब महाकुंभ 2025 में सिर्फ एक शाही स्नान बचा है। इस बार महाकुंभ 2025 का आखिरी महास्नान महाशिवरात्रि के दिन यानी 26 फरवरी 2025 के होगा। इस दिन त्रिवेणी संगम में स्नान का अंतिम योग है। इस दिन का विशेष महत्व है। वैसे भी महाशिवरात्रि के दिन का विशेष महत्व होता है। संगम स्नान की विशेषता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस दिन सूर्य, चंद्रमा और शनि का विशेष त्रिग्रही योग बन रहा है. इस योग को समृद्धि और सफलता का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, इस बार शिव योग और सिद्ध योग का संयोग भी बन रहा है. महाशिवरात्रि के अवसर पर त्रिवेणी संगम में स्नान करने से भगवान शिव की कृपा से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. महाकुंभ के आखिरी स्नान किस विधि विधान से करना चाहिए।

सनातन धर्म में फाल्गुन महीने में पड़ने वाली अमावस्या को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हर साल फाल्गुन अमावस्या के पर्व को होली से पहले मनाया जाता है। इस तिथि पर पवित्र नदी में स्नान ध्यान और दान किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इन कामों को करने से व्यक्ति को पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

तो फिलहाल सड़कों पर गाड़ियों की पर्याप्त से अधिक संख्या है। घाटों और त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में हैं। पर बड़ीं बात यह है कि प्रयागराज के घाट जीवंत हैं और अभी भी श्रद्धालुओं का सनातनी भाव से इंतजार कर रहे हैं। हम होकर आ गए हैं, आप भी जरूर जाइए। यहां आनंद बरस रहा है, उसकी अनुभूति लाइफ टाइम अचीवमेंट से कम नहीं है। अब बस दो सप्ताह और बरसेगी महाकुंभ में आस्था की वर्षा..

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