भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन….

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भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन....

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा घोषित गाइडलाइन पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के गले में अटक गई है। प्रदेश दौरे के दौरान नड्डा कह गए थे कि पार्टी चुनाव भले हार जाए लेकिन भाजपा न तो नेताओं के परिजनों को टिकट देगी और न ही निकाय चुनाव में किसी सांसद, विधायक को मैदान में उतारेगी। नगर निगमों में महापौर के चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश नेतृत्व के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गए हैं।

सरकार और संगठन प्रदेश की सभी 16 नगर निगमों में कब्जा चाहता है। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर महानगरों में वह कोई रिस्क लेने तैयार नहीं है। कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ ने पहले प्रत्याशी घोषित कर भाजपा के सामने मुसीबत खड़ी कर रखी है। पार्टी ने इंदौर से कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला को पहले ही प्रत्याशी घोषित कर दिया था। भोपाल से पूर्व महापौर विभा पटेल पार्टी की प्रत्याशी हैं।

भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन....

भाजपा की नजर में इंदौर और भोपाल में विधायक रमेश मेंदौला और कृष्णा गौर ही मजबूत प्रत्याशी हैं लेकिन विधायकों को टिकट न देने की गाइडलाइन आड़े आ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी एक टिकट के लिए अड़े हैं। भाजपा रास्ता निकालने लगातार मंथन कर रही है। विवाद दिल्ली दरबार जाता दिख रहा है। मुख्यमंत्री चौहान सहित भाजपा के अन्य नेता दिल्ली पहुंच भी रहे हैं।


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कांग्रेस का खेवनहार कौन, कमलनाथ या दिग्विजय!….

विधानसभा के अगले चुनाव में कांग्रेस का असली खेवनहार कौन होगा, कमलनाथ या दिग्विजय? इसे लेकर अटकलें तेज हैं। कमलनाथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और दिग्विजय के पास कोई पद नहीं, बावजूद इसके वे सर्वाधिक सक्रिय हैं। जैसे ही यह खबर सुर्खियों में आई कि महापौर के 15 में से 13 प्रत्याशी कमलनाथ ने तय किए हैं, सिर्फ 2 नाम दिग्विजय की पसंद के हैं, जवाब आने में देर नहीं हुई। दिग्विजय ने कहा कि सभी नाम हम दोनों ने मिलकर तय किए हैं। इसके दो संकेत हैं।

भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन....

एक, सब हम दो ही नेता तय कर रहे है, तीसरे का कोई हस्तक्षेप नहीं और दूसरा आगे भी सारे निर्णय हम दोनों ही लेंगे। इस संकेत के बावजूद चर्चा है कि आखिर कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे मुख्य भूमिका में कौन होगा? प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते कमलनाथ सबसे पावरफुल हैं लेकिन उनकी कमजोरी है कि वे पूरे प्रदेश का दौरा नहीं कर सकते, उधर दिग्विजय ने अभी से घोषणा कर दी है कि चुनाव में जीत के लिए वे पूरे प्रदेश का दौरा करेंगे। दिग्विजय पहले भी यह भूमिका निभा चुके हैं। इस भूमिका की बदौलत ही सरकार उनक इशारे पर चलती रही है। यदि सरकार बनी तो क्या फिर ऐसा होगा, इसे लेकर कयासों, अटकलों का दौर जारी है।


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 ‘नूपुर’ की आड़ में साध्वी प्रज्ञा के बागी तेवर….

भाजपा से निलंबित पार्टी की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को लेकर जब देश भर में बवाल मचा है। पार्टी का कोई नेता उनके समर्थन में खड़ा होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। तब भोपाल से भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बगावती सुर चौकाने वाले हैं। साध्वी को मालूम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोडसे पर की गई एक टिप्पणी को लेकर उन्हें कभी न माफ करने की बात कह चुके हैं। प्रज्ञा एक साध्वी हैं, इस नाते सनातन धर्म के पक्ष में बोलना उनका धर्म बनता है लेकिन इसके साथ वे पार्टी की सांसद भी हैं।

भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन....

भाजपा नेतृत्व ने अपनी प्रवक्ता नूपुर के खिलाफ कार्रवाई की है और उनके बयान से खुद को अलग रखा है। ऐसे में साध्वी का नूपूर के समर्थन में यहां तक कह देना की ‘यदि सच बोलना बगावत है तो हम बागी है’, सीधे पार्टी नेतृत्व के निर्णय को चुनौती है। साध्वी ने कुछ उदाहरण देकर कहा है कि हिंदुओं के पक्ष में बोलने वालों की हत्या तक होती रही हैं। कुछ लोग साध्वी की बगावत को भाजपा में हो रही उनकी उपेक्षा से जोड़कर भी देख रहे हैं। हाल में निकाय चुनाव में प्रत्याशी चयन के लिए गठित संभागीय समिति में उन्हें जगह नहीं मिली है जबकि अन्य सांसद, विधायक, मंत्री और कई छोटे नेता तक उसमें जगह पा गए हैं। साध्वी को इसकी पीड़ा है।

कमलनाथ से दूर होने वाले सलूजा पहले नहीं….

कांग्रेस में असरदार रहे सरदार नरेंद्र सलूजा पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जो कमलनाथ से दूर हुए हैं। कई अन्य नेता भी हैं जो तब से साथ थे जब कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में आए ही नहीं थे। उनके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष बनने से पहले भी इंदौर में रहकर सलूजा कमलनाथ की हर खबर जारी करते थे। यह काम देखने वाला कमलनाथ के पास मीडिया का दूसरा कोई नहीं था। दूसरे वरिष्ठ नेता हैं मानक अग्रवाल, वे भी कमलनाथ के प्रदेश की राजनीति में आने के पहले से भोपाल में उनकी ओर से मोर्चा संभाले रहते थे।

भाजपा में संकट का कारण नड्डा की गाइडलाइन....

इन दोनों से भी महत्वपूर्ण और खास तीसरे हैं सैयद जाफर। वे छिदंवाड़ा से कमलनाथ के साथ जुड़े थे। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वे भोपाल में आकर काम देखने लगे थे लेकिन ऐसा चक्कर चला कि जाफर को वापस छिंदवाड़ा का टिकट कटा दिया गया। मजेदार बात यह है कि कमलनाथ के साथ पहले से जुड़े रहे मानक अग्रवाल, नरेंद्र सलूजा और सैयद जाफर जैसे कई अन्य नेता स्क्रीन से गायब हैं। अब कमलनाथ के मुख्य किरदार के रूप में उनके नाम शामिल हो गए हैं जिनकी आस्था हमेशा दूसरे नेताओं के साथ रही है। कमलनाथ जैसा वरिष्ठ नेता भी इस चक्रव्यूह में है तो ताज्जुब ही किया जा सकता है?


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साध्वी उमा की यह मुहिम कारगर नहीं, बेअसर….

भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती शराब नीति के मसले पर अपनी ही सरकार के खिलाफ हैं। वे कई बार अलग-अलग ढंग से शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलाने का ऐलान कर चुकी हैं। यह बात अलग है कि उनका अभियान अब तक परवान नहीं चढ़ सका। प्रदेश में शराब पहले से ज्यादा स्थानों पर और सस्ती उपलब्ध है। फिर भी उमा का शराबबंदी के खिलाफ रुक-रुक कर अभियान जारी है। पहले वे बयान जारी करती थीं। अभियान चलाने के लिए तारीख का ऐलान करती थीं। पर वे अब तक योजनाबद्ध अभियान नहीं चला सकीं।

uma-bharti

अलबत्ता एक बार शराब की एक दुकान पर पत्थर फेंक आर्इं, कुछ समय शांत रहने के बाद अचानक वे होशंगाबाद रोड स्थित एक शराब दुकान के सामने चौपाल लगाकर बैठ गईं। इस बार बोलीं कि पत्थर फेंकना अपराध की श्रेणी में आता है, इसलिए अब वे पत्थर नहीं फेंकेगी। उन्होंने शराब की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि शराब पीकर वाहन चलाना अपराध है और यहां अहाते में बैठाकर शराब पिलाई जा रही है। ऐसे में लोग शराब के नशे में ही वाहन चलाएंगे। इस दोहरी नीति पर उन्होंने सवाल खड़े किए। यह कह कर आईं कि वे फिर आएंगी और पूरी रात यहां चौपाल लगाकर बैठेंगी। सवाल यह है कि क्या उमा का यह अभियान कारगर है?