आगामी विधानसभा सत्र में सदन में गूंजेगी नीति आयोग की रिपोर्ट और प्रदेश की गरीबी …

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आगामी विधानसभा सत्र में सदन में गूंजेगी नीति आयोग की रिपोर्ट और प्रदेश की गरीबी ...
ऩीति आयोग की रिपोर्ट और मध्यप्रदेश में गरीबी का मुद्दा मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधानसभा में गूंजने वाला है। हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट कोई आश्चर्य में डालने वाली बात कदापि नहीं लगती। यदि मध्यप्रदेश में 37 फीसदी आबादी गरीब बताई गई है, तो वह सड़कों पर नजर भी आती है। कांग्रेस सरकारों के समय भी गरीबी थी और भाजपा सरकार के समय भी गरीबी खत्म नहीं हो पाई है। नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट  के अनुसार मध्य प्रदेश चौथे स्थान पर है। इसमें पहले नंबर पर बिहार (52%), दूसरे पर झारखंड (42%) और तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (38%) देश के सबसे गरीब राज्यों के रूप में उभरकर सामने आए हैं। तो सूचकांक के अनुसार मप्र में 37% आबादी गरीब है। मतलब प्रदेश के 2.5 करोड़ लोग गरीबी में जीवन जी रहे हैं। यही सच्चाई है और इन गरीबों का ख्याल मध्यप्रदेश सरकार कर भी रही है। मुफ्त राशन की बात हो या बीपीएल कार्ड की या फिर गरीब कल्याण योजनाओं का लाभ प्रदेश की गरीब जनता को दिलाने की, प्रदेश सरकार गरीबों के उत्थान के काम  बिना किसी दुराव-छिपाव के लगातार करती रही है।
सवाल सिर्फ इतना है कि मध्यप्रदेश को केरल बनने में और कितना समय लगेगा? क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार, देश में सबसे कम गरीबी केरल (0.71%) में है। इसी तरह, गोवा व सिक्किम (4%), तमिलनाडु (5%) और पंजाब (6%) पूरे देश में सबसे कम गरीब आबादी वाले राज्य हैं। ये सूचकांक में सबसे नीचे हैं। तो हमें 37 फीसदी से घटकर 3.7 फीसदी से नीचे आने में और कितना वक्त लगेगा, सरकार को इसको लेकर एक ठोस कार्ययोजना जरूर पेश करनी चाहिए। और हो सके तो विधानसभा सत्र में इसका खुलकर जिक्र भी करना चाहिए।
रिपोर्ट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार की यह रिपोर्ट शिवराज सरकार को आईना दिखाने के लिए काफी है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश देश में कुपोषण, शिशु मृत्युदर व स्कूल में बच्चों के गैर हाजिर रहने के मामले में तीसरे नंबर पर है। सरकार मध्य प्रदेश को गरीबी में आगे बढ़ा रही है।
एमपीआई के तीन मानक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर रखे गए हैं। इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के 12 संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं। पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते भी इसमें शामिल हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सभी जिलों में 40% से अधिक आबादी गरीबी की मार झेल रही है, तो बुंदेलखंड अपनी हालत को खुलकर बयां करता भी है। शायद केन-बेतवा लिंक भागीरथी बनकर गरीबों की दरिद्रता को पी जाए और बुंदेलखंड के लोगों पर लक्ष्मी जी खुश होकर अमीर बनने का वरदान दे दें।
गरीबी में अलीराजपुर पहले नंबर पर है। अलीराजपुर में सबसे अधिक 71% की आबादी गरीब है, इसके बाद पड़ोसी झाबुआ में 69% आबादी गरीब है। बड़वानी में 62% लोग गरीब हैं। ये इलाके कुपोषण के भी शिकार हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का सबसे कम साक्षर जिला अलीराजपुर है। यह समग्र विकास के वादे के साथ 17 मई 2008 को झाबुआ से अलग कर बनाया गया था। गठन के 13 साल बाद भी यह मध्य प्रदेश का सबसे गरीब जिला है।
निश्चित तौर पर आदिवासी जिलों के लोगों को गरीबी की लक्ष्मण रेखा से बाहर निकालकर ही प्रदेश वास्तविक तौर पर देश में नंबर एक राज्य बन सकेगा। जैसा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वच्छता में प्रदेश की रैंकिंग पर कहा था कि देश में तीसरा स्थान हमें कतई संतुष्ट नहीं करता बल्कि हमें नंबर वन से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। खाली इंदौर के स्वच्छता में नंबर एक रहने से काम नहीं चलेगा। ठीक उसी तरह प्रदेश की गरीब आबादी की भी यही अपेक्षा है कि प्रदेश देश में नंबर एक राज्य बने और देश का सबसे अमीर राज्य भी बने। गरीबों को भी दरिद्रता से मुक्ति मिल सके, ताकि विधानसभा में फिर प्रदेश की गरीबी कभी मुद्दा न बन सके और जमीनी स्तर पर भी गरीबी कहीं भी देखने को न मिल सके।