जीव प्रेम का बड़ा संदेश देती ईश मोहम्मद की कुर्बानी…

सरकारी नौकरी में अतिरिक्त अंकों के लिए फर्जी दस्तावेज भी बनाते थे!

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जीव प्रेम का बड़ा संदेश देती ईश मोहम्मद की कुर्बानी…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

ईश मोहम्मद की कुर्बानी बकरीद पर बकरों की कुर्बानी के नाम पर जीव हत्या करने वालों के लिए बड़ा संदेश है। ईश मोहम्मद ने खुद की कुर्बानी देकर यह चुनौती दी है कि अगर हिम्मत है तो बकरे की जगह खुद की कुर्बानी देकर देखो शायद तब समझ में आएगा कि जीव हत्या क्या होती है? पत्र में ईश ने लिखा है कि ‘इंसान बकरे को अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा कर कुर्बानी देता है, वह भी जीव है। कुर्बानी करना चाहिए, मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्लाह के रसूल के नाम से कर रहा हूं।’ हालांकि कुर्बानी के नाम पर परंपरा और धर्म की दुहाई देने वाले लोग ईश मोहम्मद को मानसिक बीमार, पागल या जुनूनी करार देकर खुद को समझदार समझने की कोशिश करेंगे लेकिन ईश मोहम्मद अपनी कुर्बानी देकर इस प्रथा और धर्म के नाम पर इसे तर्कसंगत ठहराने वालों को आइना दिखाकर दुनिया को अलविदा कह गए हैं। मध्य प्रदेश के मुस्लिम आईएएस अफसर नियाज खान की जीव हत्या न करने की बात को ईश मोहम्मद पूरी तरह से सही ठहरा गए हैं। और आज नहीं तो कल सभी को इस विषय पर गहन विचार करना ही पड़ेगा। एक भक्त के देवी को बलि देने के सवाल के जवाब में संत प्रेमानंद महाराज ने देवी के नाम पर बकरे या किसी जीव की बली देने वालों पर आक्रोश जताया और समझाइश दी कि किसी जीव का खून बहाकर देवी को खुश नहीं किया जा सकता। देवी तो असुरों का नाश करती है और खुद किसी जीव का खून नहीं पीती। जो इस तरह जीव हत्या करते हैं उन्हें इसका दंड अवश्य भुगतना पड़ेगा। संत प्रेमानंद जी की यह बात जीव हत्या करने वाले सभी धर्म संप्रदाय के लोगों पर बराबरी से लागू होती है। और ईश मोहम्मद खुद की कुर्बानी देकर शायद यही संदेश देकर गए हैं कि यदि बकरे को बेटे की तरह पाल पोसकर कुर्बानी देकर यदि किसी को गर्व महसूस होता है, तो खुद की या खुद के बेटे की कुर्बानी देकर कभी महसूस जरूर करना चाहिए कि वास्तव में जीव हत्या और अपने बेटे या खुद की कुर्बानी में कितना फर्क है और क्या यह कलेजा किसी के पास है? जिसके पास इतना कलेजा हो, वही किसी जीव की कुर्बानी देने का सही हकदार है।

यह घटनाक्रम उत्तर प्रदेश के देवरिया के गौरीबाजार थाना क्षेत्र के उधोपुर गांव में घटा। यहां बकरीद के दिन नमाज अदा कर एक वृद्ध ने अपनी कुर्बानी दे दी। वृद्ध ने एक पत्र में लिखा है, जिसमें इंसान बकरे को अपने बच्चे की तरह पाल पोस कर बड़ा कर कुर्बानी देता वह भी जीव है। कुर्बानी करना चाहिए। मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्लाह के रसूल के नाम से कर रहा हूं।

ग्राम उधोपुर निवासी ईश मोहम्मद उम्र 60 वर्ष, पुत्र स्व. मोहम्मद बरसाती अंसारी प्रत्येक बकरीद के पूर्व आंबेडकर नगर के किछौछा स्थित सुल्तान सैयद मकदुम अशरफ शाह मजार पर जाते थे। इस बार भी गए थे, जहां से शुक्रवार की दोपहर वापस घर आए। शनिवार को बकरीद पर मस्जिद से सुबह की नमाज अदा करने के बाद करीब दस बजे घर पहुंचे। इसके बाद अपनी झोपड़ी में सोने चले गए। करीब एक घंटे बाद झोपड़ी से कराहने की आवाज सुनकर जब उनकी पत्नी अंदर पहुंची तो वहां का दृश्य देखकर उनके होश उड़ गए। शोर सुनकर गांव वाले दौड़ पड़े। गांव वालों ने देखा कि ईश मोहम्मद अपने गले को बकरा हलाल करने वाले चाकू से काटकर तड़प रहे थे। लोगों ने तत्काल पुलिस और एंबुलेंस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने ईश मोहम्मद को गंभीर अवस्था में इलाज के लिए देवरिया मेडिकल कॉलेज पहुंचाया।

यहां हालत नाजुक देख प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टर ने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया, जहां इलाज के दौरान देर शाम ईश मोहम्मद की मौत हो गई। पुलिस के अनुसार ईश मोहम्मद ने अंधविश्वास में आकर अपनी बली देने के लिए चाकू से गला रेता था। जिसके लिए परिजनों को आगाह कर ईश मोहम्मद ने बाकायदा पत्र लिखकर बताया है।

पत्र में उसने लिखा है कि इंसान बकरे को अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा कर कुर्बानी देता, वह भी जीव है। कुर्बानी करना चाहिए, मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्लाह के रसूल के नाम से कर रहा हूं। मेरी मिट्टी या कब्र घबरा कर मत करना, कोई मुझको कत्ल नहीं किया है।सकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं।

वास्तव में ईश मोहम्मद की कुर्बानी, कुर्बानी के नाम पर जीव हत्या करने वालों को आइना दिखा रही है। और वक्त के साथ इस प्रथा में बदलाव कर जीवों के प्रति दया का भाव रखने की अपील कर रही है। और वक्त एक दिन यह गवाही देगा कि ईश की कुर्बानी बेकार नहीं होगी। कम से कम भारत में एक दिन आएगा जब जीव हत्या की यह प्रथा अतीत के सागर में डूब जाएगी। उसकी जगह प्रतीकात्मक कुर्बानी का एक युग आएगा। और ईश मोहम्मद की जीव हत्या न करने की करुण पुकार मुस्लिम संप्रदाय में भी इंसानियत और जीव मात्र के प्रति प्रेम का नया इतिहास रचेगी। विनम्र आग्रह है कि ‘यह आलेख किसी व्यक्ति या संप्रदाय को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं है बल्कि ईश मोहम्मद के सच्चाई से भरे भावों को समर्पित है… क्योंकि ईश मोहम्मद की कुर्बानी बड़ा संदेश देती रहेगी…।’