घोसलों का विज्ञान -5 : संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण, तेरी सुरीली प्रणय राग सुन कर

घोसलों का विज्ञान -5

हॉर्न बिल की अनूठी प्रणय गाथा—

संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण,
                      तेरी सुरीली प्रणय राग सुन कर

डॉ स्वाति तिवारी

आज हम बात कर रहे है एक खास पक्षी और उसके घोसलों के बारे में .जानते है यह शुभ माना जाता है और इसको धनेश कहा जाता है ,कहीं कहीं यह धन चिड़ी भी  बुलाया जाता है .एक मिथक ने (इसके सिंग मतलब   चोंच पर बने उभार को अपने पास रखने से धन की प्राप्ति होती है ) इनको विलुप्त होने की स्थिति में ला दिया है . यह प्रजाति लगभग पूर्ण तया वानस्पतिक होती है और बहुत ही कम अवसरों पर भूमि पर आती है, जहां से वे गिरे हुए फल उठा सकें या धूल में नहा सकें. अब  सहज सवाल है ऐसा पक्षी  है कौन सा ?
ख़ास   रोचक यह कि इसके नाम पर एक बड़ा उत्सव भी होता है “हॉर्नबिल फेस्टिवल”.  हॉर्नबिल फेस्टिवल का आयोजन नागालैंड की राजधानी कोहिमा में हर साल दिसंबर महीने में किया जाता है। यह कार्यक्रम नागा हेरिटेज विलेज किसामा में आयोजित किया जाता है, जो कोहिमा से लगभग 12 किमी दूर है। फेस्टिवल का उद्देश्य नागालैंड की समृद्ध संस्कृति को पुनर्जीवित करना और संरक्षित करना है।। नागालैंड की क्षेत्रीय संस्कृति और परंपरा दिखाने वाला हॉर्नबिल फेस्टिवल हर साल एक से 10 दिसंबर तक आयोजित होता है। इस फेस्टिवल में बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं .इस फेस्टिवल का नाम हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर रखा गया है ।

हॉर्नबिल उत्सव | GShindi.com

इस पक्षी के पंख नागा समुदाय के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी का हिस्सा होते हैं। समारोह में नृत्य प्रदर्शन, शिल्प, परेड, खेल, भोजन के मेले और कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। पक्षी की इस प्रजाति की पहचान ‘ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल’ (एन्थ्राकोसेरोस अल्बेरोस्ट्रिस) के रूप में की गई है। इसके प्रभावशाली आकार और रंग ने इसे कई आदिवासी संस्कृतियों और रीति-रिवाजों में महत्वपूर्ण बना दिया है।

नागालैण्ड के आदिवासी समूह द्वारा मनाई जाती है हॉर्नबिल उत्सव, जानिए क्या है खास? | Hornbill Festival in Nagaland; Know- Dates, Attractions, Things to Do and Activities - Hindi Nativeplanetघोसलों का विज्ञान :फूलों से घरोंदा सजाने वाला अनोखा पक्षी बोवर बर्ड

भारत में इसकी सर्वाधिक दिखाई देने वाली प्रजाति है ग्रे हॉर्नबिल . ग्रेट हॉर्नबिल लंबे समय तक जीवित रहता है, लगभग 50 वर्षों तक कैद में रहता है.ग्रेट हॉर्नबिल भारत में केरल और अरुणाचल प्रदेश का राज्य पक्षी है । ग्रेट हॉर्नबिल का उपयोग केरल यूनाइटेड एफसी के लोगों के रूप में किया जाता है, जो कोझीकोड , केरल, भारत में स्थित एक भारतीय पेशेवर एसोसिएशन फुटबॉल क्लब है, जो आई-लीग 2 डिवीजन और केरल प्रीमियर लीग में प्रतिस्पर्धा करता है.बीएनएचएस लोगो है महान हॉर्नबिल , विलियम नाम के एक महान हॉर्नबिल से प्रेरित है, जो 1894 से 1920 तक सोसायटी के परिसर में रहता था .Great Hornbill Images – Browse 3,432 Stock Photos, Vectors, and Video | Adobe Stock

विलियम का जन्म मई 1894 में हुआ था और तीन महीने बाद सोसायटी को एच। इंगल की कारवार द्वारा प्रस्तुत किया गया था। वह अपने तीसरे वर्ष के अंत तक अपनी पूरी लंबाई (4.25 फीट (1.30 मीटर) तक पहुंच गया था । उसके आहार में फल, (जैसे पौधे और जंगली अंजीर) और जीवित चूहे, बिच्छू और सादे कच्चे मांस भी शामिल थे, जिन्हें वह बड़े चाव से  खाता रहा । वह स्पष्ट रूप से पानी नहीं पीता था, और न ही नहाने के लिए उपयोग करता था। इस प्यारे से पक्षी  विलियम को अपनी चोंच के साथ कुछ 30 फीट की दूरी से उस पर फेंके गए टेनिस गेंदों को पकड़ने के लिए जाना जाता था।AMOD VAIDYA on Twitter: "#xtremephilately Bombay Natural History Society ( BNHS), Mumbai. Founded in 1883. Stamp was released in 1983 on its centenary. The BNHS logo is the great hornbill, inspired by

सदियों तक अपोलो स्ट्रीट में सोसाइटी के कमरे में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति द्वारा  महान भारतीय हॉर्नबिल को याद किया जाएगा, जिसे “ऑफ़िस कैनरी” के रूप में जाना जाता है, जो पोलार्ड की कुर्सी के पीछे स्थित रहा ।महान हॉर्नबिल को नेपाल में होमराई कहा जाता है (इसलिए हिमालय की उप-प्रजाति का नाम) और बनराव , दोनों का अर्थ “जंगल का राजा” है। इसे मलयालम में “वेज हम्बल” कहा जाता है और हम धनेश कहते है .

                             हॉर्नबिल पक्षी (Hornbill Bird) एशिया, अफ्रीका, मलेशिया में मुख्यतः मिलता है। भारत में भी हॉर्नबिल पाया जाता है। इसकी मुख्यतः 55 प्रजाति संसार भर में मिलती है। भारत में 9 प्रजाति पायी जाती है। भारत की मुख्य प्रजाति इंडियन ग्रे हॉर्नबिल है ।ग्रेट हॉर्नबिल एक बड़ा पक्षी है, जो 95-130 सेमी (37-51 इंच) लंबा है, जिसमें 152 सेमी (60 इंच) पंख और 2 से 4 किलो वजन (4.4 से 8.8 पाउंड)होता  है। यह सबसे भारी, लेकिन सबसे लंबा नहीं, एशियाई हॉर्नबिल है (उसी तरह के भारित हेलमेट वाले हॉर्नबिल के बाद दूसरे स्थान पर है, जो बाद के बेहद लंबी पूंछ वाले पंखों के कारण है)। इस पक्षी की मादाएं नर से छोटी होती हैं और लाल आंखों के बजाय नीले-सफेद रंग की होती हैं, हालांकि कक्षीय त्वचा गुलाबी रंग की होती है। अन्य हॉर्नबिल की तरह, उनके पास प्रमुख “पलकें” हैं। इनका सिंग (कास्क )खोखला होता है यह भी माना जाता है कि यह यौन चयन का परिणाम है । नर हॉर्नबिल को हवाई कैस्क बटिंग में लिप्त होने के लिए जाना जाता है, जिसमें पक्षी उड़ान में एक-दूसरे से टकराते हैं  । हॉर्नबिल की सबसे प्रमुख विशेषता इसके विशाल बिल के शीर्ष पर चमकीले पीले और काले रंग का कास्क है । सामने से देखे जाने पर कास्क यू-आकार का दिखाई देता है, और शीर्ष अवतल होता है, जिसके किनारों पर दो लकीरें होती हैं, जो सामने की ओर बिंदु बनाती हैं, इसकी लैटिन प्रजाति एपिथेट बाइकोर्निस (दो-सींग वाला) है ।

प्रजनन काल (जनवरी से अप्रेल तक  ) के दौरान बड़े हॉर्नबिल बहुत मुखर हो जाते हैं। वे ज़ोर से युगल गीत गाते हैं, जिसकी शुरुआत नर द्वारा एक सेकंड में एक बार दिए जाने वाले ज़ोर से “कोक” से होती है, जिसमें मादा शामिल हो जाती है। जोड़ी फिर एक स्वर में पुकारती है,जो गर्जना और गान  के तेज मिश्रण में बदल जाती है। वे घोंसले बनाने एवं  शिकार के लिए सघन  जंगलों को पसंद करते हैं। बड़े, ऊंचे और पुराने पेड़, विशेष रूप से उभरे हुए पेड़ जो छत्र से ऊपर उठते हैं, घोंसले के   लिए पसंद किए जाते हैं .

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इनके बारे में यह अध्ययन किया गया है कि ये एक विवाह जोड़ी बंधन बनाते हैं और २-४० पक्षियों के छोटे समूहों में रहते हैं। इनके 20 पक्षियों तक के समूह प्रेमालाप प्रदर्शन करते भी देखे गए हैं।

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सभी हॉर्न बिल में लगभग एक सी आदत होती है ये जंगली फलों ,,पीपल ,बरगद ,जंगली अंजीर ,जामुन वाले इलाके में रहती है .हॉर्नबिल हमेशा समूह में अर्थात झुंड में रहती है और झुण्ड के झुण्ड एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर आना जाना करते  देखे जाते है .लगता है जैसे किसी का अनुसरण कर रहे हों .इस दौरान एक ख़ास किस्म की बोली  बोलती है जैसे संवाद कर रहें  हों .

ये  घोंसले खोखले प्राकृतिक तरीके से बने किसी कोटर में बना  लेते है .सामान्यतः किसी पेड़ के खोखले तने में .खोखला तना देख मादा उसने चली जाती है फिर शुरू होती है उसके द्वार बंद करने की निर्माण प्रक्रिया की सबसे अलग कहानी मादा हॉर्नबिल एक बड़े पेड़ के तने के खोखले में अपना  घोंसला बनाती है, मुख्य रूप से मल से बने प्लास्टर एवं नर पक्षी द्वारा चोंच में लाये कीचड़ गीली मिटटी  से  ये पेड़ के उस कोटर का खुला भाग बंद करने लगती है एक तरह से द्वार  को सील कर देती है .

Viral video: Male Great Hornbill feeds partner inside nest | Viral News, Times Now

कहानी सुनाते हुए दीवार में चुन दी गयी अनारकली की कथा स्मरण में उभरने लगती है ,लेकिन यहां यह फैसला और काम दोनों ही मादा पक्षी का स्वयं का ही होता है .जब वह इसमें पूरी तरह बंद हो जाती है तब चोंच की सहायता से दीवार में एम् गोल छिद्र बना लेती है नर  पक्षी इस क्वारंटाइन अवधी में मादा पक्षी के लिए खाना लाने  का काम करता है और  दिवार में बने उस  छेद से मादा को भोजन पहुंचाना है .दीवार में बंद मादा अपने सारे पंख उतार कर बिछोना बनाती है और उस पर दो से चार तक अंडे देती है .जीवन निर्माण की यह सबसे कठिन प्रक्रिया है ,बंच्चे के निकलने   के बाद मादा वह दिवार  तोड़ देती है फिर परिवार के दायित्व पालन में दोनों नर ओर मादा दोनों लग जाते है कहा जा सकता है कि वह वहां कैद रहती है, जब तक कि चूजे आधे विकसित नहीं हो जाते, तब तक वह अपना भोजन लाने के लिए नर पर निर्भर रहती है। इस अवधि के दौरान मादा पूरी तरह से मोल्ट से गुजरती है।

Chinese photographers capture rare pictures of great hornbill sealing up tree hole - People's Daily OnlineNature inFocus on Twitter: "Large charismatic birds with disproportionately large beaks and distinctive calls, #hornbills are the #farmers of our #forests. Today's #WildAboutFacts series focuses on these feathered foresters. Join us &4 ट्रैकर्स दिनचर्या और व्यवहार पर रख रहे नजर, इस पक्षी की प्रेम कहानी है मशहूर | Udanti Sanctuary buzzing with the chirping of rare hornbill birds, 4 trackers studying routine and

युवा चूजों के पंख नहीं होते हैं और वे बहुत मोटे दिखाई देते हैं।  क्लच में मादा   एक या दो अंडे होते हैं, जिसे वह 38-40 दिनों तक इनक्यूबेट करती है। मादा घोंसले के छेद से मल त्याग करती है, जैसा कि दो सप्ताह की उम्र से चूजे करते हैं। जैसे ही मादा घोंसले से निकलती है, चूजे इसे फिर से सील कर देते हैं।

Knobbed Hornbill | Animal Database | Fandom

युवा पक्षियों के पास एक मास्क का कोई निशान नहीं है। दूसरे वर्ष के बाद सामने का छोर कल्मेन से अलग हो जाता है, और तीसरे वर्ष में यह दो किनारों के साथ एक अनुप्रस्थ अर्धचंद्र बन जाता है, जो बाहर और ऊपर की ओर बढ़ता है, जबकि पूर्वकाल पीछे के छोर की चौड़ाई तक चौड़ा होता है। पूर्ण विकास में पांच साल लगते हैं।
प्रजाति मुख्य रूप से मैदानी इलाकों में लगभग 2,000 फीट (610 मीटर) तक पाई जाती है।  यह उन शहरों में भी पाया जाता है जहां पुराने एवेन्यू के पेड़ हैं।
धनेश या इंडियन हॉर्नबिल एक निष्ठा से एक ही साथी अपना जोड़ा बनाते है और जीवन भर अपने एक ही जोड़े के साथ रहते है.
Hornbill Bird:नर की मृत्यु के बाद मादा और बच्चों की भी हो जाती है मौत, जानें कारण - Hornbill Birds Couple Move Together Female Locks Herself In The Nest Male Feeds Family -
इस पक्षी की संख्या तेजी से कम हो रही है क्यूंकि लोग बहुत ही ज्यादा मात्रा में इसका शिकार कर रहे है.
अगर हॉर्नबिल का शिकार न किया जाए तो यह पक्षी 20 से 50 साल तक जीवित रहता है इन बड़े और अनोखे पक्षियों की घोंसला बनाने की आदत भी सामान्य से अलग होती है. हॉर्नबिल पेड़ के कोटरों में घोंसला बनाते हैं. मादा हॉर्नबिल अपने आप को कोटर में बंद कर लेती हैं और अपने पंखों को बिछाती हैं, अंडे देती हैं और उन्हें हैं. इसमें 90 से 130 दिन तक लग सकते हैं. भारतीय ग्रे हॉर्नबिल आमतौर पर ऊंचे पेड़ों पर पेड़ों के खोखले में घोंसला बनाते हैं। एक मौजूदा खोखला खोदने के लिए आगे खुदाई की जा सकती है। मादा घोंसले के खोखले में प्रवेश करती है और घोंसले के छेद को सील कर देती है, केवल एक छोटा ऊर्ध्वाधर भट्ठा छोड़ती है जिसके माध्यम से नर उसे खिलाता है। मादा द्वारा घोंसले के प्रवेश द्वार को उसके मल मूत्र और नर द्वारा आपूर्ति की गई मिट्टी के छर्रों का उपयोग करके सील कर दिया जाता है। घोंसले के अंदर, मादा अपने उड़ने वाले पंखों को पिघलाती है और अंडे देती है । मादा के पंखों का फिर से बढ़ना चूजों की परिपक्वता के साथ मेल खाता है, जिस बिंदु पर घोंसला खुला टूट जाता है। अनोखी है इसकी यह प्रजनन कथा .४० दिन पति बाहर  रक्षा करते हुए कई बार खुद ही शिकार हो जाता है ,तब मादा का संघर्ष कितना कठिन हो जाता होगा ?पंख नहीं होने पर वह ना उड़ सकती है ना भोजन ला सकती है क्योंकि प्रतीक्षा की यह अवधी उसको सिर्फ प्रतीक्षा की ही अनुमती देती है .

Hornbills of North Bengal

नई कोंपल में से कोकिल, कभी किलकारी सानंद।
दृग-जल से सानंद, खिलेगा कभी मल्लिका-पुंज।

Taylor Bird,घोसलों का विज्ञान: टेलर बर्ड की सिलाई कला , पत्तों को चोंच से सीलकर बनाया घोंसला 

Author profile
Dr. Swati Tiwari
डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : stswatitiwari@gmail.com

मो. : 7974534394