Taliban (तालिबान) की संघ से तुलना गुलाम मानसिकता और तुष्टिकरण की पराकाष्ठा

2002
भारत राष्ट्र इस समय ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां से आगे जाने का रास्ता तो है, लेकिन चारों तरफ ऐसा दृष्टि भ्रम रचा हुआ है कि पथिक दुविधाग्रस्त है। प्रौढ़ पीढ़ी को बखूबी याद होगा कि अस्सी,नब्बे के दशक में हजामत की दुकान पर टेबल पर और कुर्सी के पीछे की तरफ शीशा इस तरह लगा होता था कि परत-दर-परत आपकी छवि दखिाई देती थी। अनेक मंदिरों में भी इस तरह के शीशे दीवारों पर जड़े हैं, जो अनगिनत छवि भ्रम बनाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल इस समय के राष्ट्र नायकों का है, जिनके सामने छवि भ्रम रचा गया है,ताकि वे या तो जहां हैं, वही ठहर जायें या जिधर भी चलने लगेे, शीशे से टकरा जायें। इसकी तीव्रता अफगानिस्तान के तालिबानस्तान बन जाने के बाद से बढ़ती ही जा रही है। हालांकि ये मूढ़मति लोग नहीं जानते कि इस समय देश का नेतृत्व वो दिव्य दृष्टि रखता है, जो शीशों के पार देखने में पारंगत है।
कितने अफसोस की बात है कि जो देश  सदियों तक जिन आततायियों के जुल्मो सितम सहता रहा, आज चंद मंद बुद्धि तबका ,भारत के जग विख्यात समाजसेेवी,समर्पित राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तुलना उस (तालिबानी) Taliban के साथ कर रहे हैं, जिनका राई-रत्ती भर संबंध मानवीय सरोकारों से नहीं है। जिनके लिये हिंसा मूल मंत्र है, भयाक्रांत करना जिनका चरित्र है, महिला अत्याचार-व्याभिचार जिनका धर्म है, क्रूरता जिनके लिये खिलौनों से खेलने जैसा है, दोगलापन जिनकी फितरत है और जिनका अतीत,वर्तमान रक्तरंजित,विश्वासघाती है। बेहद घटिया और बेगैरतमंद लोग हैं वे जो अपने मुल्क की एक उत्कृष्ट सामाजिक संस्था के प्रति ऐसा बैर भाव केवल इसलिये रखते हैं कि उस संस्था ने देश को एक ही खानदान के राजनीतिक वर्चस्व से मुक्त कर देने वाले सशक्त राजनीतिक दल को खड़ा किया। महज इसलिये कि संघ ने देश के बहुसंख्यक समाज के एकत्रीकरण और जागरण का अभियान चलाया। इसलिये भी कि उसने किसी प्रचार तंत्र के प्रबंधन के बिना जन-जन के बीच देशभक्ति,राष्ट्रवाद का बीजारोपण पर उसके वट वृक्ष बन जाने की कठोर तपस्या की और अनुकूल नतीजे आने के बावजूद न तो अपने को पराक्रमी साबित करने की चेष्टा की, न ही सर्वशक्तिमान हो जाने की घोषणा, न दंभ में भरकर अवांछित आचरण की ओर बढ़े।।
हैरत होती है जब दुनिया में आतंकवाद संबंधी किसी गतिविधि के होने,पनपने पर भारत के कुछ लोग या तो सीधी प्रतिक्रिया से साफ बचते हैं या घुमा फिराकर बात करते हैं। उसकी वजह है कि ये तमाम घटनायें एक धर्म और जाति विशेष के लोग करते हैं, जो कभी पाकिस्तान मूल के होते हैं, कभी सीरिया,कभी इराक-ईरान तो कभी अफगानिस्तान मूल के। याने ये सब के सब इस्लाम को मानने वाले होते हैं। ऐसे वक्त देश में रहने लायक माहौल न बचने, गंगा-जमुनी संस्कृति के मिट जाने,सांप्रदायिक सौहाद्र्र के खत्म हो जाने या खतरे में पड़ जाने के पैरोकार अपनी जबान ऐसे सिल लेते हैं, जैसे मुंह में जबान ही न हो। हां, देश में कहीं निजी झगड़े में किसी मुस्लिम के प्रभावित होने पर समूची मानवता को खतरे में पड़ता देखने वाले टिड्डी दल की तरह झपट पड़ते हैं। ऐसे दोगले तबके की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है, जो भारत के बहुसंख्यक समाज को निशाना बनाने का कोई मौका नही चूकते, लेकिन विश्व समुदाय के आहत होने वाले मसलों पर शुतुरमुर्ग की तरह अनदेखी की रेत में गर्दन डाले रखते हैं।
आप याददाश्त पर जितना जोर डाल सकते हैं, डाल लें और बतायें कि अफगानिस्तान में (तालिबानी) Taliban शासन की वापसी के बाद किस हामिद अंसारी,राजदीप सरदेसाई,कन्हैया कुमार,तापसी पन्नू,अनुराग कश्यप,शेखर गुप्ता,आमिर खान,मुनव्वर राना,जावेद अख्तर,राहुल गांधी,अखिलेश यादव,मायावती,ममता बैनर्जी,अरुंधति रॉय,मनमोहन सिंह वगैरह-वगैरह ने तालिबानी आतंक,अत्याचार की भत्र्सना की,कोसा,नसीहत दी,घोर निंदा की और कहा कि तालिबानी शासन के साथ भारत सरकार का जो भी रवैया रहेगा, हम उसके साथ हैं या  (तालिबानी) Taliban  का भारत में किंचित भी दखल बरदाश्त नहीं करेंगे या उन्होंने मानवता को शर्मसार किया है । आधे अगस्त के बाद से अफगानिस्तान से तालिबानियों के जिस तरह के वीडियो आ रहे हैं, वे संपूर्ण दुनिया को स्तब्ध कर रहे हैं, किंतु मजाल है कि भारत का कथित बुद्धिजीवी तबका, कथित सुधारवादी,प्रगतिशील,इस्लाम को मानने वाले नामचीन लोगों के मुंह से एक शब्द भी फूटा हो। इन वीडियो में तालिबानी वहशी मासूम लड़कियों को घरों से घसीटकर निकाल कर ले जा रहे हैं । पूर्व शासन के समर्थकों को चुन-चुन कर पंक्तिबद्ध कर गोलियों से भून रहे हैं। सरकार का हिस्सा रहे सैन्य,प्रशासनिक अधिकारियों,राजनेताओं का कत्ले आम कर रहे हैं।
 दरअसल, भारत में मौजूद ये वे ही लोग हैं जिन्होंने अतीत में भी भारत के वीरों से गद्दारी की है, दुश्मनों को न्यौत कर राज्यों और राजाओं से विश्वासघात किया है, शूरवीरों के ठिकानों तक आक्रमणकारी सेनाओं को पहुंचाया है, हरम में जबरन धकेल दी गई भारतीय महिलाओं की चीत्कारें भी जिनके लिये बेअसर रही, मासूम बच्चों की तलवारों,छुरों से गर्दन रेत दिये जाने पर आंखें मूंद रखी थीं। वे वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तुलना तालिबान से कर रहे हैं और अपने मूल गद्दार चरित्र का निर्वाह ही कर रहे हैं। तब ऐसे लोग मनसबदारी,जागीरें,राय बहादुरी,सर के तमगे पाकर कुप्पा होते थे और अब धन,सुरा,सुंदरी,अंतरराष्ट्रीय यात्रायें,पुरस्कार,सम्मान पाने को ईमान का कटोरा फैलाये खड़े नजर आते हैं। तरस आता है, ऐसे दीन हीन लोगों पर। ये बस इतना ध्यान रख लें, यह इक्कीसवीं सदी का भारत है। न तो उनका गुनाह माफ करेगा, न उनके अपराध की अनदेखी करेगा। भारतीय जनमानस जागृत,चेतनावान,संगठित और इतना सक्षम हो चुका है कि वह इन सपोलों को उनके बिल के अंदर ही स्थायी तौर पर ऐसा बंद करेगा कि वे सदियों तक बाहर नहीं आ पायेंगे।