वागड़ की अजब ग़ज़ब कहानी: एक अनूठी बेडियू परम्परा,जो कुप्रथा में बदलते ही हुई समाप्त

देव दिवाली पर सारे शहर की बला को अपने ऊपर लेता था बेड़िया का किरदार निभाने वाला शख़्स

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वागड़ की अजब ग़ज़ब कहानी: एक अनूठी बेडियू परम्परा,जो कुप्रथा में बदलते ही हुई समाप्त

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

आज पूरे भारत में ब्रह्मा की पूजा के लिए प्रसिद्ध एक मात्र मंदिर वाले राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा पर विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला अपने चरम उत्कर्ष पर हैं और भारी संख्या में देशी विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। आज ही के दिन देश में गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस प्रकाश पर्व भी उत्त्साह के साथ मनाया जा रहा है,वहीं दक्षिणी राजस्थान के वागड़ अंचल में देव दिवाली की धूम है और हर घर दीपावली की तरह रोशन हों रहा हैं।

 

स्वच्छता के मामले में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हुए दक्षिणी राजस्थान के बाँसवाड़ा संभाग के वागड़ अंचल में ‘हिल्स नगरी’ के रुप में विख्यात ऐतिहासिक डूंगरपुर नगर में ‘बेडियु’ नाम की परम्परा कुप्रथा, में बदलते ही हुई समाप्त हो गई है।

 

यह ‘बेडियु’ नाम की कुप्रथा और अनूठी परम्परा सेकडों वर्षों तक चलती रही ।इस परम्परा में देव दिवाली से पहले स्वच्छता को अंगीकार करने वाले सारे शहर की बला को एक शख़्स अपने ऊपर लेकर नगर से दूर जाकर त्याग देता था और यह किरदार निभाने वाला व्यक्ति ‘बेड़िया’ (बलाओं को दूर ले जाने वाला) कहलाता था। कालान्तर में साक्षरता की दृष्टि से देश का पहला जनजाति जिला और स्वच्छता का आदर्श शहर बने डूंगरपुर में यह परम्परा कुप्रथा में बदलने के बाद अब बंद हो गई है ।हालाँकि कुछेक ग्रामीण इलाक़ों में अब भी यह प्रथा यथावत बताई जाती है।

दिवाली के एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौदस छोटी दिवाली के रूप में विख्यात है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर नामक असुर का वध करने के कारण इसे ‘नरक चौदस’ और ‘रुप चौदस’ भी कहा जाता हैं।भगवान राम के श्रीलंका पर विजय के पश्चात अपने घर अयोद्धा लोटने पर मनायें जाने वाले दिवाली के पावन पर्व के अन्तर्गत कई दिनों तक धनतेरस भाई दूज लाभ पंचमी छठ पूजा आदि पर्व की चारों ओर काफी धूम रहती है। व्यापार करने वाले इस मौके को अपने नए बही खातों की पूजा का नए वर्ष भी मानते हैं।

वागड़ अंचल में दिवाली पर ‘आज दिवारी, काल दिवारी, पमने दाडे मेरियु’ कहावत की गूंज रहती है, वहीं देव दिवाली से एक दिन पूर्व यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चौदस को वागड़ अंचल के डूंगरपुर नगर में किसी समय एक पावन उद्देश्य से शुरु हुई ‘बेडियु’ नामक अनूठी परम्परा निभाई जाती थी ।यह परम्परा एक व्यक्ति विशेष द्वारा सारे शहर की बला को अपने ऊपर ले कर उसे दूर क्षितिज तक ले जाकर त्याग देने से जुड़ी थी । इस परम्परा के पीछे मुख्य उद्देश्य नगर की स्वच्छता होता था लेकिन कतिपय ढंग से उसे शहर को बुरी नजर से बचाने के अंध विश्वास से भी जोड़ दिया गया था।

 

‘बेडियु’ की इस परम्परा का नायक एक बेडिया यानि बलाओं को दूर ले जाने वाला यह शख़्स होता था जोकि अपनी आँखों को छोड़ कर अपने पूरे शरीर को मोटे कपड़ों के आवरण में ढक कर अपने सिर पर जलते हुए दीये को एक छोटे घड़े पर रख कर संध्याकाल में शहर के मध्य से गुजरता था। नगर परिक्रमा के दौरान इस बेड़िये के आगे कुछ लोग ढोल ताशा और थाली बजाते चलते थे। नगर के सभी व्यक्ति पुरूष, महिलाएं, बाल एवं युवा उस बेडिये पर अपने घर का कचरा, साल भर इकट्ठे किए हुए बेकार सामान, महिलाओं के बाल आदि बेडिया का किरदार निभाने वाले उस व्यक्ति पर फेंक कर अपने परिवार की बला और वर्ष पर्यन्त जाने-अनजाने में हुए पापों को दूर करने की परम्परा को निभाते थे। प्रायः यह रस्म अदायगी सौहार्दपूर्ण तरीक़े से ही होती थी ताकि बेड़िया बनने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचें और वह घायल भी नहीं होंवे। इस तरह बेडिया सारे शहर की बला को अपने ऊपर ले कर नगर के सुदूर एक भाग में जा कर अपने सिर के उपर रखा हुआ छोटा घड़ा और दीपक दूर एक स्थान पर रख देता था और तत्पश्चात् डूंगरपुर नगर के पातेला तालाब में नहा धोकर और शुद्ध हो कर तथा साफ़ सुथरे कपड़े पहन लेता था । इस प्रकार के नाट्य के बाद वह व्यक्ति पुनः जीवन की मुख्य धारा में शामिल हो जाता था।

कालान्तर में बीतते समय के साथ कतिपय लोगों द्वारा स्वच्छता के पवित्र उद्देश्य और प्रेरणा देने वाले इस व्यक्ति का चयन समाज के पिछड़े और वंचित वर्ग से किया जाने लगा और शरारती तत्व और उद्दंड बच्चे उस पर कचरा बाल आदि के साथ कंकड़-पत्थर आदि भी फ़ैकने लगे। जिससे क्रोधित हो कर वह बेड़िया भी पलटवार करने लगा और इससे समाज में झगड़ा फसाद और विद्वेष की भावना बढ़ने लगी। इस प्रकार बेडियु के साथ दुर्व्यवहार में वृद्धि और सामाजिक समरसता घटने आदि घटनाओं के घटित होने तथा पापों का नाश होने के अन्ध विश्वास के दूर होने के साथ ही लोगों में साक्षरता और स्वच्छता की भावना आदि आदर्श वातावरण बढ़ने के कारण डूंगरपुर शहर में यह परम्परा धीरे-धीरे विलुप्त हो गई।

कार्तिक कृष्ण पक्ष में अमावस्या की काली रात में मनाए जाने वाले उजाला फैलाने वाला दीपावली का त्यौहार भारत में सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है।इस पावन पर्व की चकाचौंध में पन्द्रह दिनों बाद शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली देव दिवाली की चमक प्रायः फीकी सी रहती है लेकिन भारतीय संस्कृति में देव दिवाली को भी बहुत बड़ा त्यौहार माना जाता है। इस दिन पूरे भारत में ब्रह्मा मंदिर की पूजा के लिए पहचाने वाले अजमेर जिले के पुष्कर में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध कार्तिक पूर्णिमा मेला भारी संख्या में देशी विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसी दिन देश में गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस प्रकाश पर्व भी उत्त्साह से मनाया जाता है। साथ ही वागड़ क्षेत्र में देव दिवाली पर सारे शहर की बला को अपने ऊपर लेने की बेडियु की परम्परा और इसका किरदार निभाने वाले बेड़िया बनने की प्रथा अब समय के काल का ग्रास बन गई है और डूंगरपुर नगर देश प्रदेश में स्वच्छता का सिरमौर बन कर चमकते हीरे के रूप में उभरा है। डूंगरपुर को देश प्रदेश में यह गौरव दिलाने में यहाँ की नगरपरिषद के पूर्व अध्यक्ष के.के.गुप्ता और उनकी टीम का अभूतपूर्व योगदान रहा हैं।आम लोगों का मानना है कि वर्तमान नगर परिषद की टीम इसे और आगे बढ़ाने के प्रयास में अपेक्षित स्तर से ऊपर उठ नही पा रही हैं जिसकी वजह से डूंगरपुर नगर की आभा फिर से धूमिल सी होने लगी है लेकिन यहाँ के नागरिकों की जागरूकता और स्वच्छता के प्रति लगाव में कोई कमी देखी नही जा रही जिसकी वजह से नगर के ह्रदय स्थल गेप सागर झील को शोभा आज भी काँच की तरह चमक रही हैं।

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(इनपुट योगेन्द्र नाथ शर्मा)