
‘परिक्रमा कृपा सार’ के साए में बरसी ‘मोहन ज्ञान’ की सरिता…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
पथिक प्रहलाद पटेल की पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सार’ के विमोचन के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘ज्ञान’, ‘भक्ति’ और ‘भाव’ की जो सरिता बहाई, उसने परिक्रमा के सही मर्म को पथिक की तरह ही सबके सामने रख दिया। उन्होंने बताया कि जब कुछ समझ में ना आ रहा हो तो नर्मदा जी के किनारे जाकर बैठो। तब इस नाटक वाली दुनिया से अलग होकर तुम अपने स्व में आ जाते हो। पर उसके लिए भक्ति चाहिए और भाव चाहिए। नर्मदा जल को एचटूओ समझने वालों के लिए नर्मदा का मार्ग नहीं है। अगर भाव है तभी बोध होगा। उन्होंने सरल शब्दों में बहुत ही गूढ़ विषय को सबके सामने रखते हुए कहा कि यह दुनिया एक रंगमंच है और हम सब नाटक के पात्र हैं। हमें यह समझने की भूल नहीं करना चाहिए कि हम ही करने वाले हैं। भागवत ने कहा कि आज भले ही विज्ञान और तकनीक में प्रगति हुई है, लेकिन पर्यावरण बिगड़ा है, परिवार टूट रहे हैं और माता-पिता को सड़क पर छोड़ने जैसी स्थितियां पैदा हो रही हैं। नई पीढ़ी में संस्कारों की कमी और विकृत प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। भागवत ने संकेतों में बड़े-बड़े संदेश दिए। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई काम मत करो जिससे दूसरों को पीड़ा हो। मंच पर जब मोहन बोल रहे थे तो मध्य प्रदेश की सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री उनके सामने बैठे थे। उन्होंने भारत के प्राचीनतम से लेकर भविष्य के भारत की तस्वीर सबके सामने पेश की तो धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर भी तंज कसा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत सबकी भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए तेजी से विकास कर रहा है क्योंकि इसकी ताकत पारंपरिक सोच, ज्ञान, कर्म और भक्ति में है। उन्होंने कहा कि चर्चिल की भविष्यवाणी गलत साबित हुई और भारत तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, “अब इंग्लैंड खुद बिखरने की स्थिति में है, लेकिन भारत नहीं टूटेगा बल्कि आगे बढ़ेगा।” भागवत ने कहा कि भारत 3 हजार साल तक विश्वगुरु रहा और उस समय कोई वैश्विक संघर्ष नहीं था। उन्होंने दुनिया की समस्याओं के लिए स्वार्थी हितों को जिम्मेदार बताया। तो भविष्य के भारत की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि भारत जो बंटा था हम उसे भी वापस एक कर लेंगे।
संघ प्रमुख ने कहा कि गला काटने का काम, जेब काटने का काम पहले दर्जी करते थे, अब पूरी दुनिया कर रही है। बाज और कबूतर की कहानी सिखाती है कि ज्ञान और कर्म दोनों जरूरी हैं। और यह कहानी वास्तव में राजधर्म को भी परिभाषित करती है। राजा के लिए सभी प्रिय और बराबर होने चाहिए। वहीं ज्ञानी होकर निष्क्रिय रहना भी गड़बड़ी करता है। उन्होंने कहा कि जीवन एक नाटक की तरह है जहां हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होती है, लेकिन अंत में असली पहचान आत्मा की होती है।

संत ईश्वरानंद ने नर्मदा परिक्रमा को लेकर कहा कि जल, वायु, अग्नि, आकाश और यहां तक कि शरीर का खून भी लगातार परिक्रमा करता है। ऐसे में नर्मदा परिक्रमा का भी विशेष महत्व है। इसमें शामिल होकर हम सभी दिव्य अनुभव प्राप्त करते हैं। परिक्रमा केवल यात्रा नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति के साथ आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि राजनीति में बड़े लोगों की परिक्रमा करने वाले पद पाकर ऊपर उठ जाते हैं। इस तरह नर्मदा परिक्रमा करने वाले पथिक दिव्य अनुभव कर जीवन में ऊपर उठ जाते हैं।
पथिक के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने बताया कि उन्होंने दो बार मां नर्मदा की परिक्रमा का लाभ गुरु और संतों की कृपा से पाया है। मैंने पहले पुस्तक को छापने से मना कर दिया था, क्योंकि मेरा मकसद नर्मदा को ‘बेचना’ नहीं था। पर अब 65 वर्ष की उम्र में मित्रों के सुझाव पर उन्होंने परिक्रमा के पहले से लिखे हुए अनुभव को पुस्तक के रूप में सबके सामने लाया है।
जैसा कि खुद प्रहलाद पटेल ने स्वीकार किया कि संघ प्रमुख की उपस्थिति में पुस्तक के विमोचन से वह अभिभूत हैं। तो वास्तव में मंच पर दो कुर्सियों पर बैठे संघ प्रमुख मोहन भागवत और संत ईश्वरानंद और उनके सामने बैठे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, मंत्रीगण और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, प्रदेश महामंत्री हितानंद शर्मा सहित संगठन के लोग और खुद जिनकी पुस्तक का विमोचन हो रहा था वह प्रहलाद पटेल सहित गणमान्य नागरिक। ऐसे में कार्यक्रम स्थल, संत और संघ प्रमुख की ज्ञान सरिता से सराबोर था। पुस्तक के बारे में वास्तव में संघ प्रमुख ने चंद पंक्तियों में यही बताया कि पुस्तक के महत्व की वजह से वह नागपुर से इंदौर विमोचन के लिए आए क्योंकि संघ के मुखिया के पद पर बैठकर उनका यही दायित्व है। और सुझाव दिया कि पुस्तक की जटिलता के चलते इसे बड़े ध्यान से पढ़ना पड़ेगा। तो वास्तव में नर्मदा परिक्रमा करना जितना कठिन है तो परिक्रमा करने वाले पथिक के अनुभवों के सागर में इतनी आसानी से डुबकी कैसे लगाई जा सकती है… यही कहा जा सकता है कि पुस्तक को एक बार पढ़कर नर्मदा परिक्रमा के मर्म को समझने की एक कोशिश तो की ही जा सकती है।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





