सोशल मीडिया की आभासी दुनिया बढ़ा रही नकारात्मकता की प्रवृत्ति – डॉ हिमांशु यजुर्वेदी

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प्रसंगवश  – आत्महत्या निषेध दिवस पर विशेष

सोशल मीडिया की आभासी दुनिया बढ़ा रही नकारात्मकता की प्रवृत्ति – डॉ हिमांशु यजुर्वेदी 

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💥 डॉ हिमांशु यजुर्वेदी , मंदसौर

मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की प्रस्तुति

यकीनन आभासी दुनिया में कई तरह का नुकसान देश – दुनिया उठा रही है । बेशक़ कुछ हदतक जुड़ाव महसूस होता है , परन्तु वर्तमान समय में कम काम और अधिक लाभ की मानसिक वृति का मानस युवाओं के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है, यह कहना है मंदसौर के अपराध मनोविश्लेषक एवं मनोचिकित्सक डॉ हिमांशु यजुर्वेदी का ।

 

आंकड़े बताते हैं कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में कोई डेढ़ लाख लोगों की साल में मौतें होरही है जबकि चिन्ताजनक है कि अवसाद , मानसिक रुग्णता के कारण आत्महत्या करने वाले इससे अधिक होगये । इसमें युवाओं की संख्या ही अधिक है । जबकि युवा हमारे देश और समाज का भविष्य और स्तंभ है

ऐसे में यह बिंदु विचारणीय है ।

 

मोटिवेशनल स्पीकर एवं काउंसलर डॉ यजुर्वेदी ने एक विशेष चर्चा में बताया कि त्वरित और असीम लाभ के इसी आकर्षण के चलते अधिकांश युवा अनेक प्रकार के शार्टकट को आजमाने से भी नही चूक रहे ,

सबसे पहला आकर्षण जिससे आज का हर युवा प्रभावित है और कम समय में ज्यादा ख्याति प्राप्त करना चाहता है वो है सोशल मीडिया प्लेटफार्म।

ओर ये सोशल प्लेटफार्म चाहते है की ज्यादा से ज्यादा लोग उनके साथ जुड़े और अपना अधिकांश समय उस पर बिताए ताकि उनका प्लेटफार्म ट्रेंड करने लगे ।

उदाहरण के लिए फेसबुक, वाट्स एप, इंस्टाग्राम, स्नैप चैट आदि इसी तरह के अनेकों सोशियल एप युवाओं को कम समय में विडियो बनाकर वायरल करने के लिए प्रेरित करते है। जिससे अमूमन हर युवा कुछ अलग तरह के विडियो बनाकर खुद को बेहतर और सोशियल ट्रेंड बनाने के चक्कर में इस मायाजाल में उलझ जाता है। साथ ही उसकी लाइक, कमेंट्स और शेयर की बढ़ती लालसा उसको और ज्यादा समय यहां बिताने पर मजबूर करने लगती है। जब यहां किसी तरफ की सफलता हाथ नहीं लगती तब एक प्रकार का मानसिक अवसाद होने लगता है और सब कुछ खत्म होने जैसा महसूस होता है। निराशा भाव प्रवर्तित होने लगता है ।

 

इसी तरह कुछ युवा परिश्रम और पढ़ाई के रास्ते से भ्रमित होकर कम समय में लखपति और करोड़पति बनने की लालसा के चलते कई तरह के जुए से संबंधित एप्स पर भाग्य आजमाने निकल चलते है जैसे की लूडो गेम, कैरम गेम, तीन पत्ती, रमी या क्रिकेट के मैचों प्रकारांतर में सट्टा प्रवर्ति पर रूपयो के दांव लगाने के लिए भी अपना सब कुछ झोंक देते है। उधार लेकर भी अर्थ लाभ की चाह में सब कुछ गंवा बैठते हैं ।

शुरू में भले ही ये तनिक लाभ आकर्षक लगता है या छोटी छोटी जीत उत्साह बढ़ा देती है किंतु धीरे धीरे इसकी लत समय और पैसा दोनो खत्म करती जाती है और जब सब कुछ उनके अनुरूप नहीं होता है तो युवा वर्ग कर्जदार होता जाता है साथ ही समय पर रुपए नही चुका पाने और सामाजिक अपमान के भय के चलते सिर्फ आत्महत्या ही एक विकल्प के रूप में उनको परिलक्षित होता है।

और अंत में सिर्फ पछतावे के साथ लाभ का छलावा जीवन खत्म कर चुका होता है।

 

डॉ यजुर्वेदी बताते हैं कि अनेक फाइनेंशियल एप्स जो चुटकी में लोन ट्रांसफर करने से लेकर लाखो के लेनदेन को बिना किसी वैद्यता के, गारंटी के पैसा देने का दावा करते है वो युवाओं को अनेक छिपी हुई शर्तो में उलझा देते है और समय पर पैसा न जमा कर पाने पर अनेक तरह के दबाव उन पर बनाए जाते है जिससे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल होने से बचाने के लिए ऐसे अवसादग्रस्त लोगों को सिर्फ आत्महत्या का एक ही रास्ता युवाओं को नजर आता है। अंदर की घुटन और बाहरी दबाव में भीतर से टूट चुके लोग अपने जीवन को ही समाप्त करने जैसा कायरतापूर्ण निर्णय कर लेते हैं । ऐसी स्थिति में परिवार की क्या हालत होती है कल्पना की जासकती है ।

ऐसी सब घटनाएं आज के परिपेक्ष्य में हमारे इर्द गिर्द समाज में घट रही है हमारे अनेक परिचित और घर परिवार के युवा इसकी चपेट में भी आ चुके है, शुरुआत में यह सब बड़ा आकर्षक और शाश्वत लगता है किंतु धीरे धीरे यह एक तरह के नशे की तरह अपना आदि बनाने लगता है और कई बार मानसिक संतुलन को भी प्रभावित करता है। खोने का डर, अधिक पाने की लालसा, कम समय में प्रसिद्धि, सफलता का शार्टकट, भौतिक सुविधाओ और विलासिताओं पर किए जाने वाले अंधाधुंध खर्च ये सब लगातार मानसिक दबाव बनाने का काम करते है जिसके कारण युवा एकांकी जीवन जीने लगता है, अंतर्मुखी बनने की और बढ़ता जाता है, पारिवारिक और सामाजिक दूरियां बनती जाती है और अंततः आत्महत्या कर जीवन को समाप्त करना ही उनको एकमात्र विकल्प लगने लगता है जबकि सार्थक परिचर्चा और सकारात्मक जीवन शैली उनको इस अवसाद से बाहर ला सकती है,

 

डॉ यजुर्वेदी कहते हैं नकारात्मकता से दूर रहकर जरूरी है कि एक कदम जिंदगी की और बढ़ाया जाए न की जिंदगी को खत्म करने के लिए आत्महत्या का सहारा लिया जाए।

 

डॉ यजुर्वेदी के शब्दों में – – –

हमेशा याद रखिए ,

जिंदगी में मुश्किलें तब नही जीतती जब वो हमें हरा देती है ।

बल्कि वो तब जीतती है , जब हम हार मान जाते है।

 

जीवन अनमोल है यथार्थ में जियो और मेहनत कर सफलता प्राप्त करो

इसे व्यर्थ न करो ।