तेलंगाना में मुस्लिम वोटों के इर्द-गिर्द सिमटा पूरा गेम, 13 फीसदी वोटों पर किसकी कितनी दावेदारी?

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तेलंगाना विधानसभा चुनाव की सारी सियासत मुस्लिम वोटों के इर्द-गिर्द आकर सिमट गई है. मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक पर असदुद्दीन ओवैसी के सियासी तिलिस्म को तोड़ने की जद्दोजहद में कांग्रेस, बीआरएस एक-दूसरे के खिलाफ सियासी तीर चला रही हैं, तो बीजेपी मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने और कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) का वादा करके अलग ही राजनीतिक दांव चल रही है.

ऐसे में देखना है कि तेलंगाना का 13 फीसदी मुस्लिम इस बार किसके साथ जाता है?

हैदराबाद इलाके के मुस्लिम मतदाताओं पर ओवैसी की अपनी पकड़ है, जिसके सहारे वो तीसरी ताकत बने हुए हैं. हालांकि, इस बार हैदराबाद से लेकर प्रदेश के बाकी हिस्सों में कांग्रेस, बीआरएस और AIMIM के बीच मुस्लिम वोटों की लड़ाई है. तेलंगाना के हैदराबाद और कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम वोटर अच्छी संख्या में हैं. वे इस स्थिति में हैं कि 30 नवंबर को विधानसभा चुनावों में 119 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब आधी सीटों पर वोटों के गणित को बिगाड़ सकते हैं. यही वजह है कि मुस्लिम मतों को लेकर शह-मात का खेल चल रहा है.+

45 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का प्रभाव

तेलंगाना की कुल 3.51 करोड़ आबादी में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. राज्य की 119 विधानसभा सीटों में करीब 45 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का खासा प्रभाव है. इनमें से हैदराबाद की 10 सीटों पर 30 से 50 फीसदी के बीच मुस्लिम हैं, जबकि 20 सीटों पर 15 फीसदी से 30 फीसदी के बीच हैं. इसके अलावा 15 सीटों पर 10 से 15 फीसदी के बीच मुस्लिम वोटर्स हैं. 119 विधानसभा सीटों में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम महज नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो कांग्रेस ने छह और बीआरएस ने चार मुस्लिमों को उतारा है.

मुस्लिमों पर राजनीतिक दलों का दांव

मुस्लिम मतदाता एक समय तक कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है, लेकिन 2009 में वाईएसआर के निधन के बाद मुख्यमंत्री बने किरण रेड्डी के चलते दूरी बढ़ गई. मुस्लिम कांग्रेस से दूर होकर केसीआर के साथ चले गए और असदुद्दीन ओवैसी की नजदीकी बढ़ी. आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद पहली बार चुनाव हुए तो मुस्लिमों ने हैदराबाद में ओवेसी के साथ तो बाकी जगह एकमुश्त बीआरएस को वोट किया और 2018 में भी यही पैटर्न दिखा. हालांकि, इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता बिखरे हुए नजर आ रहे हैं, जिसके चलते ही सभी दल दांव खेल रहे हैं.

कांग्रेस की मुस्लिमों को साथ लाने की कोशिश

तेलंगाना के मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में दोबारा से लाने के लिए कांग्रेस पूरे दमखम के साथ उतरी है और ओवैसी और केसीआर को बीजेपी और संघ की बी-टीम बताने में जुटे हैं. बीआरएस अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए मुस्लिमों के लिए किए वादों की याद दिला रही है. राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी तक लगातार ओवैसी को घेरने में जुटे हैं और बीजेपी की मदद करने का आरोप लगा रहे हैं. वहीं, ओवैसी भी रेवंत रेड्डी को आरएसएस की कठपुतली बता रहे हैं. बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बेटे केटी रामाराव भी रेवंत को संघ की पृष्ठभूमि का बताकर हमला कर रहे हैं. मुस्लिम मतों के लिए एक दूसरे को बीजेपी और संघ के साथ जोड़कर बताने की कोशिश हो रही है.

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9 सीटों पर AIMIM ने उतारे उम्मीदवार

हैदराबाद जिले में लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव की सियासत ओवैसी के इर्द-गिर्द घूमती है. AIMIM 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि बाकी सीटों पर बीआरएस को समर्थन दिया है. केसीआर ने मुसलमानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, मुस्लिम बस्तियों में 206 रिहायशी स्कूलों को खोलना, छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और ‘शादी मुबारक’ योजनाएं जिसके तहत गरीब लड़कियों की शादी के लिए एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता सरकार के द्वारा दी जाती है. तेलंगाना में सांप्रदायिक हिंसा की कोई घटना नहीं हुई है. इसी को आधार बनाकर केसीआर मुस्लिमों का विश्वास जीतने में जुटे हैं.

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मुस्लिमों के लिए कांग्रेस का अलग घोषणा पत्र

कर्नाटक में मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट कांग्रेस को दिया है, जिससे तेलंगाना में भी कांग्रेस को विश्वास जागा है. इसीलिए कांग्रेस ने खुलकर मुस्लिम दांव खेल रही है और उनके लिए एक अलग से घोषणा पत्र भी जारी किया है. कांग्रेस यह नैरेटिव सेट करने में जुटी है कि कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से मुकाबला कर रही है और राहुल गांधी सड़क पर उतरकर लड़ रहे हैं. इसके साथ ही तेलंगाना में मुसलमानों के बीच एक आम धारणा भी मजबूत हो रही है कि बीआरएस की बीजेपी के साथ एक गुप्त समझौता है. राहुल गांधी इस बात को पुरजोर तरीके से रख रहे हैं. ऐसे में देखना है कि मुस्लिमों की पहली पसंद कौन बनती है?