The world’s Most Ancient Holi:जितने पुराने महाकाल उतनी पुरानी 6 हजार कंडो से निर्मित वैदिक एवं प्राचीन होली
उज्जैन से अजेंद्र त्रिवेदी की रिपोर्ट
उज्जैन: विश्व की धार्मिक राजधानी के रुप मे प्रसिद्ध, ज्योतिर्लिंग भगवान श्री महाकालेश्वर व मोक्षदायिनी माँ शिप्रा की पावन नगरी अवंतिका उज्जैन (मध्य प्रदेश) के अतिप्राचीन क्षैत्र सिंहपुरी में सबसे बड़ी होली का निर्माण कर उसका दहन किया जाता है। इस होली की ये विशेषता है कि इसमें किसी भी प्रकार के हरे वृक्ष की लकड़ी का उपयोग न करके गाय के गोबर से निर्मित लगभग 6 हजार कंडो का उपयोग किया जाता है, जो वातावरण को शुद्ध कर शरीर के रोगों का निवारण करता है।
*प्राचीन मान्यताएँ व निर्माण समिति*
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सिंहपुरी की होली का इतिहास सम्राट विक्रमादित्य के काल से है, जिसका दहन भगवान महाकालेश्वर की भस्मार्ती के समय ब्रह्ममुहूर्त में (प्रातः 4 बजे के लगभग) वैदिक पद्धति व मंत्रोच्चार द्वारा किया जाता है, जिसको तापने के लिए स्वयं योगीराज भर्तृहरि वहाँ उपस्थित रहते है।
होलिका दहन के पूर्व मध्यरात्रि में श्री गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज, सिंहपुरी व श्री महाकालेश्वर भर्तहरि विक्रम ध्वज चल समारोह समिति द्वारा होलिका का निर्माण वरिष्ठों के मार्गदर्शन में युवाओं द्वारा किया जाता है,
*महिलाओं द्वारा की जाती है पूजा*
संध्या के समय प्रदोष काल मे गोधूलि बेला में सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने सम्पूर्ण परिवार की रक्षा,उन्नति व समृद्धि के लिए होलिका का पूजन किया जाता है।
*चकमक पत्थर का होता था उपयोग*
मध्यरात्रि के उपरांत ब्रह्ममुहूर्त में महाभैरव श्री आताल पाताल का पूजन कर सिद्ध अग्नि से होलिका का दहन किया जाता है, प्राचीन समय मे होलिका दहन चकमक पत्थर की रगड़ से उत्पन्न अग्नि से किया जाता था।
*भक्त प्रह्लाद रूपी भगवा ध्वज*
होलिका के ऊपर मध्य में भक्त प्रह्लाद स्वरूपी एक भगवा ध्वज लगाया जाता है। होलिका दहन से ज्योतिष की कई गणनाएं भी जुड़ी है जिसमे प्रमुख होता है भक्त प्रह्लाद रूपी ध्वज का दिशा में गिरना, अर्थात जिस प्रकार होलिका की गोद से भक्त प्रह्लाद सुरक्षित निकल कर आये थे उसी प्रकार सिंहपुरी की विशाल होली के दहन होने के पश्चात भगवा ध्वज सुरक्षित जिस दिशा में गिरता है उससे ज्योतिषगण ऋतुकाल, वर्षा, फसल, राजनीति आदि विषयों का विश्लेषण करते है एवं इस शुभ ध्वज का एक अंश छोटे बच्चो को गले मे कंठी (ताबीज) बांधने से बच्चो पर बुरी दृष्टि नही लगती है।
*सिंहपुरी के आसपास व नगर में अन्य स्थानों की होली भी इसी होली के प्रज्वलित कंडो से ही चैतन्य की जाती है।*
*रंगपंचमी पर पुरुषों द्वारा ठंडा किया जाता है*
ये दिव्य होली अगले पांच दिन तक सतत प्रज्वलित रहती है, जिसे रंगपंचमी को दोपहर पश्चात पुरुषों द्वारा जल से ठंडा किया जाता है।
*निकलती है हड्डियां*
सिंहपुरी की होलिका की सजीवता व चैतन्यता का एक उदाहरण यह भी है कि होली के ठंडा होने के पश्चात इसमे मानव शरीर के समान हड्डियों की आकृति निकलती है, जो इस बात का भी प्रमाण माना जाता है, की होली में होलिका का दहन हुआ है।
इनको शीतलासप्तमी के दिन पूजन कर अंश भर घर के बाहर द्वार पर रखने से भी दरिद्रता का नाश होता है।
*१५ दिवसीय होलिका व नववर्ष उत्सव*
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के साथ सिंहपुरी में पंद्रह दिवसीय होलिका उत्सव व नववर्ष उत्सव प्रारम्भ किया जाता है, जो कि पूर्णिमा से प्रारंभ होकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ीपड़वा (भारतीय हिन्दू नववर्ष) तक चलता है।
*मांगलिक कार्यो का प्रारंभ*
होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन होता है, तथा मांगलिक कार्यो का प्रारंभ होता है।
जिन लोगो के यहाँ वर्षभर में किसी की मृत्यु होती है उस परिवार के भी लोग आकर होली तापते है तथा श्रीफल, गेंहू की उंबी अर्पित कर मांगलिक कार्य आरम्भ करते है।
सूर्योदय के पश्चात होलिका की परिक्रमा कर एक दूसरे को रंग लगाया जाता है तथा विशाल ध्वज चल समारोह निकाला जाता है।