तब चांद ने यही कहा होगा…छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा…

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तब चांद ने यही कहा होगा…छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

आज से 56 साल पहले 20 जुलाई 1969 की तारीख इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गई थी जब चांद की सतह को पृथ्वी लोक से पहुंचे एक इंसान ने बड़े प्यार से छुआ था। और तब उस इंसान ने चांद को कवियों की कल्पनाओं और रूमानियत के अनमोल एहसास से निकालकर हकीकत की पथरीली जमीन पर उतार दिया था। दरअसल वह 20 जुलाई का ही दिन था जब नील आर्मस्ट्रान्ग के रूप में किसी इंसान ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था। 16 जुलाई 1969 को अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत में स्थित जॉन एफ कैनेडी अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ा नासा का अंतरिक्ष यान अपोलो-11, चार दिन का सफर पूरा करके 20 जुलाई 1969 को इंसान को धरती के प्राकृतिक उपग्रह चांद पर लेकर पहुंचा था। यह यान 21 घंटे 31 मिनट तक चंद्रमा की सतह पर रहा था। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील ने वहां मून वॉक भी किया था। उनके चांद पर उतरने के बाद एक अन्य अंतरिक्ष यात्री एडविन एल्ड्रिन भी चांद पर आ गए थे। तब नील ने ऐतिहासिक घोषणा की थी, ”यह एक मनुष्य के लिए छोटा सा कदम है पर मनुष्यता के लिए बहुत बड़ी छलांग है। आज हम पूरी मानव सभ्यता की तरफ से चांद पर कदम रख रहे हैं।” नील ने चांद की सतह के बारे में कहा था कि वह बिल्कुल कोयले के चूरे जैसी है। जहां उनका यान उतरा वहां एक फुट गहरे गड्ढे भी हो गए। चांद का वह अनोखा नजारा नील के यान में लगे कैमरे में कैद हुआ था। उन्होंने सबसे पहले चांद की सतह की तस्वीरें लीं और फिर वहां की मिट्टी के नमूने भी एकत्रित किए थे। दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर उतरकर अमेरिकी झंडा भी लहराया था। नील और एल्ड्रिन ने करीब 2.5 घंटे चांद की जमीन पर बिताए थे। इस ऐतिहासिक दिन को करीब 3.5 करोड़ लोगों ने टीवी पर देखा था और रेडियो पर सुना था। नील ने चांद पर तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन के हस्ताक्षर वाली पट्टिका भी लगाई थी। उस पट्टिका पर लिखा था, यहां धरती से मनुष्य ने जुलाई 1969 में पहली बार कदम रखा था। नील एयरोस्पेस इंजीनियर, नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट और प्रोफेसर थे। जब चांद की सतह को पहली बार नील ने छुआ होगा तब चांद ने कुछ यही गीत गुनगुनाया होगा…छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा,

बदला ये मौसम लगे प्यारा जग सारा।

तू जो कहे जीवन भर तेरे लिये मैं गाऊँ, तेरे लिये मैँ गाऊँ

गीत तेरे बोलों पे लिखता चला जाऊँ

लिखता चला जाऊँ

मेरे गीतों में तुझे ढूँढे जग सारा

छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा…

और तब से अब तक अंतरिक्ष में दुनिया ने बड़ी छलांग लगाई है। हमें गर्व है ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला पर। भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट, इंजीनियर और इसरो के अंतरिक्ष यात्री हैं। वह भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष में जाने वाले चार अंतरिक्ष यात्रियों में से पहले हैं। वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का दौरा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री और 1984 में राकेश शर्मा के बाद कक्षा में यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। उन्हें आवंटित सीट की लागत 60 मिलियन डॉलर (लगभग ₹500 करोड़) के मध्य में अनुमानित है, जिसका भुगतान भारत सरकार द्वारा 2025 में किया गया। भारतीय अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 18 दिन बिताकर धरती पर लौट चुके हैं। इन दिनों वे डॉक्टरों की निगरानी में हैं। उन्होंने इंस्टाग्राम पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद की तस्वीर साझा की थी। इसमें वे चलना सीख रहे हैं। शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई को पृथ्वी पर लौटे थे। वह अमेरिकी प्राइवेट मिशन एक्सिओम-4 के तहत 20 दिन की अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे। वह और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री (पेगी व्हिटसन, स्लावोश उजनांस्की-विस्निवस्की और टिबोर कापू) ‘ड्रैगन ग्रेस’ नाम के स्पेसक्रॉफ्ट में सवार थे, जो कैलिफोर्निया में समुद्र में सुरक्षित लैंड हुआ था।

शुभांशु ने लौटकर परिवार से मिलकर लिखा था, ‘अंतरिक्ष की उड़ान अद्भुत होती है, लेकिन लंबे वक्त के बाद अपनों से मिलना भी उतना ही अद्भुत होता है‌। मुझे क्वारंटाइन में गए हुए 2 महीने हो गए हैं. क्वारंटाइन के दौरान परिवार से मिलने के लिए हमें 8 मीटर की दूरी पर रहना पड़ता था। मेरे नन्हे-मुन्नों को बताया गया कि उनके हाथों में कीटाणु हैं, इसलिए वह अपने पिता को नहीं छू सकते। जब भी वह मिलने आते, अपनी मां से पूछते, ‘क्या मैं अपने हाथ धो सकता हूं?’ यह बहुत चुनौतीपूर्ण था।’

उन्होंने आगे लिखा, ‘धरती पर वापस आकर और अपने परिवार को अपनी बाहों में लेकर घर जैसा महसूस हुआ। आज ही किसी प्रियजन को खोजें और उन्हें बताएं कि आप उनसे प्यार करते हैं। हम अक्सर जीवन में व्यस्त हो जाते हैं और भूल जाते हैं कि हमारे जीवन में लोग कितने महत्वपूर्ण हैं। इंसान अंतरिक्ष उड़ान मिशन जादुई होते हैं, लेकिन उन्हें इंसानों द्वारा ही जादुई बनाया जाता है।’

शुभांशु शुक्ला ने 25 जून, 2025 को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट पर सवार होकर अपनी ऐतिहासिक यात्रा शुरू की थी। 26 जून को आईएसएस से जुड़ने के बाद, उन्होंने 18 दिन तक वहां रहकर 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए। जिनमें जीव विज्ञान, सामग्री विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित प्रयोग शामिल थे। विशेष रूप से, उनके ‘स्प्राउट्स प्रोजेक्ट’ ने माइक्रोग्रैविटी में पौधों की वृद्धि का अध्ययन किया जो अंतरिक्ष में टिकाऊ खेती के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है‌।

तो नील से शुभांशु तक एक लंबा सफर तय किया है वैज्ञानिक शोध ने और दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने। अब चांद पर कॉलोनी बनने की बात हो रही है। और अंतरिक्ष की यात्रा करने की कल्पना मूर्त रूप ले रही है। चांद के बाद सूरज पर भी दस्तक दी गई है। और अभी आगे बहुत लंबा सफर होना बाकी है। उसे समय की कल्पना कितनी गुदगुदाती है जब इंसान अंतरिक्ष में ही खेती करेगा,चांद पर रहेगा और सूरज तक घूमने जाएगा। और सभी जगह से यही आवाज आएगी कि छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा…बदला ये मौसम लगे प्यारा जग सारा…।