

दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल को देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक होंगे। 88 वर्षीय शुक्ल अपनी कहानियों, कविताओं और लेखों के लिए जाने जाते हैं और समकालीन हिंदी साहित्य के सबसे प्रभावशाली रचनाकारों में शुमार हैं। यह पुरस्कार 11 लाख रुपये की राशि, मां सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र के साथ दिया जाता है। इस सम्मान को पाकर विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
वास्तव में विनोद कुमार शुक्ल पर मां सरस्वती की असीम कृपा है। उन्होंने जो लिखा, वह मानो स्वर्ण कमल की तरह खिल गया है। एक बार जो पढ़ेगा, वह विनोदमय हो जाएगा। उनकी हर कविता के जरिए यह महसूस किया जा सकता है। कविता ‘दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है’ को जीते हैं-
दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है
कहकर मैं अपने घर से चला।
यहाँ पहुँचते तक
जगह-जगह मैंने यही कहा
और यहाँ कहता हूँ
कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।
जहाँ पहुँचता हूँ
वहाँ से चला जाता हूँ।
दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है—
बार-बार यही कह रहा हूँ
और कितना समय बीत गया है
लौटकर मैं घर नहीं
घर-घर पहुँचना चाहता हूँ
और चला जाता हूँ।
तो उनकी दूसरी एक कविता ‘जो कुछ अपरिचित हैं’ के जरिए उनकी जादुई यथार्थवादी लेखनी को महसूस करते हैं।
जो कुछ अपरिचित हैं
वे भी मेरे आत्मीय हैं
मैं उन्हें नहीं जानता
जो मेरे आत्मीय हैं।
कितने लोगों,
पहाड़ों, जंगलों, पेड़ों, वनस्पतियों को
तितलियों, पक्षियों, जीव-जंतु
समुद्र और नक्षत्रों को
मैं नहीं जानता धरती को
मुझे यह भी नहीं मालूम
कि मैं कितनों को नहीं जानता।
सब अत्मीय हैं
सब जान लिए जाएँगे मनुष्यों से
मैं मनुष्य को जानता हूँ।
विनोद कुमार शुक्ल में चेतना की समग्रता का भाव जिया जा सकता है। विनोद कुमार शुक्ल अपनी शैली के लिए जाने जाते हैं जो अक्सर जादुई यथार्थवाद की सीमा पर होती है। उनकी रचनाओं में नौकर की कमीज (जिस पर मणि कौल ने इसी नाम की फिल्म बनाई है ) और दीवार में एक खिड़की रहती थी, उपन्यास शामिल हैं , जिसने 1999 में सर्वश्रेष्ठ हिंदी रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता था। इस उपन्यास पर थिएटर निर्देशक मोहन महर्षि ने एक नाटक भी बनाया है। विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव , छत्तीसगढ़ (उस समय नांगांव रियासत , बाद में मध्य प्रदेश राज्य ) में हुआ था। उनकी कविताओं का पहला संग्रह ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था । ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ उनका दूसरा कविता संग्रह था, जो 1981 में संभावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था । ‘नौकर की कमीज ‘ उनका पहला उपन्यास था, जो 1979 में उसी प्रकाशक द्वारा लाया गया था। ‘पेड़ पर कमरा’, लघु कहानियों का एक संग्रह, 1988 में लाया गया था, और 1992 में कविताओं का एक और संग्रह, ‘ सब कुछ होना बचा रहेगा’ ।
विनोद कुमार शुक्ल 1994 से 1996 तक आगरा में निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार थे, जिस दौरान उन्होंने दो उपन्यास खिलेगा तो देखेंगे और ताज़ा उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी लिखे। ड्यूक विश्वविद्यालय के प्रो. सत्ती खन्ना ने बाद वाले उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद ए विंडो लिव्ड इन ए वॉल (प्रकाशक: साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, 2005) के रूप में किया है । उन्हें एकतारा – तक्षशिला के बाल साहित्य एवं कला केंद्र द्वारा कलाकारों के निवास की पेशकश की गई थी, जहाँ उन्होंने युवा वयस्कों के लिए “एक चुप्पी जगह” नामक उपन्यास लिखा था।
उन्होंने जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जेएनकेवीवी) से कृषि में एमएससी किया, जिसके बाद वे कृषि महाविद्यालय रायपुर में व्याख्याता के रूप में शामिल हुए। वे कवि मुक्तिबोध से काफी प्रेरित थे , जो उस समय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में हिंदी के व्याख्याता थे, जहाँ पदुमलाल पुन्नालाल बक्सी भी कार्यरत थे। बलदेव प्रसाद मिश्र भी उसी समय राजनांदगांव में थे।
विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं का व्यापक अनुवाद हुआ है। 2015 में, दिल्ली स्थित लेखक अखिल कत्याल ने शुक्ला की ‘हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया:
हताश होकर एक आदमी बैठ गया,
मैं उसे नहीं जानता था,
मैं हताशा जानता था,
तो मैं उसके करीब गया
और अपना हाथ बढ़ाया –
उसे पकड़कर वह खड़ा हो गया,
वह मुझे नहीं जानता था, वह जानता था
मेरा हाथ बढ़ाना,
वहाँ से हम साथ-साथ चले,
हम दोनों में से कोई भी दूसरे को नहीं जानता था –
दोनों साथ-साथ चलना जानते थे।
तो विनोद कुमार शुक्ल की हर कविता पाठक को जादुई तरीके से अपनी बांहों में भर लेती है। आइए ऐसी ही एक और कविता ‘प्रेम की जगह अनिश्चित है’ के जादू में बंध जाते हैं-
प्रेम की जगह अनिश्चित है
यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी कोई है।
आड़ भी ओट में होता है
कि अब कोई नहीं देखेगा
पर सबके हिस्से का एकांत
और सबके हिस्से की ओट निश्चित है।
वहाँ बहुत दुपहर में भी
थोड़ी-सा अँधेरा है
जैसे बदली छाई हो
बल्कि रात हो रही है
और रात हो गई हो।
बहुत अँधेरे के ज़्यादा अँधेरे में
प्रेम के सुख में
पलक मूँद लेने का अंधकार है।
अपने हिस्से की आड़ में
अचानक स्पर्श करते
उपस्थित हुए
और स्पर्श करते हुए विदा।
तो है न सब यथार्थ जिसको शब्दों के जादू में पिरोने का काम विनोद कुमार शुक्ल ने किया है। जिसकी हमने कल्पना नहीं की थी, वह सब विनोद कुमार शुक्ल ने हम सभी को दिया है, मानो थोड़ी सी प्यास थी और समुद्र भर पानी हमें मिल गया हो। और इसीलिए विनोद कुमार शुक्ल ने कल्पना नहीं की थी और उन्हें 2025 में 88 वर्ष की उम्र में ज्ञानपीठ मिल ही गया। विनोद कुमार शुक्ल पर जितना छत्तीसगढ़ का अधिकार है, उससे ज्यादा मध्यप्रदेश का हक भी है। छत्तीसगढ़ राज्य में जहां उन्होंने 25 साल बिताए हैं तो मध्यप्रदेश में अपनी उम्र के 44 साल का लंबा समय गुजारा है। बाकी के 19 साल नांगांव रियासत में। यानि कहा जाए तो छत्तीसगढ़ के इस पहले लेखक को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है, जिसमें मध्यप्रदेश जिंदा है। ऐसे विनोद कुमार शुक्ल को पढ़
कर यह समझा जा सकता है कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है…।