परदे पर भी सरदार पटेल के साथ न्याय नहीं!

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आज देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की 146वीं जयंती है। सरदार पटेल अकसर कहा करते थे ‘शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा ही काम देता है।’ वे इस बात पर अमल भी करते थे। अगर सरदार पटेल न होते तो आज भारत का स्वरूप ऐसा नहीं होता। भारत को एक सूत्र में पिराने का श्रेय उन्हें जाता है।

आजाद भारत में रियासतों को जोड़ने का जो काम उन्होंने किया, उनका यह योगदान इतिहास में दर्ज है। सरदार का योगदान कई फिल्मों के जरिए भी दिखाया गया है। हालांकि, ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है कि इतने बड़े व्यक्तित्व पर फिल्में बहुत कम बनी।

परदे पर सबसे पहले सरदार पटेल का किरदार 1982 में प्रदर्शित रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ फिल्म में दिखाई दिया। मशहूर चरित्र अभिनेता सईद जाफरी ने वल्लभभाई पटेल की भूमिका में जान डाल दी थी। 2000 में ‘हे राम’ नाम से एक फिल्म आई थी। इस फिल्म में कमल हासन, शाहरुख खान, हेमा मालिनी, रानी मुखर्जी से लेकर इंडस्ट्री के कई सितारों के नाम शामिल थे। ‘हे राम’ में अरुण पाटेकर ने सरदार वल्लभ भाई पटेल का किरदार निभाया था।

हालांकि, ये किरदार बहुत छोटा था और कहानी मूल रूप से महात्मा गांधी और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे के इर्द गिर्द घूमती थी। इस लिहाज से न तो अरुण पाटेकर कोई प्रभाव छोड़ पाए और न सरदार के साथ इस फिल्म में कोई न्याय हो सका!

परदे पर भी सरदार पटेल के साथ न्याय नहीं!

सरदार पटेल पर सबसे प्रभावशाली बायोपिक थी ‘सरदार।’ इस फिल्म में सरदार पटेल के अद्भुत व्यक्तित्व और योगदानों को खूबसूरती के साथ परदे पर उतारा गया। 1993 में आई इस फिल्म में सरदार पटेल का किरदार परेश रावल ने निभाया, जो इससे पहले खलनायक और कॉमेडियन के रूप में स्थापित हो चुके थे।

केतन मेहता निर्देशित नाटककार विजय तेंडुलकर लिखी फिल्म के इस क्लिप में सरदार पटेल और हैदराबाद में रजाकार सेना के प्रमुख कासिम रिजवी के बीच संवाद बताया है। आज सरदार पटेल के धैर्य और समझ को इस क्लिप में बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।

फिल्म में विभाजन के बाद रियासतों को भारत में जोड़ने की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। यह फिल्म कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को भारत में विलय से जुड़ी समस्याओं को बखूबी पेश करती है। फिल्म में नेहरू और सरदार के बीच मतभेदों को भी दर्शाया गया है। फिल्म के अंत में सरदार को एक गांव में आराम करते यह कहते हुए बताया है कि आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक स्वतंत्र राष्ट्र है।

परदे पर भी सरदार पटेल के साथ न्याय नहीं!

फिल्म ‘सरदार’ में पटेल के किरदार को लेकर परेश रावल ने कहा कि मुझे उस किरदार से खुद के भारतीय होने का महत्व पता चला कि कैसे देश के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। मुझे पता चला कि मैं कौन हूं और दुनिया में बतौर भारतीय मेरा क्या योगदान है। लंबे समय तक हमारा इतिहास शिक्षा व्यवस्था की वजह से गर्त में जा रहा था, इसे सही परिप्रेक्ष्य में नहीं बताया जा रहा था। लेकिन, अब सोशल मीडिया के दौर में यह बदल रहा है। इसके साथ ही लोगों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी सामने आ रही है।

उन्होंने कहा कि किसी खास अवसर पर सरदार पटेल को याद करने की जरूरत नहीं है। देश के आज के हालात को देखते हुए उन्हें रोज और हर समय याद किया जाना प्रासंगिक होगा। परेश रावल ने यह भी कहा कि राष्ट्र निर्माण में वह  किसी की उपलब्धि को कमतर नहीं आंकते!

लेकिन, इसके बावजूद उन्हें लगता है कि अगर पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते, तो देश के हालात अलग होते और पूरे देश का चरित्र और रीढ़ बहुत ही अलग और मजबूत होती।

परेश रावल मानते हैं कि देश की आजादी के लिए क्या बलिदान दिया गया और लोगों ने क्या त्याग किया उसे आज के लोग समझते नहीं हैं। कुछ लोगों को घर बैठे आजादी मिल गई, वे उसकी कीमत नहीं जानते। इसके लिए वह सरदार फिल्म के एक संवाद की याद दिलाते हैं जिसमें कहा गया है कि हर घर से खून बहता है और हर घर से कोई मरता है तो आने वाली पीढ़ी देश की उन्नति के लिए काम करती।

परेश रावल ने कहा कि हमें तमाम विवाद और टकराव भूलकर एकजुट रहने की जरूरत है। हम साथ हैं, तो मजबूत हैं। हमारी रीढ़ काफी मजबूत है और हम किसी भी सूरत में डूब नहीं सकते हैं। पूर्व में हम पर कई हमले हुए, लेकिन हमे कोई तोड़ नहीं सका। आज भी हिंदुस्तान वैसा ही है बल्कि और भी समृद्ध हुआ है। आज जब देश में अलगाव की कोशिशें की जा रहीं है राजनीतिक दल स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद राष्ट्र निर्माण में सरदार पटेल की भूमिका को लेकर तरह-तरह की बातें कर एक नया विवाद खड़ा कर रहे है। ऐसे में देश को फिर से एकजुट करने और पूरी ताकत के साथ खड़ा रखने के लिए सरदार पटेल की जरूरत महसूस कर रहा है।
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