कुछ ख़ास है कुछ पास है: “सैक्यूरिटी गार्ड का पुस्तक प्रेम”
किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!
पूना प्रवास के दौरान बागवानी में मेरीे मित्र श्रीमती विजया ओझा ने एक बिल्डिंग के गेट पर गार्ड को संस्कृत में धार्मिक ग्रंथ पढ़ते देखा तो अचम्भित हो गई। उससे बहुत देर तक बात की , घर पहुंच कर मुझे फ़ोन करके कहा कि उन्हें देखकर आपकी बहुत याद आ रही थी । मेरे निवेदन पर फोटो व फोन नंबर उपलब्ध कराया।
उत्तर प्रदेश के रहने वाले एवं पुणे में सैक्युरिटी गार्ड के रूप में कार्यरत पंडित श्री सुशील कुमार त्रिपाठी को ड्यूटी के दौरान धार्मिक ग्रंथ पढ़ते देखकर वहां से आने जाने वाला हर शख्स प्रभावित होता हैं। फोन पर बात करने पर मालूम हुआ कि यह महाशय धार्मिक ग्रंथों को खरीद कर पढ़ते है , उन्हें सुरक्षित अपने पुस्तकालय में संग्रहित करते है।
सुबह एवं शाम को नियमित गंभीरता से पठन करते है, एक ही पुस्तक को अनेकों बार पढ़ते हैं । एक ही विषय जैसे रामायण पर अनेक लेखकों की पुस्तक पढ़ने पर तुलनात्मक क्या फर्क है, उस पर मनन करते है। रामायण, महाभारत, पुराण इत्यादि अनेक ग्रंथ कंठस्थ हो गये है। और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि अधिसंख्य ग्रंथ संस्कृत भाषा के ही पढ़ते हैं , संस्कृत में उपलब्ध न होने पर ही हिंदी ग्रंथ पढ़ते हैं । अपने संबंध में बताते हुए कहते है कि उत्तर प्रदेश में मेरे घर से 14 किलोमीटर पर गंगा एवं 20 किलोमीटर पर यमुना बहती है। दोनों पवित्र नदियों की कृपा से ही धार्मिक ग्रंथों में रुचि हुई है।
सैक्यूरिटी गार्ड और संस्कृत व धार्मिक ग्रंथों में विद्वत्ता.. है ना आश्चर्य .. लेकिन यह सही है। सुशील कुमार त्रिपाठी के इस अद्भुत व प्रेरणादायक कर्म के प्रति सादर नमन।
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की।
महेश बंसल ,इंदौर
सोशल मीडिया वाल से
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