प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को 21 जुलाई को पूछताछ के लिये अपने कार्यालय क्या बुला लिया,ऐसा बवाल मचाया गया, जैसे देश में कानून का राज ही खत्म हो गया या संविधान पर संकट आ गया या देश में आपातकाल से भी भयावह परिस्थितयां पैदा हो गईं हों या लोकतंत्र की समाप्ति की घोषणा कर दी गई हो। क्या ऐसा कुछ हुआ था? हुआ तो नहीं, लेकिन लगता तो ऐसा ही है कि इस बहाने विपक्ष याने कांग्रेस देश से कानून के राज को खत्म करने की खतरनाक साजिश रच रहा हो। यदि राजनीतिक लोगों के खिलाफ देश की ही कोई संवैधानक संस्था किसी तरह की कार्रवाई करती है तो तमाशा किया जाना चाहिये या कानून के सहारे खुद को निर्दोष साबित करने के जतन होने चाहिये?
अब यह दोहराने की जरूरत नहीं कि सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत के आधार पर नेशनल हेराल्ड के जरिये अवैध लेनदेन की जांच से जुड़े पहलुओं पर जानकारी लेने सोनिया को बुलाया था। इससे पहले उनके बेटे राहुल गांधी को भी बुलाया जा चुका है और तब भी कांग्रेस ने ऐसा ही तमाशा खड़ा किया था। तब भी बुलाया तो सोनिया को भी था, किंतु अस्वस्थता के चलते उन्होंने बाद में आने की मोहलत ली थी। तब से अब तक यदि इडी(डाइराक्टोरेट ऑफ एनफओर्समेंट) का न्यौता इतना ही आपत्तिजनक और गैर कानून समझ रहे थे तो अदालत की शरण ले लेते। वैसा इसलिये नहीं किया, क्योंकि वहां से राहत मिलने की कतई संभावना ही नहीं थी। यदि अदालतें इसी तरह से किसी भी व्यक्ति को किसी जांच अभिकरण द्वारा बुलाये जाने से रोकना प्रारंभ कर देगी तो यकीनन उन संस्थाओं का अस्तित्व ही नही बचेगा। हां, यह जरूर हो सकता है कि गांधी परिवार के लिये अलग कानून बनाये जाने पर विचार होना चाहिये, ताकि आयंदा से किसी एजेंसी को उन्हें बुलाने की मशक्कत ही न करना पड़े।
जैसा कि कांग्रेस की आशंका है और आरोप लगाये जा रहे हैं कि सरकार संरक्षित संस्थायें राजनीतिक प्रतिशोध के लिये उपयोग में लाई जा रही हैं तो यह कुछ हद तक इसलिये सही हो सकता है कि तमाम पूर्ववर्ती सरकारें भी ऐसा करती रही हैं, जिसका कांग्रेस भी अपवाद नहीं है। वैसे ज्यादा सही तो यही है कि सरकारों को ऐसा करना सिखाया ही कांग्रेस ने। अब कोई यह न कहे कि जो बुरा किया कांग्रेस ने ही किया और अच्छा केवल मौजूदा सरकार ही कर रही है। ऐसा वर्तमान सरकार या भारतीय जनता पार्टी कह सकती है, किंतु देश का अनुभव तो यही है कि सारे चाले कांग्रेस ने ही बताये हैं, क्योकि उसने स्वतंत्र भारत के अभी तक के इतिहास में सबसे अधिक समय तक राज किया है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि देश में शासन करने की संस्कृति कांग्रेस जनित है। इसलिये कांग्रेस राज में किये गये कुछ क्रियाकलाप अब कांग्रेस के ऊपर आ रहे हैं तो क्या् किया जा सकता है?
कुछ लोग कह सकते हैं कि मैं गड़े मुर्दे उखाड़ रहा हूं, लेकिन इतिहास में दर्ज अनेक जो घटनायें इस सृष्टि की सलामती तक बरकरार रहेगी, उनमें भारत में 1975 में लगा आपातकाल का भी खास तौर से जिक्र रहेगा ही। उस दौरान हुए नागरिक अधिकारों
का हनन,विपक्षी नेताओं,कार्यकर्ताओं का दमन,कानून के राज को ताक पर रख देने ,उसका मखौल उडा़ने और पुलिस से लेकर तो तमाम शासकीय संस्थाओं के मनमाने दुरुपयोग के कीतिर्मान रचे गये,उन पर पर्याप्त ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। इसलिये वही कांग्रेस महज अपनी नेता को तलब भर कर लिये जाने को किसी प्रतिशोध का नाम दे या कानून का उल्लंघन करार दे तो केवल मुस्कराया जा सकता है। इसे नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली भी कहना हल्का ही रहेगा। जिस देश में अपनी सत्ता बचाये रखने के लिये एक तानाशाह महिला अपना प्रधानमंत्री पद कायम रखने के लिये अदालत के फैसले को न मानें, विरोधियों को हजारों की संख्या में जेल में ठूंस दे,अखबारों पर सेंसरशिप लगा दे और रोज कलेक्टर बैठकर अखबारों की खबरें तय करे, उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी किसी सरकार को जांच अभिकरणों को प्रतिशोध उपकरण बतलाये तो इस मासूमियत पर बलिहारी होने को जी करता है।
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लाख टके का एक सवाल यह है कि गांधी परिवार नेशनल हेराल्ड मुद्दे पर अदालती कार्रवाई को रोकना क्यों चाहता है, वह भी सड़क और संसद में बखेड़ा मचाकर। उसे कानूनी गलियारों से गुजरने में डर किस बात का है। जिस देश में अदालतें आधी रात को दुश्मन देश से आये आतंकवादी की जान की सलामती की याचिका के लिये अपने दरवाजों के सारे पल्ले खोलकर खड़ी हो जाती है, वह देश के इस सबसे पुराने राजनीतिक परिवार की सुनवाई कानूनी दायरे में क्यों नहीं कर पायेगी? कांग्रेस को इस सरकार,उसके नुमाइंदों,उसके अधीन कार्यरत विभिन्न जांच अभिकरणों की नीयत,नीति पर संदेह हो सकता है, लेकिन इस मसले को सड़क पर लाकर तो वह साफ तौर पर यह संदेश दे रही है कि उसे तो देश की न्यायपालिका पर भी किंचित मात्र भरोसा नही रहा। क्या उसका आचरण इस बात के स्पष्ट संकेत नहीं देता?
जह राहुल गांधी को बुलाया गया था तब भी देश भर में कांग्रसियों ने प्रदर्शन किये थे और कांग्रेस मुख्यालय से इडी दफ्तर तक पैदल मार्च की नौटंकी की गई थी। तब ही यह भी तय था कि प्रियंका और सोनिया गांधी को भी बुलाया जायेगा। यदि वे खुद को पाक-साफ मानते हैं और किसी घपले-घोटाले को अंजाम नही दिया है तो इडी भला कब तक उन्हें परेशान कर सकता है। अदालत की पहली पेशी में उसके बोथरे सबूत उजागर हो जायेंगे और गांधी परिवार बेदाग बाहर आ सकता है। लेकिन ऐसा लगता है कि उसे और कांग्रेसियों को भी यह भय सता रहा है कि मामले की बारीकी से जांच हुई तो उनकी लुटिया डूब सकती है, जिसे किनारे से ही वापस लौटा लाने की पूरजोर कोशिश की जा रही है।यदि ऐसा ही चलता रहा तो हर संगठित क्षेत्र अपने खिलाफ किसी भी सरकारी जांच को रोकने के लिये सड़क पर उतर आया करेगा। या फिर ऐसा कानूनी तौर पर सुनिश्चत कर दिया जाये कि राजनीतिक दलों के खिलाफ कोई जांच नहीं की जा सकेगी।