चर्चा की जगह हो चर्चा और हंगामे की जगह हंगामा …

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MP Budget 2022

चर्चा की जगह हो चर्चा और हंगामे की जगह हंगामा …

मध्यप्रदेश विधानसभा के दिसंबर सत्र की अधिसूचना जारी हो गई है। 19 से 23 दिसंबर के बीच आहूत सत्र में पांच बैठकें आयोजित होंगीं। फिर वही बात सामने आ रही है कि सत्र की अवधि छोटी रखी जा रही है, ताकि जनहित के मुद्दों पर चर्चा न हो सके। तो फिर वही जवाब आ रहा है कि विपक्ष हंगामा करने में विश्वास रखता है, जनहित के मुद्दों पर चर्चा में नहीं। इससे पहले सितंबर में मानसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ा था और तीन बैठकों में ही सत्र सिमट कर रह गया था। निष्कर्ष यही निकाला जाता है कि जनता के पैसे की सदन में बर्बादी हो रही है। और सवाल यही उठता है कि जनता की गाढ़ी कमाई की बलि चढ़ाया जाना क्या उचित है? सदन के हंगामे की भेंट चढ़ने का ठीकरा हमेशा विपक्ष पर फूटता है। और विपक्ष आक्रामक होता है कि सरकार जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने और जवाब देने से कतराती है। यह आरोप भी खुलकर लगते हैं कि सरकार विपक्षी विधायकों के सवालों के उत्तर देने से या तो बचती है या गलत जवाब देकर गुमराह करने की कोशिश करती है। यह बात सिर्फ भाजपा सरकार के समय के सत्रों के लिए लागू नहीं होती, बल्कि सत्ता पक्ष पर हमेशा ही विपक्ष के आरोप यही होते हैं। सरकार में कांग्रेस हो तो भाजपा आरोप लगाती है और सरकार भाजपा की है, तो कांग्रेस के आरोप यही होते हैं। तो यह तो हुई सदन में पक्ष-विपक्ष की नूरा-कुश्ती, पर सवाल यही है कि बेचारा मतदाता क्या करे…जो सदस्य को चुनकर विधानसभा में तो भेज देता है, लेकिन उसका पांच साल का समय माननीय सदस्यों की तू-तू-मैं-मैं की भेंट ही चढ़ जाता है। इसकी चिंता न तो विपक्ष करता है और न ही सत्ता पक्ष।
पंद्रहवीं विधानसभा की बात करें, तो इन चार साल में बस तीन सत्रों की अवधि संतुष्टिजनक रही है। 2019 में कांग्रेस की सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। तब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव पर थी। विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति थे। जुलाई 2019 का वह सत्र सत्रह दिन चला था। और उम्मीद की जा रही थी कि लंबे सत्र का सिलसिला जारी रहेगा, पर कांग्रेस सरकार के लिए इस दायित्व निर्वहन का अवसर दीर्घजीवी नहीं हो सका और मार्च 2020 में तो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष अपने सदस्यों को बंगलुरू से वापस ही नहीं बुला पाए और कांग्रेस सरकार की विदाई भरे सत्र में ही हो गई। और उसके बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की विदाई हुई। फिर सदन को मिले दीर्घकालिक प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा,नेता प्रतिपक्ष बने कमलनाथ और कोरोना के चलते वर्चुअल सत्र। फिर विधानसभा अध्यक्ष बने गिरीश गौतम, पर नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ही रहे। इस समय फरवरी-मार्च 2021 को 18 बैठकों वाला बजट सत्र संपन्न हुआ और वहीं मार्च 2022 में तेरह दिन का सत्र भी तसल्ली भरा माना जा सकता है। फिर नेता प्रतिपक्ष बने डॉ. गोविंद सिंह और सितंबर में पांच बैठकों वाला मानसून सत्र तीन दिन में ही विदा ले गया और अब शीतकालीन सत्र भी महज पांच बैठकों वाला निर्धारित हुआ है। लब्बोलुआब यही है कि बजट सत्र की अवधि लंबी रहती है, यह विधिसम्मत जरूरी भी है और मजबूरी भी है। वहीं मानसूनी सत्र अच्छे मौसम में भी सीमित अवधि का लुत्फ जी भर कर नहीं ले पाता, तो शीतकालीन सत्र सर्दी में भी सदन की गर्माहट को सहन न कर अल्पावधि भी  नहीं जी पाता।
आगामी सत्र की बात करें, तो दिसंबर तक खाद का मुद्दा कितना जिंदा बचता है या किसानों की मौतों का कितना हवाला दिया जाता है, यह देखने वाली बात है। तो भ्रष्टाचार, रोजगार, युवा, किसान, महिला अपराध, कानून-व्यवस्था, नौकरशाही का रवैया, सड़क, बिजली, पानी, भारत जोड़ो यात्रा, पेसा एक्ट का क्रियान्वयन वगैरह वगैरह क्या मुद्दे सदन में गूंजते हैं,यह भी तब ही पता चलेगा। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रकट किस हद तक किया जाता है, यह भी देखने वाली बात रहेगी। क्योंकि सरकार और विपक्ष के बीच भरोसे का तो रिश्ता न कभी था और न कभी रहेगा, कम से कम सदन में…यह बात तो तय है। पर संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की यह अपील गौर करने लायक है कि विधानसभा सत्र की अधिसूचना जारी कर दी गई है। माननीय सदस्य गण जनहित से जुड़े मुद्दे उठा सकेंगे। द्वितीय अनुपूरक बजट भी इस सत्र में आएगा। कांग्रेसी जो भी जनहित के मुद्दे उठाना चाहे सरकार तैयार है, लेकिन आरोप भी कि कांग्रेसी चर्चा की जगह हंगामा करते हैं और हंगामे की जगह चर्चा। तो उम्मीद यही कि अल्प अवधि के इस सत्र में चर्चा की जगह चर्चा होगी और हंगामे की जगह हंगामा…ताकि सरकार भी खुशी-खुशी सत्र को पूरी आयु का वरदान दे सकेगी और विपक्ष के अरमान भी पूरे निकल सकेंगे। वैसे अब खास तौर से चुनावी साल में यह उम्मीद बेमानी ही नजर आती है…।