दूरी न रहे कोई… सौ साल और संघ का मुस्लिम प्रेम…

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दूरी न रहे कोई… सौ साल और संघ का मुस्लिम प्रेम…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

यह वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे होने का साक्षी बनने जा रहा है। और संघ की हर विषय पर बेबाक राय रही है। और मुस्लिम भी संघ की प्राथमिकता में शुमार है। हालांकि राय बेबाक है कि हिंदू-मुस्लिम डीएनए एक ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शताब्दी वर्ष में हिंदू-मुस्लिम विवाद कम करने का लक्ष्य रखा है। मुस्लिम समाज से संवाद बढ़ाने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा दिल्ली में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज के आर्थिक और शैक्षणिक विकास पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुस्लिम एक ही हैं और दोनों का डीएनए एक ही है। भागवत का मानना है कि हिंदू-मुस्लिम एकता जरूरी है। देश को आर्थिक प्रगति व स्थिरता देने के लिए जरूरी है कि आपसी मतभेद खत्म हों और हिंदू-मुस्लिम मिलकर आगे बढ़ें। मुस्लिम समाज से संवादों का यह सिलसिला संघ की करीबी संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) की ओर से तेज किया जाएगा। आगामी दो माह में दिल्ली में एक बड़े मुस्लिम सम्मेलन के साथ ही देशभर में जिला स्तर पर मुस्लिम बौद्धिक बैठकों का आयोजन होगा। जिसमें संघ पदाधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।

इसी तरह, शताब्दी वर्ष में संघ द्वारा लक्षित करीब 20 करोड़ घरों में गृह संपर्क में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में यह जिम्मा एमआरएम उठाएगी। यह फैसला सरसंघचालक मोहन भागवत की एमआरएम के शीर्ष पदाधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक में लिया गया। जिसमें संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल व एमआरएम के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार भी प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

सवाल बहुत सारे हैं। पर चर्चा का मुख्य विषय यही है कि देश की प्रगति की दिशा में कैसे हिंदू-मुस्लिम समाज की दूरियां कम हों? कैसे एक भारतीयता की पहचान को मजबूत किया जाए? गौरतलब है कि संघ प्रमुख की ओर से मुस्लिम समाज के आर्थिकी व शैक्षणिक विकास के प्रयासों पर जोर देने का निर्णय लिया गया, जिससे वह समाज की मुख्य धारा में आएं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत की सोच को सीमित दायरे में नहीं परखा जा सकता है। उनका कहना है कि हिंदू-मुस्लिम, दो नहीं बल्कि, एक ही हैं। दोनों भारत के अखंड हिस्सा हैं। परंपराओं, पूर्वजों के साथ ही दोनों का डीएनए एक ही है। तो इसका सीधा सा मायना यही समझा जाता है कि लव जिहाद और धर्मांतरण जैसी सोच को पूरी तरह से खत्म होना चाहिए। और अगर संभव हो सके तो मुसलमानों को वापसी भी कर लेना चाहिए। ये बैठकें उस संवाद का क्रम है जिसमें नियमित रूप से संघ प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों से मिल रहे हैं और समाजों के बीच बने भ्रम को दूर कर नजदीक लाने के विभिन्न तरीकों पर चर्चा हो रही है।

खैर आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष (100 साल) के मौके पर यह एक बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस फैसले के तहत अब हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच की दूरियों को कम करने और आपसी भाईचारा बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। देश की आर्थिक प्रगति और स्थिरता के लिए दोनों समुदायों का मिलकर काम करना बहुत जरूरी है। मकसद यह भी है कि कैसे हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच की गलतफहमियों को दूर किया जाए और ‘एक भारतीयता’ की भावना को मजबूत किया जाए‌। इस फैसले के तहत आरएसएस से जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अब देशभर में मुस्लिम समाज के लोगों से बातचीत का सिलसिला तेज करेगा।

ताकि हिंदू और मुस्लिम के बीच की खाई भरी जा सके। और इससे भी बड़ी बात यह कि मुसलमानों की संघ के प्रति धारणा भी बदली जा सके। और संघ यदि अपने इस मिशन में कामयाब रहा तब देश नए स्वरूप में उन सब को आइना दिखा सकेगा जो हिंदू मुस्लिम के नाम पर देश को अलग-अलग हिस्सों में बांटने की नाकामयाब कोशिश करते हैं। यही उम्मीद कि 100वें साल में संघ की इस खास कोशिश में उसे कामयाबी मिले और भारत पूरी दुनिया में भाईचारे की मिसाल कायम करे। बात बस इतनी सी ही है कि दूरी न रहे कोई… ताकि संघ के मुस्लिम प्रेम के भी सभी कायल हो सकें।