किशोर जैसा हरफनमौला कोई था न होगा!

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कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जो इतिहास में एक तारीख बन जाती हैं। ऐसी ही एक तारीख है 4 अगस्त। इसी दिन इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ का जन्म हुआ और इसी दिन अमेरिका पर राज करने वाले राष्ट्रपति बराक ओबामा का जन्म हुआ। 4 अगस्त 1929 ही वह तारीख है जिस दिन हमारे प्रदेश के खंडवा शहर में करोड़ों दिलों पर राज करने वाले गायक-अभिनेता और सिनेकला के सभी क्षेत्रों के महारथी किशोर कुमार का जन्म हुआ। किशोर कुमार को समझने के लिए किशोर कुमार को जानना बहुत जरूरी है। लेकिन सबसे बडी बात तो यह है कि किशोर कुमार ही वह शख्स थे जिन्हें जानना बहुत मुश्किल था। किशोर कुमार को गायक बनाने में उनका बचपन में रोने की आदत का बड़ा हाथ रहा है। इस बारे में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने कहा था कि बचपन में बहुत दिनों तक किषोर कुमार ने बोलना नहीं सीखा था। उनकी इस खामी पूरा घर परेशान था। तभी एक घटना हुई एक दिन वह सीढ़ियों से नीचे गिर पड़े और तीन दिन तक रोते रहे और जब वह चुप हुए तो उन्हें आवाज मिल गई। यह वही आवाज थी जो आगे चलकर हिन्दी सिनेमा की प्रमुख आवाज बन गई।

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बचपन से ही किशोर कुमार को तरह तरह की हरकतें करने की आदत थी। उन्हें घर की हर चीजें उलट पुलट करने और तोड़ने जोड़ने में मजा आता था। इसी आदत के चलते वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी बने और सिने जगत की सारी विधाओं जिनमें गायन, वादन, गीत लेखन,फिल्म निर्माण, निर्देशन, फोटोग्राफी और अभिनय का सम्पूर्ण और विशिष्ट ज्ञान था। जिसे उन्होने अपनी फिल्मों में आजमाया और दुनिया को दिखा दिया कि किशोर कुमार केवल एक ही हो सकता है।

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हिन्दी सिनेमा में एक दस्तूर है कि हर अभिनेता की एक विशिष्ट शैली होती है । और कुछ अभिनेताओं के बारे में यह धारणा व्याप्त हो जाती है कि उनके सामने दूसरा अभिनेता टिक नहीं सकता है। ऐसे अभिनेताओं में राजकुमार, महमूद और प्राण का नाम सबसे ऊपर आता है। किशोर कुमार ने इस धारणा को तोड़ते हुए इन सभी दिग्गजों के सामने अपने अभिनय का वह जौहर दिखाया कि उन्हें भी किशोर कुमार के सामने खड़े होने में घबराहट होने लगती थी। राज कुमार के साथ वह शरारत में नजर आए थे। इस फिल्म में उनका डबल रोल था । एक शरारती और दूसरा गंभीर । फिल्म देखने वालों का कहना है कि पूरी फिल्म में राजकुमार कभी भी उन पर हावी नहीं हो पाए।

हास्य अभिनेताओं में महमूद का रुतबा जितना अधिक था उनका पारिश्रमिक भी उतना ही ज्यादा था। धर्मेन्द्र, जितेन्द्र, मनोज कुमार और शशि कपूर, राजेन्द्र कुमार और शशि कपूर भले ही फिल्मों के मुख्य नायक रहे हों लेकिन जिस फिल्म में वह महमूद के साथ आए महमूद ने उनसे ज्यादा पारिश्रमिक पाया। ऐसी ही एक फिल्म थी प्यार किए जा । इस फिल्म में महमूद के साथ किशोर कुमार और शशि कपूर ने काम किया था और महमूद ने शशि कपूर और किशोर कुमार से ज्यादा पारिश्रमिक पाया था। यह देखकर किशोर कुमार ने उनके मुंह पर कह दिया था कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुमसे ज्यादा फीस लूंगा।

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उनकी यह बात महमूद की ही फिल्म पड़ोसन में पूरी हुई जिसमें उन्होने महमूद से ही दोगुना फीस वसूल की। महमूद का कहना था कि चाहे फिल्म का नायक मुझसे डरता हो लेकिन मुझे किशोर कुमार से डर लगता है कि पता नहीं वह कब क्या कर बैठे। ऐसी आशंका प्राण ने भी व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि मैने बडे बडे धुरंधरों पर पर्दे पर धूल चटाई लेकिन किशोर कुमार से फाइटिंग करने में डर लगता था क्योंकि जब भी मैं गुस्से से भर कर उन पर हमला करने की कोशिश करता वह तरह तरह की भाव भंगिमा बनाकर मुझे हंसा देते थे। आखिर मुझे हाथ जोडकर उनसे कहना पडता तथा बाबा माफ करो ।

किशोर कुमार के बारे में तरह तरह के किस्से मशहूर थे। कभी कहा जाता था कि रिकार्डिंग से पहले वह पूरा पैसा मिलने पर ही गाते थे वर्ना कभी उनका पेट दुखने लगता तो कभी वह रिकॉर्डिंग छोड़कर भाग जाते। कभी कहा जाता कि उन्होंने इनकम टैक्स वालों को परेशान करने के लिए कभी पेड़ों पर पैसा छुपाने की बात कही तो कभी घर के बाहर उनसे गड्ढा खुदवा लिया । लेकिन असली किशोर कुमार को समझने वाले कम ही थे । जो उनके गंभीर व्यक्तित्व से परिचित थे। ऐसे ही थे राजेश खन्ना । राजेश खन्ना ने जब अलग अलग बनाई और उसके पहले गाने की रिकॉर्डिंग के बाद किशोर कुमार को पारिश्रमिक दिया तो किशोर कुमार ने उन्हें पारिश्रमिक लौटा दिया और पूरी फिल्म के लिए एक भी पैसा नहीं लिया।

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किशोर कुमार को हंसोड माना जाता था। लेकिन, वे अलग किस्म के इंसान थे। उनके पास हॉरर फिल्मों की सबसे ज्यादा कैसेट थी जिसे वह रात को बिस्तर में रजाई ओढ़कर देखा करते थे। कुछ लोग किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के बीच प्रतिद्वंद्विता की बात करते थे। जबकि, हकीकत तो यह थी कि किशोर कुमार उन्हें अपना गुरु मानते थे। फिल्म रागिनी के एक गीत मन मोरा बावरा उन पर फिल्माया जाना था। वह अड गए कि यदि इस गीत को रफी नहीं गाएंगे तो वह फिल्म ही नहीं करेंगे। तब निर्माता अशोक कुमार को झुकना पड़ा और रफी ने किशोर कुमार के लिए आवाज दी। रफी की मौत पर किशोर कुमार का असली रूप दिखाई दिया वह रफी के मृत शरीर के पास बैठे रहे और उनके पैर पकड़ कर घंटों रोते रहे।

कंजूस और पैसों के लिए मोह जताने वाले किशोर कुमार को वास्तव में पैसों से कोई मोह नहीं था। इसलिए वह अपनी सारी कमाई फिल्म बनाकर उड़ा दिया करते थे। वह तो कहा करते थे कि जब हम मरेंगे तो पैसे छाती पर बांध कर ले जाएंगे। लेकिन हकीकत तो यह है कि मायानगरी और वहां का वातावरण उन्हें कभी रास नहीं आया और वह हमेशा यही कहते सुनाई देते थे कि खंडवा जाएंगे, दूध जलेबी खाएंगे। जीते जी उनका खंडवा में बसकर दूध जलेबी खाने का सपना तो कभी पूरा नहीं हुआ लेकिन मरने के बाद उनका शरीर खंडवा की भूमि में ही पंचतत्वों में विलीन हुआ। जहां हर साल उनकी जन्म तिथि और अक्टूबर में पुण्यतिथि पर उनके स्मारक पर दूध जलेबी का भोग लगाया जाता है।