मानसरोवर में संवेदनशीलता थी, गर्माहट थी, फर्ज का अहसास था, तो अपनों के बिछड़ने का दर्द और मन निराश था …

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मानसरोवर का नाम आते ही ठंडक का अहसास होने लगता है और बर्फीली हवाएं, बर्फीले पहाड़ों और बर्फीली नदियों जैसे दृश्य आंखों के सामने घूमने लगते हैं। मानसरोवर जाने का मतलब ही होता है कि सर्द मौसम से रूबरू होने की हिम्मत और हौसला होना। मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसरोवर सभा कक्ष में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ” बिछड़े कई बारी-बारी ” पुस्तक के विमोचन का अवसर था।
कक्ष के नाम मानसरोवर और कोरोना काल में काल कवलित हुए पत्रकारों पर केंद्रित पुस्तक के विमोचन को देखते हुए लग रहा था कि यहां सब कुछ गैर राजनैतिक ही रहेगा। और जब कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, कांग्रेस नेता डॉ. गोविंद सिंह और कांतिलाल भूरिया जैसे जिम्मेदार मंच पर हों। पर जहां अलग-अलग वैचारिक प्रतिबद्धता वाले राजनीतिक दलों के दिग्गज मौजूद हों, वहां ऐसी कल्पना भी कपोल कल्पित होती है यह साबित हो गया।
मानसरोवर में गर्माहट महसूस हुई और मंच पर करीब बैठे नेताओं के बीच वैचारिक फासले हैं, यह खुलकर साफ नजर भी आया। शायद यह गर्माहट बर्फ की ही थी सो माहौल में नरमी भी कायम रही। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की टिप्पणी पर पलटवार न कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संवेदनशीलता की मिसाल पेश कर यह साबित किया कि मानसरोवर में शिवराज सामान्य स्थितियों में तो “कूल-कूल” ही रहेंगे। बाकी हिसाब-किताब तो किसी दूसरे मंच पर बराबर करने से भी नहीं चूकेंगे और सदन में भी जवाब देने से नहीं चूकेंगे।
वैसे बात जब कमलनाथ ने “घोषित सेंसरशिप” और “अघोषित सेंसरशिप” के साथ ही ” वर्तमान सरकारों की मेहरबानी पर मीडिया” की बात निकाली थी तो ऐसे विषयों पर प्रतिक्रिया भी बातों को कितनी भी दूर तलक ले जा सकती थी। पर कोरोना काल में बिछड़े पत्रकारों को याद कर शिवराज ने सभा कक्ष को “राजनीति का सरोवर” नहीं बनने दिया। शिवराज साधुवाद के पात्र हैं तो अच्छा यह भी है कि नेता प्रतिपक्ष के नाते विधानसभा सत्र के पहले दिन नाथ की वेदना को छलकने का कोई मौका तो मिल ही गया। बाकी तो सत्र में जो दिखना है, वह दिखेगा ही। यह बात और है कि सत्र अल्पाल्प साबित होता है या फिर अल्प लेकिन अपनी आयु पूर्ण करने में सफल हो पाता है।
खैर आज तो हम बात करते हैं हमारे अपने उन बिछड़े हुए प्रियजनों की, जिनका बिछुड़ना वाकई दिल को दर्द दे गया। “बिछड़े कई बारी बारी” पुस्तक  क्रूर कोरोना काल में असमय छीन लिये गये प्रदेश के लगभग सौ पत्रकारों के जीवन और उनके पत्रकारिता में योगदान पर आधारित है। पुस्तक के लेखक देव श्रीमाली हैं।
जैसा उन्होंने साझा किया कि कोरोना की दूसरी लहर में असमय काल के गाल में समा गए पत्रकारों से जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई संभव नहीं है। पुस्तक लेखन का उद्देश्य यही है कि इन्हें याद रखा जा सके और शोध संदर्भ में यह सामग्री उपयोगी साबित हो सके। तो मुख्यमंत्री ने वेदना जताई कि कोरोना काल में दिवंगत पत्रकारों पर केंद्रित यह पुस्तक, फिर न लिखनी पड़े, ऐसे प्रयास हों।
तीसरे लहर की आशंका के मद्देनजर मीडिया जागरूकता प्रसार की भूमिका का पुनः निर्वाह करे। प्रत्येक व्यक्ति को मास्क लगाने के लिए प्रेरित करना है। यह बचाव का प्रभावी माध्यम है। कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर के समय हम गहरी वेदना के दौर से गुजर चुके हैं। अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन और जीवन रक्षक औषधियों की व्यवस्था के लिए सभी ने दिन-रात कार्य किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मृत्यु अवश्यंभावी है। लेकिन कोई जाता है तो टीस छोड़कर जाता है। कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं, जो सदैव याद आते हैं।
कोरोना लहर में हमसे बिछड़े शिव अनुराग पटेरिया, राजकुमार केसवानी, मनोज पाठक, प्रवीण श्रीवास्तव सहित सभी नाम ऐसे हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। केसवानी के नाम के साथ भोपाल गैस त्रासदी को मुख्यमंत्री ने याद किया और बताया कि त्रासदी के पूर्व सभी को आगह करते हुए उन्होंने लेखन किया। इस रिपोर्ट पर बीडी गोयनका अवार्ड मिलने पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि काश यह हादसा न होता, यदि उनके लेख में दी गई चेतावनी को गंभीरता से लिया जाता।
इसी तरह मुख्यमंत्री ने याद किया कि स्वर्गीय पटेरिया मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इन्सायक्लोपीडिया थे। वे ज्ञान के भंडार थे, एक चलती-फिरती लायब्रेरी थे। पत्रकारों के परिवार अब हमारी जिम्मेदारी हैं। तो शिव अनुराग पटेरिया के बेटे प्रखर का आभार जताते हुए अपने पिता को याद करना सभी के दिल को छू गया।
दिल दर्द से भरा था लेकिन पिता के संबंधों की पूंजी के सहारे जीवन बिताने के हौसले की अभिव्यक्ति ने सभा कक्ष में मौजूद हर व्यक्ति के दिल को छू लिया। पिता का बेटा होने पर गर्व है…प्रखर के यह शब्द सुनकर स्वाभिमान और आत्मसम्मान के साथ हर परिचित और अपरिचित शख्स की मदद से अनुराग रखने वाले उनके पिता शिव में समाहित हो गए स्वर्गीय पटेरिया की आत्मा संतृप्ति के सरोवर से जरूर सरावोर हो रही होगी।
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम की यह अपील भी कि कोरोना लहर से बचने और बचाने के लिए पत्रकारों का योगदान अनिवार्य है। तो उनका “स्वल्पाहार” और “अल्पाहार” को परिभाषित करना भी वहां मौजूद सभी की यादों में रहेगा। हम अगर बात करें तो शिव और सोम के दिन सोमवार को मानसरोवर में संवेदनशीलता थी, गर्माहट थी, फर्ज का अहसास था और अपनों के बिछड़ने दर्द भी अपार था, मन भी निराश था …मानसरोवर सभा कक्ष का यह आयोजन बहुत ही सारगर्भित था, तो आत्मा को झकझोरने वाला भी था।