यह डॉक्टर नहीं सेवक हैं…
कई बार मन में उथल-पुथल हुआ कि लिखूं या न लिखूं। पर मन ने कहा लिखना ही चाहिए। भोपाल में डॉ. एनपी मिश्रा के बाद यदि मुझे पहली मुलाकात में ही किसी डॉक्टर ने प्रभावित किया तो इन्हीं डॉक्टर साहब ने। चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. सीबी बंसल ने। रिटायर हुए बीस साल हो गए और डॉक्टर साहब सेवक के रूप में समाज की सेवा में जुटे हैं। डॉक्टर साहब के खुद के शब्दों में लिखूं तो यह कि मैं तो सेवक हूं। चाहे कोई मंदिर से आए, चाहे कोई मस्जिद से आए, चाहे कोई चर्च या गुरुद्वारे से आए, मैं सेवा कप देता हूं। कोई अपाहिज है, कोई गरीब है, कोई मजबूर है या कोई मजदूर है…मैं इलाज कर देता हूं। फीस दे रहा है या नहीं दे रहा है, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं। मैं कभी भी कोई प्रचार-प्रसार नहीं करता कि कोई यहां आए। आप भी किसके रिफरेंस से आए, मुझे पता नहीं…।
यह सिर्फ कहने के बाद मैंने नहीं माना, बल्कि मुझे मेरे जिन पारिवारिक सदस्य ने डॉक्टर साहब के पास भेजा था, उनके शब्दों में इससे भी ज्यादा प्रभाव था। मुझे मेरी माताजी को दिखाना था। जब उन्हें बताया तो उनके शब्दों में ‘भोपाल नहीं, देश नहीं, दुनिया के सबसे अच्छे, सबसे बेहतर जांच-उपचार वाले कोई डॉक्टर हैं तो नेहरू नगर के आगे पेट्रोल पंप के पास गोमती नगर में डॉ. सीबी बंसल’। इसके बाद वैसे यदि और लेकिन का विकल्प खत्म हो चुका था। उन्होंने मुझे फोन नंबर भेजा और मैंने डॉक्टर साहब से बात की, तो उन्होंने मुझे शाम पांच से सात बजे के बीच आने का कहा। मैं शाम छह बजे पहुंचा, तो डॉक्टर साहब के क्लीनिक में दो मरीज इंतजार कर रहे थे। मैंने भी उत्सुकतावश एक मरीज से पूछ लिया कि डॉक्टर साहब बहुत अच्छा इलाज करते हैं। तो पच्चीस-तीस साल के उस युवक ने बताया कि साहब मुझे हर्पीस हुआ था। डॉक्टरों ने कह दिया था कि चेहरे का आधा हिस्सा खराब हो जाएगा। किसी ने डॉक्टर साहब का बताया और मैं इनके पास आ गया। डॉक्टर साहब ने जो दवाएं लिखीं, उससे मुझे तीन घंटे में ही आराम मिल गया। और मेरा चेहरा भी बच गया। मेरी डॉक्टर साहब के सामने पहुंचने की उत्सुकता इससे और बढ़ गई। मैंने स्वअनुशासन का पालन करते हुए उस युवक से कहा कि आप दोनों लोग जाइए, फिर तीसरे नंबर पर मैं दिखा लूंगा। संशय पहले भी नहीं था, क्योंकि जिनके रिफरेंस पर मैं यहां पहुंचा था, उसके बाद ऐसी किसी गुंजाइश की रत्ती भर जगह नहीं थी। पर युवक के साथ संवाद ने मुझे डॉक्टर साहब के विश्व के सबसे बेहतर डॉक्टर के टैग से सराबोर कर दिया था।
जब मैं डॉक्टर साहब के सामने पहुंचा तो बिना किसी परिचय के माताजी के लक्षणों के आधार पर उनके उपचार ने मुझे और मेरी पत्नी को अति प्रभावित कर दिया। और डॉक्टर साहब कहने पर उनकी प्रतिक्रिया ने मुझे देश-दुनिया की हकीकत का अहसास करा दिया। बीस साल पहले हमीदिया अस्पताल से रिटायर हुए 80 वर्षीय डॉक्टर बंसल ने अपना दर्द बयां किया कि मुझे डॉक्टर मत कहो साहब, मैं तो सेवक हूं। आजकल कोई डॉक्टर कहता है तो मुझे डी ए सी ए आई टी अक्षर नजर आते हैं। यह तो रात में लूटमार करते हैं पर डॉक्टरी पेशे वाले लोग दिन में ही डकैती डालते नजर आते हैं। वास्तव में अस्सी वर्षीय डॉक्टर सीबी बंसल के इस इत्तेफाक से मैं भी ताल्लुकात रखता हूं। आज किसी गरीब का इलाज हो पाए, यह संभव ही नहीं है। वहीं डॉक्टर बंसल सीहोर जाकर भी मरीजों का इलाज करते हैं और बिना फीस की प्रत्याशा के। और मैं ही दावा कर सकता हूं कि कोई भी चर्म रोग विशेषज्ञ इनसे बेहतर नहीं हो सकता। जैसा उन्होंने चर्चा में बताया कि सरकारी नौकरी में भी कभी किसी को आपत्ति जताने का अवसर नहीं दिया। सुबह से रात तक मरीजों की सेवा को ही परम कर्तव्य माना।
खैर जो भी हो, डॉक्टर सीबी बंसल को सेल्यूट। कभी आपको भी जरूरत पड़े, तो आप भी डॉक्टर साहब से मिलिए। दावा है कि बीमारी भी ठीक होगी और मन भी ठीक हो जाएगा। क्योंकि यह डॉक्टर नहीं सेवक हैं, जो हर डॉक्टर को होना ही चाहिए।