BJP’s Decision : गडकरी और शिवराज को संसदीय बोर्ड से हटाने के ये कारण रहे! 

गडकरी की टिप्पणियों से विपक्ष को हमले का मौका मिलता

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BJP’s Decision : गडकरी को शिवराज को संसदीय बोर्ड से हटाने के ये कारण रहे! 

New Delhi : अभी तक इस बात का सही जवाब नहीं मिला कि बीजेपी संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को क्यों हटाया! इसे लेकर अभी तक कई तरह के कयास लगाए जा चुके हैं, पर सही जवाब सामने नहीं आया! लेकिन, अब ये बात सामने आई कि नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाने से हटाने में संघ की सहमति थी! जबकि, शिवराज सिंह को इसलिए हटाया गया कि जब और कोई CM बोर्ड में नहीं है, तो किसी एक को भी क्यों रखा जाए! यानी शिवराज सिंह को हटाने के पीछे कोई असहज कारण नहीं, बल्कि ये प्रक्रिया का हिस्सा है।

बीजेपी ने अपने बड़े नेता और कैबिनेट में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटाने का फैसला कर देशभर को चौंका दिया था। कहा जा रहा है कि इस निर्णय में आरएसएस की भी सहमति थी। बीजेपी और संघ दोनों ही गडकरी की बयानबाजी और टिप्पणी करने की प्रवृत्ति से नाखुश थे। बताते हैं कि संघ ने गडकरी को ऐसी टिप्पणी करने की प्रवृत्ति के प्रति आगाह किया था, जो पार्टी और सरकार को परेशानी में डालती हों! यह भी देखा गया कि गडकरी की टिप्पणियों से विपक्षी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा करने की भी कोशिश की।

जबकि, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटाने के बारे में बीजेपी और संघ के सूत्रों ने कहा कि निर्णय लिया गया कि किसी भी मुख्यमंत्री को निकाय का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा। अब हमारे पास इतने सारे मुख्यमंत्री हैं और हम उनमें अंतर नहीं कर सकते हैं।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नितिन गडकरी ने आरएसएस की सलाह को नजरअंदाज किया। इसके बाद आरएसएस नेतृत्व ने भाजपा नेतृत्व को सुझाव दिया कि पार्टी उन्हें संसदीय बोर्ड से हटाने सहित उचित कार्रवाई करे। संघ के सख्त रुख ने भाजपा नेतृत्व की मदद की, जो पहले से ही गडकरी के बयानों से नाराज चल रहा है। इसके बाद उन्हें पार्टी के शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय से हटाने का मन बना लिया। भाजपा और संघ दोनों इस बात से सहमत है, कि व्यक्ति चाहे किसी भी कद का क्यों न हो उसे संगठनात्मक आचरण के नियमों के विरुद्ध जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को कई लोग एक कड़े कदम के रूप में देखते हैं। आरएसएस और भाजपा दोनों के नेतृत्व के इस संदेश को अगर नितिन गडकरी ने गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले समय में उन्हें और भी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। जबकि, संसदीय बोर्ड से बाहर आने के बाद भी नितिन गडकरी ने दो बार इशारों में सरकार पर टिप्पणी की।

‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के मुताबिक, केवल सार्वजनिक रूप से उनके बयान ही नहीं हैं, जिन्होंने सुर्खियां बटोरीं। वे निजी तौर पर भी लाइन से बाहर हो जाते थे, जिससे सरकार और पार्टी को असुविधा होती थी। वहीं, बीजेपी के एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा कि बीजेपी की तुलना में आरएसएस हमेशा उनके बयानों से अधिक नाराज होता था। नितिन गडकरी को ऐसा न करने की सलाह भी दी गई। इसके बावजूद वह उसी तरह की टिप्पणी करते हैं।

हाल ही में नितिन गडकरी ने यह कहकर सुर्खियां बटोरीं कि वह राजनीति छोड़ना चाहते हैं क्योंकि यह शक्ति-केंद्रित हो गई है और सार्वजनिक सेवा का साधन नहीं रह गई है। उनके इस बयान पर विपक्षी दल टिप्पणी करने लगे। 2019 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के तुरंत बाद और लोकसभा चुनाव से पहले नितिन गडकरी ने कहा था कि जो राजनेता लोगों को सपने बेचते हैं। लेकिन, उन्हें वास्तविकता बनाने में विफल रहते हैं, उन्हें जनता द्वारा पीटा जाता है।