चर्चा में रहने के शौकीन हैं MP के ये IAS अधिकारी

कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना

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चर्चा में रहने के शौकीन हैं MP के ये IAS अधिकारी

सुदेश गौड़ की विशेष रिपोर्ट

Bhopal: कश्मीरी पंडितों के दर्दनाक पलायन पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) के माध्यम से चर्चा में आए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी IAS नियाज खान पहले भी अनेक मामलों के कारण सुर्खियों (Limelight) में रहे हैं। वे राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर 2015 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे विशेष दृष्टिकोण के साथ लिखने पढ़ने वाले अधिकारी हैं। अभी तक 7 उपन्यास लिख चुके हैं जिसका जिक्र खुद उन्होंने अपने ट्विटर बायो में दिया है। उनके उपन्यासों के शीर्षक हैं- 1.Destiny in Drugs, 2.Confessions at Black Grave, 3.Love Demands Blood, 4.Talaq, 5.Ashram, 6.Once I was a Black Man, 7.Be Ready to Die.

नियाज अहमद खान का जन्म 21 अक्टूबर 1965 को छत्तीसगढ़ में हुआ था और उन्होंने अंग्रेजी में एमए किया हुआ है।

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नियाज खान फिलहाल लोक निर्माण विभाग में उप सचिव के पद पर तैनात हैं। नियाज का दावा है कि वे अपने धर्म की हिंसक छवि को मिटाने के लिए भी रिसर्च कर रहे हैं। चर्चा में रहने के शौकीन नियाज 10 जनवरी 2019 को ट्वीट करके यह भी प्रचारित कर चुके हैं कि खान सरनेम के कारण उनके साथ भेदभाव होता रहा है।

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फरवरी 2017 में उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम के साथ जेल में एक महीने बिताने की अनुमति मांगकर राज्य के शीर्ष नौकरशाहों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच एक हलचल पैदा कर दी थी ताकि वे सलेम-मोनिका बेदी के मामले पर एक किताब लिख सकें। नियाज अहमद अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम और बॉलीवुड अदाकारा मोनिका बेदी की लव स्टोरी के दफन राज पर आधारित उपन्यास काफी चर्चा में रहा था। उन्होंने तीन तलाक पर भी उपन्यास लिखा था।

वे कल 18 मार्च 2022 को यह ट्वीट कर के सुर्खियों में आ गए कि ‘फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) के निर्माता देश के कई राज्यों में हुई मुसलमानों की हत्याओं पर भी फिल्म बनाएं. मुसलमान कीड़े नहीं, बल्कि इंसान हैं।’ बड़ा सवाल यह है कि आखिर किसने कहा कि मुसलमान कीड़े मकौड़े हैं। यह उनका कौन सा डर है जो यह सब बुलवा रहा है।

10 जनवरी 2019 को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के तत्कालीन उपसचिव नियाज अहमद खान ने ट्वीट कर अपना दुख जाहिर किया था कि खान सरनेम का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है, ये भूत की तरह मेरे पीछे लगा है। 17 साल की नौकरी में उनके 10 जिलों में 19 बार ट्रांसफर हुए हैं। खान सरनेम होने के कारण उनसे ऐसा व्यवहार हुआ है। एक साल से उन्हें सरकारी मकान तक आवंटित नहीं हुआ है।

जानकारी के अनुसार 9 जनवरी 2019 को पीएचई की एक बैठक में तत्कालीन प्रमुख सचिव विवेक अग्रवाल ने बगैर पूरी तैयारी से बैठक में आने के कारण उपसचिव नियाज अहमद को वहां से निकल जाने के लिए कह दिया था। उस दिन वल्लभ भवन में पीएचई की समय सीमा बैठक थी। इसमें तत्कालीन पीएस विवेक अग्रवाल के साथ विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। इस दौरान पीएस ने नियाज अहमद से एक जानकारी के बारे में जवाब तलब किया। अहमद ने बताया कि विभागाध्यक्ष से जानकारी मांगी थी, लेकिन नहीं मिली। इस पर  पीएस ने पूछा कैसे मांगी, जवाब मिला कि फोन पर बात की थी। इसे लेकर दोनों के बीच गर्मागर्म बहस हुई और अग्रवाल ने अहमद को बैठक से बाहर जाने के लिए कह दिया था। इसके बाद अहमद उठे और बैठक छोड़कर चले गए।

बाद में इसी मौके का फायदा उठाते हुए नियाज अहमद ने पत्र लिखकर इसकी शिकायत तत्कालीन मुख्य सचिव एसआर मोहन्ती से की थी। पत्र में उन्होंने अग्रवाल के साथ काम करने में असमर्थता जताई थी। जबकि तत्कालीन प्रमुख सचिव, पीएचई विवेक अग्रवाल का कहना था कि नियाज अहमद बैठक में बिना तैयारी के आए थे, इसलिए उन्हें डांटा था। अधिकारियों को बैठक में तैयारी के साथ आने का शिष्टाचार तो होना ही चाहिए।

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यजीदियों के जीवन पर लिखी गई आईएएस नियाज खान की सातवीं किताब ‘Be Ready to Die’ को लेकर विवाद भी हुआ था। नियाज खान ने अपनी इस पुस्तक में यजीदियों की तुलना हिंदुओं से की है। बी रेडी टू डाय में बताया गया है कि यजीदियों का अरब देशों में कट्ठरपंथी संगठनों द्वारा लाखों की संख्या में कत्लेआम किया जाता रहा है। इस वजह से यजीदियों की आबादी नहीं बढ़ पा रही है। उन्होंने किताब में यजीदियों की पूजा-पद्धति हिंदुओं से मिलती-जुलती बताई है।

नियाज खान अपने धर्म के लिए भी कुछ करना चाहते हैं और उसकी छवि सही तौर पर पेश करने के लिए किताब लिखने पर भी विचार कर रहे हैं। नियाज खान का दावा है कि उनके द्वारा लिखी गई एक पुस्तक पर ही वेब सीरीज आश्रम बनाई गई थी। इस संबंध में बताए गया है कि इस मामले में नियाज़ और फिल्म के निर्माताओं के बीच भारी विवाद चल रहा है और मामला शायद न्यायालय में विचाराधीन है।

नाम बदलने का इरादा
6 जुलाई 2019 को तथाकथित माब लिंचिंग की घटनाओं पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नियाज अहमद ने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाने तक की इच्छा जाहिर कर सनसनी फैला दी थी। उन्होंने ट्वीट कर लिखा था कि नया नाम मुझे हिंसक भीड़ से बचाएगा। अगर मेरे पास न टोपी, न कुर्ता और न दाढ़ी है, तो मैं भीड़ को अपना नकली नाम बताकर आसानी से बच सकता हूं। हालांकि, अगर मेरा भाई पारंपरिक कपड़े पहने हुए है और दाढ़ी रखता है तो वह सबसे खतरनाक स्थिति में होगा।

जब नियाज खान के मुसलमानों के हत्याकांड पर फिल्म बनाए जाने संबंधी बयान पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगी तो वे बेचैनी के भाव के साथ ट्वीट करते हैं कि ‘ समाज का एक हिंसक तबका है जिसने सच सुनने के लिए अपने कान बंद कर लिए हैं। तथाकथित पढ़े-लिखे लोग भी सच बोलने वाले को गाली देने के लिए गली के स्तर की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। खराब परवरिश और कट्टरपंथियों की कंपनी ने उनका दिमाग खा लिया है। गंदी भाषा का प्रयोग उनके दिमाग को दर्शाता है। मैं बहुत दुखी हूं।

हमेशा चर्चा में बने रहने के लिए नियाज अहमद खान कुछ भी कर सकते हैं। यह भी पता चला है कि कुछ मुस्लिम राजनीतिक संगठन भी भविष्य में उनका राजनीतिक उपयोग करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार बैठे हैं, उन्हें बस नियाज अहमद खान के एक हां का इंतजार है। शायद वे भी सही समय पर ही अपने पत्ते खोलेंगे।

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