बेटियों के प्रति सम्मान’ जगाने के हैं यह नौ दिन…

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नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका है। देवी पूजा का यह पर्व नौ देवियों को समर्पित है। पहला दिन शैलपुत्री, दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा दिन चंद्रघंटा, चौथा दिन कुष्मांडा, पांचवा दिन स्कंदमाता, छठवां दिन कात्यायनी, सातवां दिन कालरात्रि, आठवां दिन महागौरी और नवां दिन सिद्धिदात्री का है। वास्तव में देखा जाए तो यह सभी दिन बेटियों के हैं। बेटियां ही शक्तिस्वरूपा हैं। बेटियां ही दया, करुणा, उदारता, प्रेम, सहजता, सरलता, सौम्यता और विनम्रता की जीवंत मूर्ति हैं। नवदुर्गा उत्सव साल में दो बार आता है। तो दो बार गुप्त नवरात्रि पर्व के होते हैं। ऐसे में साल में छत्तीस दिन सीधे तौर पर देवी पूजा को समर्पित हैं। देवी मतलब बेटी, कन्या और मां का स्वरूप है। नवरात्रि का पर्व वास्तव में यही बताता है कि समाज में बेटियों के प्रति सम्मान का भाव मन में पैदा हो और अनवरत जारी रहे। पर दुःखी करने वाली बात यही है कि सुख, समृद्धि के लिए इंसान देवी दर्शन और पूजा-पाठ में तो लगा रहता है, लेकिन बेटियों के प्रति आस्था, श्रद्धा और सम्मान का स्थायी भाव मन में नहीं जगा पाते। और यही जड़ है समाज में महिलाओं, बेटियों के प्रति लगातार बढ़ रहे अपराध की। और यहीं पर देवी आराधना के मायने अपना मतलब खोते नजर आते हैं…। यह बात आखिर हमें कब समझ आएगी और कब हमारा समाज बेटियों, कन्याओं और महिलाओं के प्रति स्थायी तौर पर सम्मान के भाव से भरेगा ताकि देवी पूजा का पर्व सार्थक हो सके।
यह बात सुखद है कि आज भारत के राष्ट्रपति पद पर महिला विराजित है। भोपाल शहर की महापौर भी महिला हैं। भोपाल संसदीय क्षेत्र से भी महिला साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर प्रतिनिधित्व कर रही हैं। महिलाओं का समाज में जिम्मेदारी में हिस्सेदारी का बढ़ना सुखद संकेत है। पर दूसरी तरफ महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, महिला अपराधों में हो रही बढ़ोतरी, दुष्कर्म के मामलों में मासूम बच्चियों से लेकर महिलाओं का शिकार होना, दहेज प्रताड़ना की शिकार होती महिलाओं की संख्या का बढ़ना, घरेलू हिंसा का शिकार होती महिलाएं आदि समाज का वह काला अध्याय है, जो देवी पर्व की सार्थकता को सही अर्थों में न समझ पाने वालों की तरफ उंगली दिखाता है। और ऐसे में सनातन धर्म की वह मंशा  ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ भी सीमित दायरे में सिमटती नजर आती है।
वास्तव में देखा जाए तो समाज में नवरात्रि पर्व का महत्व ‘बेटियों के सम्मान’ के पर्याय के रूप में जन-जन के मन तक इस तरह पहुंचाया जाना चाहिए कि फिर समाज में महिलाओं के प्रति अपराध की कोई गुंजाइश ही न रह जाए। देखा जाए तो ‘डॉटर्स डे’ का एक दिन यह संदेश देने में सफल रहा है कि वह दिन डॉटर्स की भावनाओं की कद्र करने का है। सनातन धर्म में तो हर दिन बेटियों का है और नवरात्रि के 36 दिन तो पूरी तरह से धर्म-अध्यात्म और कर्म में देवी पूजा यानि बेटियों के सम्मान के दिन ही हैं। फिर हमसे कहां चूक हुई है कि बेटियों को असम्मान, अत्याचार और अपराधों का शिकार होना पड़ रहा है। तो आइए हम अब देवी पूजा के इस पर्व को बेटी सम्मान के पर्व की तरह मनाकर इसे पूर्णता प्रदान करेें…। ताकि किसी बेटी की आंख में आंसू न आए, चाहे वह समाज में किसी भी स्वरूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही हों…।