इधर सोच हर पल-खिले कमल, उधर बस यही हसरत-वापसी का मत…

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Bjp Membership Campaign
मध्यप्रदेश में दोनों दल भाजपा-कांग्रेस अब पूरी तरह से 2023 की तैयारियों में जुट गए हैं। लक्ष्य है सत्ता। भाजपा सत्ता में रहने को आश्वस्त है, तो कांग्रेस सत्ता में आने को सतत प्रयत्नशील है। भाजपा के पास सरकार-संगठन की दोहरी शक्ति है, तो कांग्रेस संगठन के बूते सत्ता की कवायद में जुटी है। अंतर कार्यशैली का है। इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकारी नजरिये से हर जिले और हर विधानसभा पर नजर है, तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा संगठन की नजर से चौबीस घंटे सशक्तिकरण का कोई अवसर नहीं गंवा रहे। उधर कांग्रेस संगठन में 2023 के नजरिये से बदलाव जारी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की नजर से ही डगर को सजाया-संवारा जा रहा है। 15 माह सरकार चलाकर कमलनाथ सरकारी नजरिये से वार करने में सिद्धहस्त हैं, पर डर है तो कैडर बेस संगठन का…जिसे दुरुस्त करने में कांग्रेस लगी हुई है।
एक नजर सरकार-संगठन पर डालें, तो मुख्यमंत्री शिवराज के दिन की शुरुआत राजधानी से बाहर न रहने पर एक जिले की समीक्षा से हो रही है। जहां चौथी पारी की शुरुआत में रवैया कलेक्टर-एसपी को उल्टा लटकाने का था, तो फिलहाल पूरी तरह से संतुलित रवैया अपनाकर जिलों में हो रहे अच्छे कामों की प्रशंसा भी करते हैं और जहां काम ठीक नहीं है उस पर नाराजगी भी जताते हैं। जिलों में सत्ता से जुड़े जनप्रतिनिधिगण की मौजूदगी में बारीकी से सारी स्थितियों पर पैनी नजर डालते हैं मुख्यमंत्री शिवराज। नए विकास कार्यों की चर्चा और उस पर अमल की बात भी होती है, तो सड़क, बिजली, पानी, कानून-व्यवस्था सहित तमाम योजनाओं के क्रियान्वयन का पाई-पाई हिसाब लेकर तारीफ के साथ-साथ सुधार की कड़वी दवाई सख्ती से पिलाई जाती है। ताकि परिणाम इतने बेहतर मिल सकें कि 2023 का रास्ता कंटकमुक्त होकर सुकूनभरा बन जाए। तो सरकार के साथ-साथ संगठन को भी पूरा समय देते हैं। ठीक उसी तरह जैसे वल्लभ भवन में बैठने के साथ-साथ मैदान में डंटे रहने में संतुलन बनाने में कसर नहीं छोड़ते।
दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का पूरा समय बिना एक पल गंवाए संगठन के साथ-साथ हर बूथ के सशक्तिकरण को समर्पित है। सांसद हों या विधायक, प्रदेश पदाधिकारी हों या जिलों के कर्ता-धर्ता एक-एक बूथ जहां कोई गुंजाइश है, वहां पूरी मेहनत कर बूथ को सौ फीसदी सशक्त बनाने में चौबीस घंटे मेहनत की जा रही है। जिस तरह भाजपा का नया हाईटेक प्रदेश कार्यालय बनाने की कवायद है, उसी तरह प्रदेश अध्यक्ष चाहे दौरे पर हों-चाहे निवास कार्यालय पर हों या प्रदेश कार्यालय पर…पूरे समय हर जानकारी से अपडेट रह सख्ती और समझाइश का दौर जारी रहता है। प्रदेश संगठन महामंत्री और अन्य पदाधिकारियों के साथ बैठकों का सिलसिला लगातार जारी है। नजर इस बात पर भी है कि विधायकों-सांसदों का परफोर्मेंस क्या है और 2023-24 के आंकड़े में कौन कितना फिट दिख रहा है और कौन अनफिट नजर आ रहा है। तो नजर वहां भी है कि जिलों में संगठन के किन चेहरों को सर्जरी की जरूरत है। परिश्रम की पराकाष्ठा से कोई समझौता नहीं, तो लक्ष्य हासिल करने की रणनीति के क्रियान्वयन में पूरा समर्पण।
उधर कांग्रेस में भी चुनावी साल से पहले बदलाव का दौर जारी है। मुख्यमंत्री रहने के बाद नाथ नेता प्रतिपक्ष और संगठन के मुखिया बतौर पारी खेलते रहे। पर जैसे ही 2023 करीब आया, तो नेता प्रतिपक्ष का पद त्याग कर चंबल से कद्दावर नेता डॉ. गोविंद सिंह को कुर्सी सौंप दी। कोशिश यही कि श्रीमंत की भरपाई हो गई है, यह संदेश चंबल-ग्वालियर की जनता तक पहुंच जाए। और ग्वालियर-चंबल से जितने विधायक कांग्रेस के 2018 में चुनकर आए थे, वह नहीं तो कम से कम आधी सफलता ही पार्टी के खाते में दर्ज हो सके। महाकौशल, मालवा में स्थितियां जस की तस भी रहें, तो भरपाई विंध्य से हो जाए। विधायकों को जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा रहा है, ताकि अपनी-अपनी सीट बचाने में तो सफल रहें। दोहरी जिम्मेदारियों में ऐसा न हो कि “माया मिली न राम” यानि न इधर के रहे न उधर के और पार्टी बैकफुट पर आ जाए। संगठन के पदों पर योग्य चेहरों को तवज्जो दी जा रही है। इन महत्वपूर्ण पदों पर विधायकों की संगठनात्मक योग्यता को भी तरजीह दी जा रही है। आदिवासी क्षेत्रों पर पूरी नजर है, तो सरकार की खामियां बयां कर दूसरे क्षेत्रों पर भी निगाहें हैं। 2018 की तुलना में आसानी यह है कि संतुलन बनाने के लिए अब तीन की जगह दो चेहरों में ही संघर्ष है। तो नुकसान यह है कि वह तीसरा चेहरा बड़ा प्रभावी था, जिसकी भरपाई बड़ी चुनौती भी है।
खैर दोनों ही दलों की कवायद जारी है। सरकार और संगठन की दोहरी शक्ति के साथ मैदान में भाजपा पूरा दम लगा रही है। परिश्रम की पराकाष्ठा में आगे है, तो संसाधनों की उपलब्धता में भी बेहतर है। तो हर पल सोच भी यही है कि कमल के खिले रहने में कुछ भी बाधा न रहे। वहीं कांग्रेस में नाथ के चेहरे पर ही सब कुछ टिका है। 15 माह सरकार में रहकर शुरू किए कामों का हवाला है, तो उसी नजर से भाजपा सरकार के कामों पर प्रहार करने का तेवर है। संगठन को चाक-चौबंद कर बस यही हसरत है कि 2023 में वापसी का मत हिस्से में आएगा…।