बंदूक और बाहुबल से बदलाव की सोच

क्या अहिंसा और लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है...?

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Karnatak Election
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18 महीने ही बचे ह जब यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि कोई रिटर्न हो रहा है या भाजपा की सरकार ही राज करती रहेगी। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। वैसे तो दोनों प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस संगठनात्मक तौर पर मैदान में हैं। भाजपा कैडर बेस पार्टी है और पूरे समय मैदान में रहती है। और 20 जनवरी से बूथ विस्तारक योजना के तहत दस दिन तक भाजपा के बड़े नेताओं, मुख्यमंत्री, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से लेकर कार्यकर्ता तक सभी मैदान में बूथ-बूथ को चाक-चौबंद करने की कवायद में जुटेंगे। तो संगठन की बड़ी बैठक लेकर कांग्रेस ने भी साफ कर दिया है कि पार्टी की जो फजीहत उत्तर प्रदेश में हो रही है, वह मध्यप्रदेश में नहीं चाहते तो घर-घर का दरवाजा खटखटाकर जमीन पर खुद को मजबूत कर लो। एक फरवरी से कांग्रेस घर चलो, घर-घर चलो अभियान के जरिए बूथ को मजबूत करने की कवायद में जुटेगी। यहां तक तो सब ठीक है। लेकिन वायरल होता कमलनाथ रिटर्न्स ग्राफिक्स वीडियो हिंसात्मक रवैये से ओतप्रोत है। वीडियो में समाई खूनी भावना लोकतंत्र के प्रति दुर्भावना लिए अट्ठहास करती नजर आ रही है। तो दूसरी तरफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहिंसा के प्रति समर्पण का राग अलापने वाले राजनीति के कर्णधारों के चेहरे से नकाब उतारते प्रतीत हो रहे हैं सोशल मीडिया में धमाल मचाते कमलनाथ रिटर्न्स या इससे पहले जारी हो चुके बाहुबली आधारित राजनैतिक वीडियो। वैसे निशाना तो कमलनाथ का सटीक है। 2018 में मछली की पुतली को नजदीक से भेदकर पंद्रह महीने के मुख्यमंत्री का खिताब अपने नाम दर्ज करा चुके हैं। फिर भी 2023 में बंदूक थामकर कमलनाथ रिटर्न्स वाला वीडियो उनकी लोकतंत्र के प्रति आस्था वाली छवि से मेल नहीं खा रहा है।

 

कमलनाथ का गन लोड करते ग्राफिक्स वीडियो पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने पलटवार किया है कि क्या उनको अफगानिस्तान दिख रहा है, जो इस प्रकार का वीडियो जारी किया है। देश के अंदर, क्या राजनीति में गन संस्कृति की जरूरत है? क्या भारत का समाज ऐसा है ? यह गांधीजी का देश है। इस देश का जनमानस ऐसा है कि प्रेम भाव के साथ आइए, समाज में पहुँचिए, जनता से मिलिए। पर ये गनें लोड कर रहे हैं। वह यहीं नहीं रुके। कमलनाथ की 2023 में वापसी पर बोले कि मुझे जब से संगठन की जिम्मेदारी मिली है जब से मैं रोज देखता हूं कमिंग सून, कमिंग सून। आ जाएं जब आना है। बीजेपी अपना काम करती है। हमें उनसे दिक्कत नहीं है। वह गन लोड करें या क्या-क्या कर रहे हैं? बीजेपी काम के बल पर, कार्यकर्ताओं के बल पर, पद्धति के आधार पर, अनुशासन पर काम करती है और हमें भगवान का आशीर्वाद भी मिल रहा है। तो कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने सफाई दी है कि कांग्रेस और कमलनाथ ने कोई वीडियो जारी नहीं किया है। वीडियो जनता ने जारी किया है। तो उन्होंने निशाना साधा है कि प्रदेश में अफगानिस्तान जैसे हालात बन गए हैं।

 

 

खैर यह वीडियो किसने जारी किया या नहीं, यह मुद्दा कतई नहीं है। मुद्दा तो यह है कि क्या इस तरह के वीडियो राजनीतिक दलों की लोकतांत्रिक भावनाओं से मेल खाते हैं? पर्दे के पीछे क्या होता है, उसे छोड़ दें लेकिन क्या मंच पर कोई बंदूक या बाहुबली संस्कृति का समर्थन करने का दुस्साहस कर सकता है? यह बात साफ है कि जहां हर दल गांधी की विचारधारा का अनुयायी बनने की होड़ लगाता हो, उस लोकतांत्रिक देश भारत में हिंसात्मक रवैये वाले वीडियो को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है? जनता ने भी यह वीडियो जारी किया है, तो जनता की ऐसी भावना को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। और ऐसी जनता को भी कटघरे में लाने का प्रयास कर लोकतांत्रिक भावनाओं को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़कर उदाहरण पेश किया जाना चाहिए। सवाल यही है कि बंदूक और बाहुबल से बदलाव की सोच क्या अहिंसा और लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है…?