तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन…

तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन…

तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन,
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था यह शे’र इसरार-उल-हक़ मजाज़ के मशहूर अशआर में से एक है, माथे पे आँचल होने के कई मायने हैं उदाहरण के लिए शर्म व लाज का होना, मूल्यों का रख रखाव होना आदि और भारतीय समाज में इन चीज़ों को नारी का  श्रंगार समझा जाता है। मगर जब नारी के इस श्रंगार को पुरुष सत्तात्मक समाज में नारी  की कमज़ोरी समझा  जाता है तो  नारी का व्यक्तित्व संकट में पड़ जाता है।इसी तथ्य को शायर ने अपने शे’र का  विषय बनाया है। शायरी नारी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि यद्यपि  तुम्हारे माथे पर शर्म व हया का आँचल  ख़ूब लगता है मगर उसे अपनी कमज़ोरी मत बना। वक़्त का तक़ाज़ा है कि आप अपने इस आँचल से क्रांति का झंडा  बनाएं और इस ध्वज को अपने अधिकारोंके लिए उठाएं।
मजाज को हम आज इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि उनका जन्म 11 अक्टूबर को ही हुआ था। अग्रणी एवं प्रख्यात प्रगतिशील शायर, रोमांटिक और क्रांतिकारी नज़्मों के लिए प्रसिद्ध, ऑल इंडिया रेडियो की पत्रिका “आवाज” के पहले संपादक, मशहूर शायर और गीतकार जावेद अख़्तर के मामा असरारुल हक़ मजाज़ (1911-1955) उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। लखनऊ से जुड़े होने से वे ‘मजाज़ लखनवी’ के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। आरंभिक उपेक्षा के बावजूद कम लिखकर भी उन्होंने बहुत अधिक प्रसिद्धि पायी। मजाज़ का असली नाम असरारुल हक़ था। आगरा में रहते समय उन्होंने ‘शहीद’ उपनाम अपनाया था। बाद में उन्होंने ‘मजाज़’ उपनाम अपने नाम के साथ जोड़ा। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1911 को उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले के रुदौली गाँव में हुआ था; हालाँकि फ़िराक़ गोरखपुरी के अनुसार उनकी जन्म-तिथि 2 फरवरी 1909 है। प्रकाश पंडित ने भी यही जन्म-तिथि मानी है। उनके पिता का नाम चौधरी सिराजुल हक़ था। वस्तुतः मजाज़ की मूल चेतना रोमानी है। इनके काव्य में प्रेम की हसरतों और नाकामियों का बड़ा व्यथापूर्ण चित्रण हुआ है। आरंभ में मजाज़ की प्रगतिशील रचनाओं के पीछे भी एक रोमानी चेतना थी, मगर धीरे-धीरे इनकी विचारधारा का विकास हुआ और मजाज़ अपने युग की आशाओं, सपनों, आकांक्षाओं और व्यथाओं की वाणी बन गये। मजाज़ ने दरिद्रता, विषमता और पूँजीवाद के अभिशाप पर बड़ी सशक्त क्रांतिकारी रचनाएँ की हैं, मगर काव्य के प्रवाह और सरसता में कहीं कोई बाधा नहीं आने दी।
सुप्रसिद्ध शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने मजाज़ की क्रांतिवादिता एवं कवित्व के बारे में लिखा है कि “मजाज़ की क्रांतिवादिता आम शायरों से भिन्न है।.. मजाज़ क्रांति का प्रचारक नहीं, क्रांति का गायक है। उसके नग़मे में बरसात के दिन की सी आरामदायक शीतलता है और वसंत की रात की
सी प्रिय उष्णता की प्रभावात्मकता।”
एक झलक देखने के लिए उनका यह शेर भी काफी है…
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी,
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
कहते हैं कि आगरा तक तो मजाज इश्किया शायर थे, पर अलीगढ़ आते-आते इश्किया शिद्दत इंकलाब में तब्दील हो गई। वैसे भी वह दौर स्वाधीनता आंदोलन में आए तारीखी उबाल का था। देश के नामी कवि-शायर और फनकार इंकलाबी गीत गाने लगे थे। ऐसे माहौल में उन्होंने ‘रात और रेल’, ‘नजर’, ‘अलीगढ़’, ‘नजर खालिदा’, ‘अंधेरी रात का मुसाफिर’, ‘सरमायादारी’ जैसी बेजोड़ रचनाएं लिखीं। उसी दौरान मजाज आल इंडिया रेडियो की पत्रिका ‘आवाज’ के सहायक संपादक हो कर दिल्ली पहुंच गए।दिल्ली में नाकाम इश्क के दर्द ने लखनऊ लौटा दिया। फिर वे देखते-देखते शराब में डूबते चले गए। 1954 में उनको पागलपन का दौरा पड़ा, फिर भी शराब की लत नहीं गई। ऐसी ही बेपरवाह और अराजक जिंदगी जीते हुए 15 दिसंबर 1955 को दिमाग की नस फटने से इस अजीम शायर ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
मजाज का मिजाज इन दो शेर में भी समझा जा सकता है-

खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई,

यकीन आमादे -फस्ले-बहार कम न हुआ।

मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब खुद,

उनकी यह इल्तिजा तकाजा करे कोई।

Author profile
khusal kishore chturvedi
कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के जाने-माने पत्रकार हैं। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में लंबा अनुभव है। फिलहाल भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र एलएन स्टार में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले एसीएन भारत न्यूज चैनल के स्टेट हेड रहे हैं।

इससे पहले स्वराज एक्सप्रेस (नेशनल चैनल) में विशेष संवाददाता, ईटीवी में संवाददाता,न्यूज 360 में पॉलिटिकल एडीटर, पत्रिका में राजनैतिक संवाददाता, दैनिक भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ, एलएन स्टार में विशेष संवाददाता के बतौर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा भी नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन किया है।