

ऐसा भी होता है: कुछ इस तरह मिले आरिफ मिर्जा को चतुर्वेदी जी
ये घटना आज सुबह 11 बजे की है। मैं और नुसरत अस्सी फ़ीट रोड स्थित स्टेटबैंक ऑफ इंडिया की शाखा में आये। मैंने पत्नी को बैंक के गेट पर उतारा और गाड़ी पार्क करने के लिए थोड़ा आगे बढ़ गया। हबीबिया स्कूल के दीवार से सटाकर गाड़ी खड़ी करने के दौरान थोड़ा जजमेंट बिगड़ा और कार का अगला पहिया डेढ़-दो फ़ीट गहरी नाली में उतर गया। पिछला एक पहिया हवा में। उधर मेडम बैंक में बैचेनी से इंतज़ार कर रहीं। मैंने उन्हें फोन कर इस खामखां के कांड की जानकारी दी। मैंने टाटा के प्रदीप जी को भी फोन किया। वो बोले आप टाटा हेल्पलाइन पर बात कर लीजिए। हालांकि प्रदीप खुद भी यहां आ गए। इस बीच नुसरत भी बैंक का काम छोड़ कर घटनास्थल की ओर बढ़ीं। उन्हें इसी सड़क के बाईं ओर जा रही गली में ये अनजान सज्जन मिले और बोले -क्या हुआ बाजी, क्यों घबरा रहीं हैं, नुसरत ने नाली में आधी उतरी कार की तरफ इशारा किया। ये चतुर्वेदी जी हैं। नगर निगम में सुपरवाइजर हैं। मेरे पास आकर बोले भाईजान नो फिकर सिर्फ एक पहिया नीचे उतरा हैं। चतुर्वेदी जी के साथ चार पांच लड़के थे। ये भाई ड्राइविंग सीट पर बैठे। इनके लड़कों ने नाली में उतरे पहिये को उठाकर धकाया। एक लड़के को डिग्गी खोल कर उस पहिये की तरफ बिठाया जो हवा में झूल रहा था। चतुर्वेदी जी ने एक मिनट में गाड़ी बाहर निकाल दी। पंडितजी आपके शुक्रिया के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। मुझे फक्र है मेरे शहर भोपाल में जहां गंगा जमनी तहज़ीब को लोग आज भी सर माथे पर रखते हैं। इन जैसे लोगों की वजह से भोपाल ज़्यादा खूबसूरत नजर आता है।
आपका अहसानमंद रहूंगा चतुर्वेदी जी.
Arif Mirza