कांग्रेस के इतिहास में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए हुई मतदान प्रक्रिया के लिए 21वीं सदी का 22वां साल हमेशा याद किया जाएगा। मल्लिकार्जुन खड़गे का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तब ही तय हो गया था, जब पार्टी ने उनके नाम पर मुहर लगाई थी। पर शशि थरूर के चुनाव मैदान में उतरने के बाद यह साबित हुआ कि लोकतांत्रिक चेहरे को उजागर करने की कवायद तो की गई, भले ही औपचारिकता भर ही सही। यह बात तो थरूर को भी पहले ही पता थी। जब वह मध्यप्रदेश पहुंचे थे, तो यहां स्वागत और पर्याप्त सम्मान पाकर वह खुश हुए थे। हालांकि जब चुनाव एजेंट न मिलने की सूचना उन्हें मिली होगी, तब समझ में आ ही गया होगा कि यह मध्यप्रदेश के जेहन में बसा ‘अतिथि देवो भव:’ का भाव भर था। और मतदान संपन्न होने के बाद माजरा समझकर उन्होंने खड़गे को बधाई देते हुए साफ जता दिया कि वह मात्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए चुनाव मैदान में उतरे थे। यह सब तो कांग्रेस का अंदरूनी मामला है। पर गैर गांधी परिवार के दो उम्मीदवारों का राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए मैदान में आमने-सामने दिखना कांग्रेस में लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करना ही है। संभावित एकतरफा मतदान होकर भी पार्टी को लोकतांत्रिक तरीके से नया अध्यक्ष मिलना कांग्रेस को संजीवनी तो प्रदान करेगा ही।
मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में करीब 95 फीसदी डेलिगेट्स ने मतदान किया और देश में करीब 96 फीसदी मतदान हुआ है। हो सकता है कि थरूर को इकाई या दहाई में ही मत मिले हों, लेकिन थरूर का मैदान में रहने पर ही उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। जानते वह भी पहले से थे कि कांग्रेस आज भी गांधी परिवार की मंशा से ही चलेगी और मल्लिकार्जुन उसके हकदार घोषित हो गए हैं, पर थरूर इस समय लोकतांत्रिक भाव के प्रतिनिधि बनकर मैदान में डटे रहे।
वैसे मानें तो 21 वीं सदी में बहुत कुछ बदल रहा है। वक्त है बदलाव के नारे के साथ मध्य-पदेश में कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और 15 माह के लिए ही सही वक्त को बदलकर तो दिखा ही दिया था। यह नारा वैसे अब पूरे देश में असर दिखा रहा है। अब कौन उम्मीद कर सकता था कि जयविलास पैलेस में रानी लक्ष्मीबाई का आदमकद चित्र लगेगा और गैलरी भी बनेगी। शाह के सामने सिंधिया परिवार के श्रीमंत और युवराज खुशी-खुशी खड़े रहकर भी बड़ी खुशी महसूस करेंगे। कौन सोच सकता था कि मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में होगी और देश मातृभाषा में शिक्षा के दिन का उल्लास मनाएगा। कौन सोच सकता था कि राम मंदिर बनेगा और काशी विश्वनाथ की संकरी गलियां नेस्तनाबूत हो विशाल परिसर आकार लेगा। और कौन सोच सकता था कि गांधी परिवार 21वीं सदी में गैर गांधी परिवार के व्यक्ति को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए लंबी जद्दोजहद कर सफल होगा। आगे भी बहुत कुछ इसी तरह वक्त के सीने में दफन नए-नए बदलाव के बतौर सामने आता रहेगा। निश्चित तौर पर वक्त के साथ लोकतंत्र मजबूत हो रहा है और कांग्रेस को भी राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह मतदान लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बतौर संजीवनी देगा…कितनी यह आने वाला वक्त बताएगा।