पत्थर की यह गूंज क्या सरकार संरक्षित शराब के कारोबार का नाश कर खाक कर देगी …?

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प्रदेश में शराबबंदी हो, यह पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का संकल्प है। नशामुक्त मध्यप्रदेश बने, यह भी फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती की इच्छा है। लोगों का मानस बने और प्रदेश में नशामुक्ति आकार ले, इसके लिए सरकार के मुखिया शिवराज ने दीदी उमा भारती से उनके निवास पर चर्चा कर पूरा सहयोग करने की मंशा भी हाल ही में जताई थी। उमा भारती भी जनजागरण को शराबबंदी और नशामुक्ति का अनिवार्य पहलू मानती हैं।
पर अचानक रणनीति में बदलाव लाते हुए उमा भारती रविवार को एक शराब की दुकान पर पहुंची। शराब की बोतलों पर पत्थर फेंककर मारा। शराब दुकान विक्रेता चुपचाप देखते रहे। और दीदी दुकान से चली गईं। सवाल यह है कि क्या शराब की बोतलों पर फेंककर मारे गए इस पत्थर की इतनी गूंज होगी कि सरकार संरक्षित शराब के ब्रांड खुद को आग के हवाले कर खाक कर लेंगे? या यह प्रदेश में सामाजिक क्रांति की शुरुआत की दिशा में पहला कदम है।

 

कि शराबबंदी और नशामुक्ति के लिए जनता नशे की दुकानों पर पत्थर बरसाए। पुरुष साथ न दें, तो महिलाएं एक-एक पत्थर अपने हाथ में ले जाएं और शराब, भांग और नशे की दुकानों पर बरसाकर इससे मुक्ति पा लें। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। और फिर नशामुक्त प्रदेश में अमन-चैन कायम हो जाएगा। अपराध खत्म हो जाएंगे। और यह प्रदेश एक आदर्श राज्य बन जाएगा।
खैर यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है और सरकार के सामने चुनौती भी है कि किस तरह शराबबंदी-नशामुक्ति अभियान और सरकारी व्यवस्था में तालमेल बिठाया जाए? सरकारी व्यवस्था को पत्थर मारकर कानून अपने हाथ में लेने का काम क्या वाकई उचित है? सुरक्षा के साए में फायर ब्रांड नेता उमा भारती के लिए यह संभव है। लेकिन इसका अनुसरण कर क्या आम आदमी इस मार्ग पर चल सकता है?
शायद जवाब यही है कि शराब कारोबारियों से इस तरह गैरकानूनी रूप से टक्कर लेना आम आदमी की हिम्मत के बाहर है। व्यवस्था तो आखिरकार सरकारी है। फिर सरकार से आखिरकार कौन टकरा सकता है? और क्या इस तरह से टकराना कितना उचित है? इससे तो बेहतर है कि सरकार प्रदेश में सीधे शराबबंदी की घोषणा कर दे। या फिर पत्थर की यह गूंज क्या सरकार संरक्षित शराब के कारोबार का नाश कर खाक कर देगी …?
गांधी जी की सोच थी कि नशा आत्मा और नैतिकता का नाश करती है। ऐसे में उन्होंने आदर्श राज्य के लिए मद्य निषेध एवं नशामुक्ति की जरूरत बताई थी। गुजरात-बिहार भाजपा शासित राज्यों में शराबबंदी है। पर यह दावा नहीं किया जा सकता कि यहां के लोग शराब नहीं पीते हैं। या यह प्रदेश नशामुक्त हो चुके हैं। पर निश्चित तौर पर सरकार संरक्षित इस कारोबार में सहज उपलब्ध शराब की तुलना में शराबबंदी होने पर यह हर किसी की पहुंच में नहीं होने से इसका कुछ न कुछ असर तो दिख ही रहा होगा।
हर गरीब व्यक्ति दिनभर का कामकाज खत्म कर शराब की दुकान पर जाकर कमाई को जाया कर नशे की हालत में घर तो नहीं पहुंच पाएगा। पर ऐसे में जहरीली शराब के अवैध स्रोत लोगों की जिंदगी लीलने का बेनामी पट्टा तो हासिल नहीं कर लेंगे? या शराब ब्लैक रास्ते से अपना राज करने की आदी तो नहीं होगी? सवाल बहुत हैं और जवाब भी अलग-अलग मिलेंगे, लेकिन मुद्दा यही है कि पत्थर की यह गूंज क्या सरकार को शराबबंदी का फैसला त्वरित गति से करने की दिशा में आगे बढ़ाएगी? या फिर शराबबंदी के पक्षधर शराब की दुकानों पर पत्थर बरसाएंगे।