Jhuth Bole Kauve Kaate: ये तो देश में गृहयुद्ध भड़काने की साजिश !

तो क्या देश में अब मां काली और भगवान शिव के आपत्तिजनक पोस्टरों के जरिये गृहयुद्ध भड़काने का सुनियोजित षणयंत्र किया जा रहा ? या, यह केवल फिल्म रिलीज होने से पहले उसे हिट करने का पारंपरिक तरीका है ? पैगंबर विवाद में उन्मादियों ने पहले ही उदयपुर और अमरावती में दो निर्दोषों की जान ले ली थी। हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग इन घटनाओं से भड़का हुआ था ही कि उसे अपमानित कर उकसाने का काम फिल्म डायरेक्टर लीना मणिमेकलई और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने कर दिया। सिर तन से जुदा जैसे फतवे इधर से भी आने लगे। तब वक्त से कार्रवाई हुई होती तो न उनके फतवे जान ले पाते न इनके फतवे हो पाते।

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काली मां विवाद से सुर्खियों में आईं फिल्म डायरेक्टर लीना मणिमेकलई ने गुरुवार को एक और ट्वीट करके भगवान शिव और मां पार्वती का रोल प्ले करने वालों को सिगरेट पीते दिखाया है। इसके पूर्व 2 जुलाई को कनाडा में डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘काली’ का एक ऐसा पोस्टर जारी किया गया था, जिसमें मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है और पोस्टर में मां काली के हाथ में एलजीबीटीक्यू का प्राइड फ्लैग भी है। इस मामले में कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने आपत्ति जताई है। इधर, दिल्ली उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

दूसरी ओर, तमिलनाडु के कन्याकुमारी से एक और विवादित मामला सामने आया, जहां एक बैनर में भगवान शिव को सिगरेट जलाते हुए दिखाया गया। हालांकि, विवाद बढ़ने पर बैनर लगाने वाले लोगों को पुलिस चेतावनी के बाद उसे हटा दिया गया। ये बैनर कन्याकुमारी जिले के थिंगल नगर के पास आरोग्यपुरम में लगाया गया था। यहां दो दिन पहले एक शादी हुई थी, जिसमें दूल्हे को बधाई देने के लिए उसके दोस्तों ने दो जगहों पर विवादित बैनर लगा दिए।

अब बात फतवों और उन्मादियों की। 5 जुलाई को सलमान चिश्ती नाम के एक हिस्ट्रीशीटर ने भाजपा से निलंबित प्रवक्ता नुपूर शर्मा की हत्या पर ईनाम का ऐलान किया था। सलमान चिश्ती  अजमेर शरीफ दरगाह का खादिम है, अंजुमन कमेटी में वोट डालता है। लेकिन दरगाह अंजुमन कमेटी ने उससे पल्ला झाड़ लिया था। अब वह पुलिस की गिरफ्त में है। लेकिन, उसके फतवे तो उन्मादियों तक पहुंच ही गए। सलमान एक हिस्ट्रीशीटर है और  उसके खिलाफ 14 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें हत्या, हत्या का प्रयास भी शामिल है। कुछ मामलों में वह बरी हो चुका है।

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महाराष्ट्र के अमरावती में 21 जून को उमेश प्रह्लादराव कोल्हे की हत्या इसलिए कर दी गई थी कि  उन्होंने नुपूर शर्मा के समर्थन में वॉट्सएप स्टेटस लगा लिया था। जब सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 7 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तब पता चला कि उमेश भी ठीक कन्हैया लाल की तरह निशाना बने थे। इस हत्याकांड के कथित मास्टर माइंड इरफान खान के खिलाफ मध्यप्रदेश के इंदौर में पहले से बलात्कार का एक का मामला चल रहा है। इस मामले में इरफान 19 दिन जेल में भी रह चुका है।

देश का एक बड़ा वर्ग इन घटनाओं से आहत था कि लीना मणिमेकलाई ने हिंदुओं को उकसाने वाला एक नया बवाल छेड़ दिया। तब, अयोध्या के महंत ने फिल्म मेकर को कथित धमकी दी, ‘क्या इच्छा है? तुम्हारा भी सिर तन से जुदा हो जाए!’ उन्होंने कथित तौर पर कहा कि जो दुस्साहस फिल्म मेकर ने किया है, वह क्षम्य है, उन्हें माफी भी मिल सकती है, लेकिन अगर यह फिल्म रिलीज हो गई तो हम वह स्थिति उत्पन्न कर देंगे कि कोई संभाल नहीं पाएगा। सनातन धर्म, संस्कृति और हमारे हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया जाना निंदनीय है।

उधर, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने इस विवाद पर कहा कि काली के कई रूप हैं। मेरे लिए काली का मतलब मांस और शराब स्वीकार करने वाली देवी है। विवाद बढ़ने पर महुआ मोइत्रा ने अपने बयान पर कायम रहते हुए ट्वीट करके कहा कि मैं ऐसे भारत में नहीं रहना चाहती।

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इस पूरे मामले पर भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि ये रचनात्मक अभिव्यक्ति के बारे में नहीं है बल्कि ये जानबूझकर उकसावे का मामला है। उन्होंने आगे लिखा, हिंदुओ को गाली देना- धर्मनिरपेक्षता? हिंदू आस्था का अपमान- उदारवाद? लीना का हौसला केवल इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि उन्हें पता है कि लेफ्ट पार्टियां, कांग्रेस, टीएमसी उनको सपोर्ट करेंगी। मालूम हो कि टीएमसी ने इस बयान से दूरी तो बना ली लेकिन महुआ पर एक्शन नहीं लिया।

झूठ बोले कौआ काटेः

मां काली, भैरव और भगवान शिव को तामसिक देव कहा जाता है। मां काली की उत्पत्ति धर्म की रक्षा करने और असुरों का विनाश करने के लिए हुई। पार्वती और सीता जब गुस्से में आईं तब मां काली का रूप धारण किया। मां काली ने कई असुरों का विनाश किया। इसमें महिषासुर, चंड, मुंड, धम्राक्ष, रक्तबीज जैसे राक्षस शामिल रहे।

अपने भयानक रूप के बावजूद, काली मां को अक्सर सभी हिंदू देवी-देवताओं में सबसे दयालु और सबसे प्यारी माना जाता है, क्योंकि उनके भक्तों द्वारा उन्हें पूरे ब्रह्मांड की मां के रूप में माना जाता है। अपने भयानक रूप के कारण, उन्हें प्रायः एक महान रक्षक के रूप में भी देखा जाता है। हिंदु आस्था के अनुसार, मां काली के एक हाथ में तलवार दिव्य ज्ञान का प्रतीक है और दूसरे हाथ में मानव सिर मानव अहंकार का प्रतीक है जिसे मोक्ष प्राप्त करने के लिए दिव्य ज्ञान द्वारा मारा जाना चाहिए। अन्य दो हाथ अभय और वरद (आशीर्वाद) के प्रतीक हैं। उनके पास मानव सिर वाली एक माला है, जिसे विभिन्न रूप से 108 (हिंदू धर्म में एक शुभ संख्या और मंत्रों की पुनरावृत्ति के लिए जप माला या माला पर गणनीय मोतियों की संख्या) या 51 में गिना जाता है, जो वर्णमाला या संस्कृत के अक्षरों की माला का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदुओं का मानना ​​​​है कि संस्कृत गतिशीलता की भाषा है, और इनमें से प्रत्येक अक्षर ऊर्जा के एक रूप, या काली के एक रूप का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, उन्हें आम तौर पर भाषा और सभी मंत्रों की जननी के रूप में देखा जाता है।

उन्हें प्रायः मानव भुजाओं से बनी स्कर्ट में नग्न चित्रित किया जाता है जो उनके माया के आवरण से परे होने का प्रतीक है क्योंकि वह शुद्ध (निर्गुण) होने के नाते चेतना-आनंद और प्रकृति से बहुत ऊपर हैं। उन्हें अत्यधिक काले रंग में दिखाया गया है क्योंकि वह अपनी सर्वोच्च अव्यक्त अवस्था में ब्रह्म हैं। इसलिए यह माना जाता है कि रंग, प्रकाश, अच्छा, बुरा की अवधारणाएं उन पर लागू नहीं होती हैं।

उप्र के सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश और सुप्रसिद्ध साहित्यकार चंद्रभाल सुकुमार इस प्रकार के पोस्टर को उपहास उड़ाने वाला मानते हुए श्रीदुर्गासप्तशती के तृतीय अध्याय के दो श्लोकों का उल्लेख करते हैं-

ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्।

पपौ पुनः पुनश्चै्व जहासारुणलोचना॥३४॥

अर्थात्, तब क्रोध में भरी हुई जगन्माता चंडिका बारंबार उत्तम मधु का पान करने और लाल आँखें करके हंसने लगीं।

देव्युवाच॥३७॥

गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।

मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः॥३८॥

अर्थात्, देवीने कहा- ॥३७॥

ओ मूढ़ ! मैं जबतक मधु पीती हूं, तब तक तू क्षण भर के लिये खूब गर्ज ले। मेरे हाथ से यहीं तेरी मृत्यु हो जानेपर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे॥३८॥

सुकुमार कहते हैं कि मां काली का यह तामसी रौद्र रूप भी राक्षसों का संहार करने के लिए जगत कल्याण की भावना से प्रकट हुआ था। इसलिए उसका उपहास उड़ाना सर्वथा अनुचित है।

विवादित पोस्टर में मां काली के हाथ में एलजीबीटीक्यू का प्राइड फ्लैग दिखाने का भी क्या औचित्य है? एल का मतलब लेस्बियन, जी का मतलब गे, बी से बायसेक्सुअल, टी यानी ट्रांसजेंडर और क्यू का मतलब क्वीयर होता है। लेस्बियन यानी कि एक ऐसी महिला या लड़की जो समान लिंग के प्रति सेक्सुअली आकर्षित हैं। उन्हें मर्दों में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। साफ सरल शब्दों में समझें तो जो महिला लेस्बियन होगी, वह दूसरी महिलाओं के प्रति सेक्सुअली आकर्षित होगी। जब एक आदमी दूसरे आदमी से ही सेक्सुअली आकर्षित हो तो उसे गे कहते हैं। जो ‘गे’ होते हैं उन्हें औरतों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती है। उनका रुझान मर्दों की ओर ही होता है। ‘गे’ शब्द का इस्तेमाल कई बार पूरे समलैंगिक समुदाय के लिए भी किया जाता है, जिसमें ‘लेस्बियन’, ‘गे’, ‘बायसेक्सुअल’ सभी आ जाते हैं। वह लोग बायसेक्सुअल हुए जो मर्द और औरत दोनों से ही सेक्सुअली आकर्षित हो और उनमें रुचि रखते हो। अर्थात्, बायसेक्सुअल मर्द और औरत दोनों ही हो सकते हैं।

ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जिनकी एक लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति उस लिंग से अलग होती है, जो उन्हें उनके जन्म के समय दी गई होती है। कुछ ट्रांसजेंडर लोग लिंग-परिवर्तन के लिए चिकित्सा सहायता लेने की इच्छा भी रखते हैं। क्वीयर दुविधा में फंसे लोगों की श्रेणी है। यह वो लोग होते हैं जो अपने बारे में तय नहीं कर पाते हैं कि उनकी शारीरिक चाहत पुरुष की ओर है या फिर स्त्री की ओर। यानी जो ‘क्वीयर’ होते हैं वो ना खुद को आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और ना ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बायसेक्सुअल’।

इसलिए, संपूर्ण ‘काली प्रकरण’ में महत्वपूर्ण है कि कौन किस भाव से मां काली के अवतार और तात्कालिक रूप को देख रहा, दिखा रहा। मां काली की कभी भी मदिरा और मांस का सेवन करने वाली देवी के रूप में पूजा नहीं की जाती है। हिंदू सदियों से देवी काली को बुराई के खिलाफ शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजते आ रहे हैं। फिल्म डायरेक्टर लीना मणिमेकलई द्वारा जारी पोस्टर और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के बयान मात्र उपहास उड़ाने वाले, उग्र और सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने वाले हैं। इससे देश के सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंचा है।

सोचने की बात यह भी है कि उमेश कोल्हे और कन्हैया लाल की हत्या में 7 दिन का फर्क था। अगर उमेश कोल्हे के हत्यारों को जल्द पकड़कर देशभर में एजेंसियों को अलर्ट कर दिया जाता कि एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर उन्मादी इस तरह की बर्बरता कर सकते हैं, तो संभवतः कन्हैया लाल की जान बच सकती थी।