यह मानसून नहीं है, पर्यावरण का बिगड़ा हुआ रूप है!

क्यों बिगड़ी मानसून की चाल

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यह मानसून नहीं है, पर्यावरण का बिगड़ा हुआ रूप है!

 

दिनेश सोलंकी की खास रिपोर्ट 

 

अफसोस होता है जब राष्ट्रीय स्तर के नामी चैनल, अखबार और सोशल मीडिया पर मुंबई में हो रही धुंआधार बारिश को मानसून का शीघ्र आगमन बताते हैं। ऐसा करके वह देश के लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

अभी 2 दिन पहले ही यह कहा गया था कि मानसून केरल जल्दी पहुंच गया है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि केरल से मुंबई तक पहुंचने में मानसून को 8 से 10 दिन लगते हैं लेकिन सिर्फ 24 से 48 घंटे में यह केरल से महाराष्ट्र में पहुंच जाएं, यह तो अपने आप में चौंकाने वाली बात और समझने वाली बात होती है। लेकिन इस पर देश का मीडिया सही ढंग से अनुभव लेकर या स्वयं चिंतन करके नहीं बता रहा है, वह एक भेड़ चाल की तरह लोगों को दिग्भ्रमित कर रहा है कि मानसून जल्दी आ गया है।

 

सोचने वाली बात यह है कि पिछले 16 साल में मानसून जब कभी भी जल्दी आया है तो उसकी अवधि तीन या चार दिन ही रही है जबकि विलंब से आने की अवधि 8 से 10 दिन तक रही है। तो फिर अचानक ऐसा क्यों हो रहा है जो मानसून ने दौड़ लगा दी है, ये सब हमें अब गंभीर होकर समझने की जरूरत है कि मानसून की चाल बिगड़ गई है।

 

मैंने मानसून को लेकर कोई पीएचडी नहीं की है ना मैंने उसकी कोई पढ़ाई की है, लेकिन पिछले 14 सालों से अपनी रुचि पर्यावरण और मानसून की ताजा गतिविधियों पर पैनी नजर जरूर रखी है। गर्मी, ठंड, बारिश इन सब को लेकर सेटेलाइट के माध्यम से ही अपने निष्कर्ष निकालता आ रहा हूं। इसी आधार पर पिछले कुछ सालों से मैं लगातार लिख रहा हूं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का संतुलन प्रभावित हो रहा है जिससे पर्यावरण बिगड़ रहा है। इसके नतीजे सिर्फ भारत ही नहीं, कई देशों को भुगतने पड़ रहे हैं। जिसके कारण आंधी, तूफान, भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी फटना, तेज बारिश, बादल फटना, अत्यधिक तापमान, अत्यधिक ठंड जैसे आपदा हादसे प्रकृति की चाल के विपरीत होते जा रहे हैं।

 

सन 2025 में जो हो रहा है वह 2026 में और बढ़ेगा। और अब यह कम नहीं होना है। बस उसे रोकने के लिए मानवी प्रयास करते रहने होंगे। अब इस बात को अच्छी तरह से जान लें कि मौसम की जो परंपरा भारत में चलती आ रही थी वह अब डगमगा गई है, गुमराह हो गई है, बेकाबू हो गई है। आज की तेज, अंधाधुंद तूफानी बारिश विधिवत मानसून का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसे मानसून मानने पर विवश हमें होना पड़ रहा है। हवाओं के गुमराह होते असर से चक्रवात की स्थिति बन रही है। 5 दिन पूर्व बंगाल की खाड़ी से बादलों के बहाव से पश्चिमी और दक्षिणी हवाओं का टकराव हुआ जिसके फलस्वरूप महाराष्ट्र के पास समुद्रीय हिस्से में चक्रवात बना। लेकिन वह पूर्ण आकार में नहीं आया और दिशा भी तय नहीं कर पाया। उल्टे वह महाराष्ट्र में जाकर तूफान मचा गया। आज सुबह यही चक्रवात तीन हिस्सों में बंट गया जिससे गुजरात और मध्य प्रदेश में भी असर शुरू हुआ है।

 

अब हम नजरें पूर्वी दिशा में फेंके जहां बंगाल की खाड़ी में ही नए चक्रवात का उदय हुआ है। अब संभावना यह है कि बादलों का दबाव पश्चिमी दिशा की ओर फैलेगा, याने मध्यप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आगे भी बारिश की चपेट में आयेंगे।

 

कहने का मतलब है कि जो मानसून की चाल 1 से 5 जून के बीच होनी थी वो भारत के पश्चिम और बाद में पूर्व में बने चक्रवाती बादलों से बिगड़ गई है। गौरतलब है कि मानसून 1 जून से शुरू होकर उत्तर भारत तक जुलाई में पहुंचता रहा है, लेकिन हालात बिगड़ने से यह दक्षिण पूर्व से शुरू होकर 24 से 48 घंटों में ही मध्य भारत तक पहुंच गया है। इतना ही नहीं अब पश्चिमी विक्षोभ के चलते अगले 24 से 36 घंटों में उत्तर भारत में भी बारिश होगी। याने ये सब बिखराव ग्लोबल वार्मिंग की देन है जिससे अब मौसम पूर्ववत स्थिति नहीं आ पाएंगे। हर साल प्रकृति का रौद्र रूप बढ़ता दिखाई देगा, इसके लिए अब रोकथाम के प्रयास भी निरर्थक रहेंगे, फिर भी प्रयास करना तो जरूरी होगा, यह अब नियति बन जाएगा।