यह राजा-महाराज में गढ़ों पर कब्जे की जंग….

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राजा दिग्विजय सिंह और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार खुलकर आमने-सामने हैं। सिंधिया पर जो आरोप भाजपा के कुछ नेता लगाते थे, अब उस दुखती रग पर दिग्विजय ने हाथ रख दिया। दरअसल, भाजपा में जाने के बाद सिंधिया सीधे दिग्विजय सिंह के गृह नगर राघौगढ़ जा धमके और उनके एक खास सिपहसलार को भाजपा ज्वाइन करा दी। तिलमिलाए दिग्विजय ने सिंधिया घराने के गद्दारी के मुद्दे को हवा दे दी। जवाब में दोनों की फौजे भी मोर्चे पर डट गर्इं। सिंधिया कुछ खास नहीं बोले लेकिन उनके खास योद्धा पंकज चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिंह के पिता के एक पत्र का जिक्र कर उन्हें गद्दार कह दिया। इसका तीखा जवाब कांग्रेस के केके मिश्रा ने दिया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या में उपयोग में लाई गई पिस्टल सिंधिया घराने ने उपलब्ध कराई थी और महारानी लक्ष्मीबाई किसकी वजह से शहीद हुर्इं, कोई भी बता सकता है। इससे लड़ाई के स्तर का पता चलता है। दरअसल, यह अपने गढ़ बचाने और एक दूसरे के गढ़ों पर कब्जे की जंग है। सिंधिया पर कमलनाथ और दिग्विजय के गढ़ भेदने की जवाबदारी है तो दिग्विजय ग्वालियर-चंबल में सिंधिया को कमजोर करना चाहते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है।

आदिवासी नेताओं की उम्मीदों को लगे पंख….

भाजपा नेतृत्व और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जनजातीय नायकों के प्रति प्रेम ने पार्टी के आदिवासी नेताओं की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। वे सोचने लगे हैं कि अब उन्हें भी प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री जैसे ओहदे मिल सकेंगे। यह उनके सिर्फ खयाली पुलाव हैं या ये सपने पूरे भी होंगे, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। भाजपा में फग्गन सिंह कुलस्ते पार्टी का आदिवासी चेहरा हैं। वे हमेशा प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के लिए दावा करते रहे हैं, लेकिन पार्टी उनके नाम को लेकर कभी गंभीर नहीं रही। विधानसभा के पिछले चुनाव में आदिवासी सीटों में कांग्रेस के सामने भाजपा काफी पिछड़ गई थी। इसकी भरपाई के लिए ही प्रदेश में जनजातीय नायकों के महिमा मंडन की मुहिम छिड़ी है। दिखाया जा रहा है कि जनजातीय नायकों और आदिवासी वर्ग का भाजपा जैसा हितैषी कोई नहीं। ऐसे में भाजपा के आदिवासी नेताओं की उम्मीदों का कुलांचे मारना स्वाभाविक है। भाजपा के आदिवासी नेता बैठक कर यह मांग उठाने वाले हैं कि आदिवासी नेताओं को पार्टी और सरकार में शीर्ष पद दिए जाएं। यदि ऐसा हुआ तो शिवराज सिंह चौहान एवं वीडी शर्मा जैसे नेताओं के सामने धर्मसंकट की स्थिति होगी और दांव उल्टा भी पड़ सकता है।

‘कमिश्नर प्रणाली’ मतलब ‘फुल फार्म’ में शिवराज….

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आतिथ्य में संपन्न जनजातीय गौरव दिवस के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फुल फार्म में और निश्चिंत नजर आने लगे हैं। उनके रुख से लगने लगा है कि उन पर लटक रही खतरे की तलवार का संकट टल गया है। पहले भाजपा विधायकों को खरी-खरी, इसके बाद अफसरों को फटकार और अब भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली की अधिसूचना जारी करने को इसके प्रमाण के तौर पर देखा जा रहा है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली की कसरत पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समय से ही चल रही है। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी इसे लागू करने की कोशिश की। खुद शिवराज सिंह चौहान ने इसे लेकर कई बार घोषणा की लेकिन आईएएस लॉबी के दबाव के चलते यह फाइलों में दम तोड़ती रही। जनजातीय गौरव दिवस के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने इसकी घोषणा ही नहीं की, इसे लागू करके दिखा भी दिया। स्पष्ट है कि उन्होंने आईएएस लॉबी की परवाह नहीं की जबकि इस लॉबी ने अपने ढंग से नाराजगी के संकेत दे दिए थे। दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन शिवराज ने करके दिखा दिया। साफ है कि शिवराज दबाव मुक्त होकर काम करने की आदत डाल रहे हैं। यह उनको मिले अभयदान व कार्यशैली में बदलाव का संकेत भी है।

रह-रह कर उभर आता है इन नेताओं का दर्द….

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ऐसे नेताओं में शुमार हो गए हैं जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर कमलनाथ जैसे नेताओं को दर्द दिया ही, भाजपा में भी उनके कारण कई नेता दर्द से कराह रहे हैं। सिंधिया और उनके घराने से दो-दो हाथ करते रहे जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा एवं कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं का दर्द रह-रह कर उभर आता है। गुना में भाजपा के प्रशिक्षण वर्ग में पवैया द्वारा सिंधिया समर्थकों को दी गई नसीहत, इसी की अभिव्यक्ति है। इन नेताओं को बताना पड़ रहा है कि यह भाजपा है, यहां इलाकेदारी, वंशवाद एवं व्यक्ति पूजा की कोई जगह नहीं है। समर्थकों को सिंधिया की तरह ही भाजपा के अन्य नेताओं का भी सम्मान करने की आदत डाल लेना चाहिए। पवैया की नसीहत का असर सिंधिया समर्थकों पर पड़ता है या नहीं, यह अलग बात है लेकिन फिलहाल सिंधिया लगातार ताकतवर हो रहे हैं और भाजपा में उनके विरोधी कमजोर। बता दें, पवैया और नरोत्तम मिश्रा लोकसभा चुनाव में सिंधिया का मुकाबला कर चुके हैं। कैलाश विजयवर्गीय क्रिकेट ऐसासिएशन के चुनाव में सिंधिया को टक्कर देते रहे हैं। प्रभात झा सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए चर्चित रहे हैं। अब सिंधिया भाजपा में ही इन सबसे ताकतवर हैं, कांटा तो खटकेगा ही।

‘र्स्माट सिटी प्रोजेक्ट’ में ‘स्मार्ट’ जैसा कुछ नहीं….

स्मार्ट सिटी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट पर अब संकट के बादल हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव के कथनों से तो यही लगता है। पहला बयान भार्गव का आया। उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में स्मार्ट सिटी में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की बात कही। साथ ही पीड़ा जाहिर की कि मैं मंत्री हूं, मेरी मर्यादाएं हैं, इसलिए ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता। इसके बाद मुख्यमंत्री चौहान ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की समीक्षा की। उनके सामने जो प्रजेंटेंशन हुआ, उसे देखकर वे भौचक्के रहे गए। काम की धीमी गति, भ्रष्टाचार की आशंका, सीसी टीवी कैमरे तक बंद होने की बात कहकर उन्होंने अफसरों को अच्छी फटकार लगाई। उन्हें कहना पड़ा कि उनके सामने झूठ न परोसा जाए, सच जानने के लिए मैं 20 घंटे लगातार बैठने के लिए तैयार हूं। इन दो टिप्पणियों से मोदी सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट की दुर्दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि सब राम भरोसे चल रहा है। इससे पहले बदहाल सड़कों की हालत सभी देख चुके हैं। विडंबना यह है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत अब तक स्मार्ट कुछ भी नहीं दिख रहा।