संघ संबंधी फैसले पर बस यही सवाल…सही है तो फिर क्यों लगाए दस साल…!

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संघ संबंधी फैसले पर बस यही सवाल…सही है तो फिर क्यों लगाए दस साल…!

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। प्रतिबंध हटाने के फैसले पर जैसा अपेक्षित था, सही-गलत पर सवाल उठने ही थे। पर बात भी सही है कि यदि यह फैसला सही है तो फिर पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार के दस साल में यह फैसला प्राथमिकता से क्यों नहीं लिया गया? आखिर गठबंधन पर आश्रित सरकार में यह फैसला लिया जा सकता है तो दस साल पहले भाजपा के बहुमत वाली सरकार में और ज्यादा दबंगी से किया जा सकता था। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते तो यह फैसला दस साल पहले ही हो जाता। और दस साल पहले ही सरकारी कर्मचारी संघ की शाखाओं में निर्विवाद रूप से शामिल होने लगते। हालांकि इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार का तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फैसला चर्चा में आ गया है, जिसमें वर्ष 2006 में ही संघ की शाखाओं में जाने की अनुमति सरकारी कर्मचारियों को मिल गई थी। यानि संघ के मामले में शिवराज की सोच कई कदम आगे थी। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने 40 साल बाद ही केंद्रीय प्रतिबंध से कर्मचारियों को मुक्ति दिला दी थी। केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकार द्वारा जारी आदेशों में संशोधन किया है, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों में भाग लेने पर रोक लगाई गई थी। इससे सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया है। मोदी सरकार के इस फैसले का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी स्वागत किया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस फैसले का मध्य प्रदेश सरकार के पंचायत ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने स्वागत किया है। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय यानि केंद्र सरकार यानि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के इस फैसले पर एक सच्ची और कड़वी प्रतिक्रिया दी है। जो कांग्रेस सरकार को प्रतिबंध लगाने पर दोषी ठहरा रही है, तो मोदी सरकार को भी आइना दिखा रही है। मध्य प्रदेश सरकार के पंचायत ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल की प्रतिक्रिया सही भी है और स्वागत योग्य भी है। आखिर सच कहने का साहस सब में नहीं होता। पर प्रहलाद पटेल जैसे नेता ही सही बात कहने का साहस रखते हैं। उन्होंने सबसे पहले गृह मंत्रालय के इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यह पक्षपातपूर्ण आदेश था। आरएसएस एक सामाजिक संगठन है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि सामाजिक संगठनों में कर्मचारियों की भागीदारी पर प्रतिबंध पहले ही खत्म कर देना चाहिए था। इसे देर से हटाया गया, लेकिन मैं इसका स्वागत करता हूं। यानि कि इशारा कांग्रेस की तरफ था, तो अपनी सरकार की तरफ भी था। प्रतिबंध को देर से हटाने में दस साल तो पूर्ण भाजपा बहुमत की मोदी सरकार ने भी लगा दिए। हटाया भी तो मोदी-3 कार्यकाल में, जब सत्ता के बंधन में गांठ लगी हुई है। और जब सरसंघचालक मोहन भागवत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में अहंकारी न होने की सीख दे चुके हैं। तो मणिपुर हिंसा में भी मोदी सरकार पर तीखी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। तो क्या मोदी सरकार भी संघ के धैर्य को कसौटी पर कस रही थी। और इसके बाद ही प्रतिबंध हटाने का फैसला किया गया।

इस संबंध में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला अनुचित है, इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने एक्स पर लिखा कि सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस शाखाओं में जाने पर लगे 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटाने का केंद्र सरकार का फैसला राष्ट्रीय हित से परे है। उन्होंने आगे लिखा कि ये संघ को खुश करने के लिए एक राजनीति से प्रेरित फैसला है, ताकि लोकसभा चुनाव के बाद सरकारी नीतियों और उनके अहंकारी रवैये आदि को लेकर दोनों के बीच जो कड़वाहट बढ़ गई है, उसे दूर किया जा सके। सरकारी कर्मचारियों के लिए संविधान और कानून के दायरे में रहकर निष्पक्ष रूप से जनहित और जनकल्याण के लिए काम करना जरूरी है, जबकि कई बार प्रतिबंधित हो चुके आरएसएस की गतिविधियां न केवल राजनीतिक रही हैं, बल्कि एक पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं। ऐसे में यह फैसला अनुचित है, इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। यह सवाल मायावती का नहीं है बल्कि पूरे विपक्ष का ही है। क्योंकि संघ और विपक्ष का छत्तीस का आंकड़ा जगत विदित है।

पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जब फैसला कर ही लिया, तब फिर इसमें चौंकाने वाली कोई बात बचती ही नहीं है। इसमें अगर वाहवाही लूटने का अवसर अगर किसी को मिला है, तो वह केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को। तो प्रतिबंध हटाने के बाद भी यदि कोई बैकफुट पर है तो वह मोदी सरकार है। पर संतोष की बात यही है कि देर से ही सही इस दुरुस्त फैसले ने मोदी सरकार के संघ के प्रति प्रेम को सार्वजनिक करने की सफल कोशिश की है। सही-गलत पर सवाल उठते रहेंगे, पर फैसले का स्वागत करने वाले हैं और उनके दिमाग से यह सवाल निकलने का नाम नहीं ले रहा है..कि दस साल पहले यह फैसला आखिर मोदी सरकार ने क्यों नहीं लिया…।