मध्यप्रदेश के वनवासी राम की धरा का यह जलियांवाला बाग…

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मध्यप्रदेश के वनवासी राम की धरा का यह जलियांवाला बाग…

अक्सर जलियाँवाला बाग की बात करें तो सभी को पंजाब याद आता है।जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अंग्रेज अफसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दीं, जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं, जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1500 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।
खैर यह तो बात हुई पंजाब के जलियाँवाला बाग की। अब हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के जलियाँवाला बाग की। सतना जिले के पिण्डरा में शहीदों का एक स्मारक सड़क किनारे स्थित है। इस पर उल्लिखित है कि मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग शहीद ग्राम पिण्डरा का संक्षिप्त इतिहास। इसमें आगे लिखा है कि  स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाला यह ग्राम पिण्डरा भारत की स्वतंत्रता के लिए सदैव अग्रणी रहा है। 1857 में भारत की स्वतंत्रता के महानायक कुंवर अमर बहादुर सिंह, ठाकुर रणमत सिंह के नेतृत्व में कैमूर की पहाड़ियों के तले विदेशी सत्ता के खिलाफ छापामार युद्ध लड़ा। उस स्वतंत्रता समर का शहीद स्थल केंद्र ग्राम पिण्डरा ही था। जिसमें इस ग्राम के क्रांतिकारी व ग्रामवासी 109 बहादुर शहीद हुए थे। ग्राम को लूटा गया जलाया गया फिर भी ग्रामवासी डटे रहे। इस छापामार युद्ध की प्रशंसा भारत में विद्रोह नामक अपने एक लेख 1 अक्टूबर के न्यूयार्क टाइम्स 1858 में फेड्रिक्स एंगेल्स ने भी की है। इसके बाद भी स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाले इस ग्राम के निवासी 1920 से 1949 तक जब तक की भारत पूर्ण रूपेण स्वतंत्र नहीं हो गया, तब तक अपने प्राणों की बाजी लगाकर काम करते रहे।
इस ग्राम के निवासियों ने स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करते हुए यही संदेश दिया था कि देश की स्वाधीनता धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक जनभागीदारी के बिना संभव ही नहीं है, इसलिए एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर संपूर्ण देश को लामबंद किया था। जिससे कि भावी पीढ़ी प्रेरणा लेकर भारत की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहे।
स्मारक के चारों ओर संदेश के साथ ही शहीदों के नाम उल्लिखित हैं, जिनमएं ब्राह्मण, ठाकुर, पटेल, गौंड, कोल आदि शामिल हैं। वनवासी राम की यह भूमि शायद यही संदेश दे रही है कि भारत की रक्षा के लिए मध्यप्रदेश के निवासियों का योगदान अतुलनीय है। आज भी जरूरत है कि मध्यप्रदेश में वनवासी राम की धरा का यह जलियांवाला बाग हमारे दिल में जिंदा रहे… और शहीदों को नमन करते हुए हम देश की रक्षा के लिए सर्वस्व समर्पण करने को तत्पर रहें।