जनजातियों और महिलाओं के प्रति ममत्व की मिसाल बनेगी मुर्मू की यह यात्रा…

391
"मुर्मू" के राष्ट्र की "प्रथम नागरिक" बनने के मायने ...

 जनजातियों और महिलाओं के प्रति ममत्व की मिसाल बनेगी मुर्मू की यह यात्रा…

भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जनजातीय समाज का गौरव बढ़ाने 15 नवंबर को मध्यप्रदेश आ रही हैं। वह शहडोल में आदिवासियों के बीच जनजातीय गौरव दिवस की गरिमा बढ़ाएंगीं और साक्षी बनेंगीं। यह दूसरा जनजातीय गौरव दिवस है। पहले साल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत थी। तो दूसरे साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कार्यक्रम में शामिल होकर इस आयोजन का कद लगातार बढ़ा रही हैं। दिनों के हिसाब से देखा जाए तो 122 दिन पहले 15 जुलाई को मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव में अपने लिए समर्थन जुटाने का औपचारिक निर्वाह करने भोपाल आईं थीं। अब वह पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के बतौर पहली बार मध्यप्रदेश पहुंच रही हैं। पहले भोपाल आईं थीं,अब सीधे आदिवासियों के बीच शहडोल में राज्य स्तरीय आयोजन में शामिल होंगीं। फिर भोपाल पहुंचकर राजभवन में रात्रि विश्राम करेंगीं। 16 नवंबर को भोपाल में महिला स्वसहायता समूह के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद दिल्ली रवाना हो जाएंगीं। मध्यप्रदेश ने उस समय भी मुर्मू का जी खोलकर स्वागत किया था, तब खुद मुर्मू ने मध्यप्रदेश में उनके गर्मजोशी से हुए स्वागत की दिल खोलकर तारीफ की थी। उनके दिल में मध्यप्रदेश की विशेष जगह है और इसी वजह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अल्प आग्रह पर मुहर लगाने में उन्होंने बिल्कुल भी देर नहीं की। और तब भी घर को गुलशन सा सजा मुर्मू का दिल से स्वागत हुआ ही था, अब तो उससे भी बढ़कर स्वागत होना तय है। क्योंकि देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन मुर्मू पहली बार और वह भी जनजातीय गौरव दिवस का गौरव बढ़ाने मध्यप्रदेश आ रहीं हैं। शहडोल में उन्हें प्रदेश के जनजातीय रंग बिखरे दिखेंगे, जो उनकी स्मृतियों को ताजा कर स्मृति पटल पर स्थायी तौर पर अंकित हो जाएंगे। वहीं राजभवन में आदिवासी समुदाय से ही राज्यपाल मंगुभाई पटेल उनकी अगुवाई करेंगे और पूरा राजभवन सज-धजकर राष्ट्रपति का स्वागत करेगा। 16 नवंबर को महिला स्वसहायता समूह के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद राष्ट्रपति मुर्मू वापस दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगीं। जनजातियों और महिलाओं के आयोजन को इससे ज्यादा गौरव शायद ही हासिल हो पाता, यदि मुर्मू का मन इनके प्रति ममत्व से न भरा होता। जनजातियों और महिलाओं के प्रति ममत्व की मिसाल बनेगी मुर्मू की राष्ट्रपति के बतौर मध्यप्रदेश की यह यात्रा …जो इतने अल्प बुलावे पर मंजूर हो गई। दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिरसा मुंडा जयंती के मौके पर मध्यप्रदेश में जनजातीय गौरव दिवस के आयोजन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित किया था। तत्काल ही राष्ट्रपति भवन से स्वीकृति मिल गई। तब शिवराज सिंह चौहान ने भी रविवार को सभी कार्यक्रम निरस्त कर शहडोल जाकर व्यवस्थाओं का जायजा लिया था।
राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर समर्थन मांगने 15 जुलाई को आईं द्रौपदी मुर्मू भोपाल में किए गए स्वागत से अभिभूत हो गईं थीं। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति के रूप में उनसे देश के जनजातीय समाज की, महिलाओं की, पार्टी की और देश की ढेरों अपेक्षाएं हैं, जिन्हें पूरा करने का प्रयास करूंगी। एक राष्ट्रपति के तौर पर मैं आप सभी के साथ मिलकर संविधान के दायरे में काम करते हुए देश को आगे बढ़ाने के लिए काम करूंगी। निश्चित तौर पर मध्यप्रदेश के जनजातीय समाज और महिलाओं की अपेक्षाओं पर मौका मिलते ही राष्ट्रपति मुर्मू खरी साबित हुईं हैं। शहडोल में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में प्रदेश के 11 जिलों से एक लाख से अधिक आदिवासी परिवारों को बुलाया गया है। तो 16 नवंबर को भोपाल में महिला स्वसहायता समूह के कार्यक्रम में पूरे प्रदेश की महिलाएं शामिल होंगीं। तो जनजातीय नेता भी शहडोल में राष्ट्रपति के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में रहेंगे।राज्यपाल मंगू भाई पटेल, सीएम शिवराज सिंह चौहान, खजुराहो सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के अलावा केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केन्द्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मौजूद रहेंगे। इसके अलावा प्रदेश  सरकार की तरफ से जनजातीय कार्य मंत्री मीना सिंह मांडवे, वन मंत्री विजय शाह, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहू लाल सिंह, पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल और शहडोल की सांसद हिमाद्री सिंह मौजूद रहेंगी। मुर्मू के स्वागत में कहीं कोई कमी न रह पाएं, इसको लेकर शीर्ष नेतृत्व सतर्क है।
आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की  जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत मध्यप्रदेश में पिछले वर्ष से ही हुई है। बिरसा का जीवन संघर्षों से भरा था। उस दौर में यानि 15 नवंबर 1875 ईसवी में जन्में बिरसा द्वारा अंग्रेजों की खिलाफत कर उनके दांत खट्टे करना कोई मामूली कार्य नहीं था। तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन भी संघर्ष के पथ पर चलते हुए मंजिल तक पहुंचने की प्रेरित करने वाली कहानी है। बस यही कामना कि राष्ट्रपति मुर्मू के दिल में मध्यप्रदेश के प्रति यही ममत्व बना रहे। और देश के जनजातीय समाज की, महिलाओं की और देश की ढेरों अपेक्षाएं पूरी होती रहें।