राज- काज :असरदारों के लिए बेअसर है सरकार का यह कानून….!

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राज- काज :असरदारों के लिए बेअसर है सरकार का यह कानून….!

– प्रदेश सरकार के कुछ नियम-कानून ऐसे हैं, जो कुछ अंतराल के बाद जारी होते रहते हैं। इनमें से एक है चार पहिया वाहनों के ऊपर लगे हूटर हटाने का अभियान। यह आदेश हाल ही में जारी हुआ है। पुलिस सड़कों, चौराहों में खड़े होकर हूटर हटाने का अभियान भी चलाती दिख जाती है। आदेश जारी होने के बाद सरकार के एक मंत्री का हूटर निकालते फोटो भी जारी हुआ था। हालांकि सभी मंत्री ऐसे नहीं हैं। इस नियम के अमल की हकीकत देखना है तो ऐसी जगह पहुंच जाइए, जहां मंत्रियों, विधायकों के साथ अन्य नेताओं का जमावड़ा हो। तत्काल पता चल जाएगा कि यह कानून सिर्फ आम लोगों के लिए है, असरदारों के लिए नहीं। इस समय विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। यहां पुलिस का बड़ा अमला तैनात रहता है। यहां हूटर लगे वाहनों की लंबी कतार देखने को मिल जाती है। सड़कों में भी गुजरिए तो कई वाहन हूटर की तेज आवाज करते निकलते दिखाई पड़ जाते हैं। यह वाहन असरदारों के ही होते हैं। सवाल यह है कि जब पुलिस में सभी वाहनों से हूटर हटवाने का दम नहीं है, तो यह आदेश बार-बार जारी कर अभियान चलाया ही क्यों जाता है? ठीक ऐसा ही हश्र बाइक चालकों के लिए हेलमेट और कार चालकों के लिए पट्टा लगाने के खिलाफ अभियान का होता है। पुलिस चेहरा और रुतबा देख कर कार्रवाई करती हैे।

मर्यादाएं लांघ रहा भूपेंद्र-हेमंत के बीच विवाद….

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– पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक हैं। आमतौर पर उन्हें शालीन और गंभीर माना जाता है। विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे अपेक्षाकृत नए हैं और राजनीतिक तौर पर उतने परिपक्व भी नहीं। इन दाेनों नेताओं की बच चल रहा विवाद मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ रहा है। विधानसभा के अंदर इन दाेनों के बीच जैसा वाद-विवाद हुआ, उससे सदन की मर्यादा तार-तार थी। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को इस पर व्यवस्था देना पड़ी और सदन की गरिमामयी परंपरा की याद दिलाना पड़ी। व्यवस्था देते समय तोमर भावुक थे। उन्होंने अपेक्षा की कि भविष्य में इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप विधानसभा के अंदर नहीं होंगे। तोमर ने अमर्यादित बहस कार्रवाई स्ो बाहर भी निकाल दी। इसके बाद भी भूपेंद्र और हेमंत के बीच विवाद थमा नहीं है। अब हेमंत ने भूपेंद्र को पागल कह कर उन्हें पागलखाने तक भेजने की बात कह दी है। पूरे मामले को देखकर लगता है कि हेमंत के सिर पर सरकार के किसी ताकतवर का हाथ है। तभी वे कुछ भी बोल रहे हैं लेकिन भूपेंद्र का साथ देने कोई नेता सामने नहीं आ रहा। ठीक उसी तरह जैसे प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल को पार्टी और सरकार में किसी का साथ नहीं मिला। उन्होंनेआवेदन देने वालों को भिखारियों की फौज कह दिया था। भूपेंद्र जैसे गंभीर नेता हेमंत को उनकी भाषा में ही जवाब क्यों दे रहे हैं, यह समझ से परे है।

मोहन-ज्योतिरादित्य के बीच बन गई अच्छी कैमिस्ट्री….

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– डॉ मोहन यादव जब से प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब से ही उनके और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरािदत्य सिंधिया के बीच कैमिस्ट्री अच्छी देखने को मिल रही है। इसकी वजह खुद सिंधिया भी हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हाेने के बाद उन्होंने पार्टी नेतृत्व का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की है। इसीलिए पार्टी आलाकमान उनके ग्वालियर स्थित महल जाकर उनकी खातिरदारी स्वीकार कर चुका है। संभवत: इसे ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री डॉ यादव भी अन्य नेताओं की तुलना में सिंधिया को ज्यादा तरजीह देते दिखते हैं। माधव नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व का दर्जा देने के मामले को ही ले लीजिए। सिंधिया के प्रयास से इसे टाइगर रिजर्व देने का फैसला दिसंबर 2024 में ही ले लिया गया था लेकिन इसकी घोषणा मार्च में हुई। 10 मार्च को ज्योतिरादित्य के पिता स्व माधव राव सिंधिया की जयंती होती है। इसकी वजह से सिंधिया परिवार का माधव राष्ट्रीय उद्यान से विशेष लगाव है। ज्योतिरादित्य की कोशिश होती है कि इस उद्यान से जुड़े सभी प्रमुख कार्य 10 मार्च को ही हों। इस मसले पर भी ऐसा ही हुआ। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने माधव राष्ट्रीय उद्यान को टाईगर रिजर्व का शुभारंभ 10 मार्च को ही किया। इससे सिंधिया अभिभूत थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने इसे लेकर ट्वीट किया। पहले भी कई देखने को मिला की डॉ यादव और महाराज के बीच चैन की बंशी बज रही है।

 ‘बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह’….

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– भाजपा के दिग्गज नेता गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव दीपू ‘कभी खुशी, कभी गम’ के दौर से गुजर रहे हैं। खुशी इस बात की कि भाजपा के वरिष्ठ नेता दीपू की काबलियत के मुरीद हैं। अवसर आने पर इसके लिए उनकी जम कर तारीफ की जाती है। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव गोपाल के गृह नगर गढ़ाकोटा रहस मेला कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने भी कहा कि ‘बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह’। उन्होंने कहा कि दीपू भाई बढ़िया भाषण देते हैं। बढ़िया बात और काम करते हैं। इतना ही नहीं, उनके पिता और हम सबसे वरिष्ठ गोपाल भार्गव का पूरा चुनाव वे ही देखते हैं। भार्गव जी एक भी दिन के लिए प्रचार के लिए नहीं निकलते, तब भी रिकार्ड वोटों के अंतर से जीतते हैं। इससे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अभिषेक की चाहे जब तारीफ करते थे। इस लिहाजा से उन्हें खुश होना चाहिए लेकिन गम की बात यह है कि दीपू को उनकी योग्यता के अनुसार आज तक कोई पद नहीं मिला। इससे लगता है कि उनके खाते में सिर्फ सिफारिश और तारीफ लिखी है। दीपू का नाम कई बार युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष से लेकर विधानसभा और लोकसभा टिकट के लिए चल चुका है, लेकिन मिला कुछ नहीं। दीपू को पिता गोपाल भार्गव की पार्टी के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता का लाभ भी नहीं मिला।

 

 अब चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते कांग्रेस प्रभारी….

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– कांग्रेस नेताओं के अंदर चलने वाला शह-मात का खेल प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा की एक वजह है। कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी के आने के बाद भी यह खेल थमा नहीं है। इससे पहले जब भंवर जितेंद्र सिंह प्रदेश प्रभारी थे, तब से प्रदेश में जिला एवं ब्लाक कांग्रेस अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। खबर है कि चयन प्रक्रिया पूरी कर सूची भी कांग्रेस नेतृत्व के पास भेज दी गई थी। सूची को केंद्र से हरी झंडी मिल नहीं पाई और जितेंद्र के स्थान पर हरीश चौधरी प्रभारी बन कर आ गए। लिहाजा, पार्टी के कुछ नेता नए प्रभारी के जरिए अपनी चाहत पूरी करने में जुट गए। इसकी भनक जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को लगी, उन्होंने आनन- फानन भंवर जितेंद्र की सिफारिश लगवा कर केंद्रीय नेतृत्व से जिलाध्यक्षों की सूची स्वीकृत करा ली। हरीश चौधरी अब चाह कर भी उसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। हालांकि वे चाहेंगे तो अपनी पसंद के कुछ नाम जोड़-घटा सकते हैं। खबर है कि ब्लाक अध्यक्षों को लेकर सहमति बन गई है कि यह सूची चौधरी की स्वीकृति के बाद ही आगे गढ़ेगी। चौधरी जब पहली बार प्रदेश के दौरे पर आए थे तो कहा था कि हम शून्य से शुरुआत करेंगे। शायद उन्हें अब अपने इस कथन को ही चरितार्थ करना पड़ेगा। पार्टी नेताओं के मतभेदों को सलझा कर ही आगे बढ़ना होगा। यह काम आसान नहीं है।

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