भारत और मध्य एशिया के पाँचों राष्ट्रों के संबंध सदियों पुराने हैं। यह ठीक है कि इन पांचों राष्ट्रों में से आज किसी भी देश की सीमा भारत से नहीं लगती है लेकिन इतिहास की गहराइयों में आप उतरें तो आपको पता चलेगा कि इन राष्ट्रों के साथ रूस और चीन के जितने गहरे संबंध रहे हैं, उनसे भी ज्यादा गहरे भारत के संबंध रहे हैं। पिछले दो-ढाई हजार वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है कि भारत के लोगों ने इन क्षेत्रों में राज किया है और इन क्षेत्रों के लोगों ने भारत में राज किया है।
अब इन पांचों राष्ट्रों— तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किरगिजिस्तान- के साथ भारत के संबंधों को नए सिरे से सुदृढ़ बनाने की पहल भारत सरकार ने की है। अफगानिस्तान की घटनाओं के बाद पहले इन राष्ट्रों के सुरक्षा सलाहकारों और बाद में विदेश मंत्रियों की बैठकें नई दिल्ली में हुईं।
यदि कोरोना महामारी का प्रकोप नहीं होता तो इन पांचों राष्ट्रों के राष्ट्रपति हमारे गणतंत्र दिवस पर स्वयं भारत आते लेकिन 27 जनवरी को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ परोक्ष भेंट और वार्ता कर ली। इन मध्य एशियाई नेताओं के साथ भारतीय नेताओं की भेंट ‘शांघाई सहयोग संगठन’ में होती रहती है लेकिन भारत में आयोजित इस शीर्ष सम्मेलन का विशेष महत्व है।
इसका विशेष महत्व इसलिए भी है कि पिछले तीन-चाह माह में जब भी भारत ने इन देशों का सम्मेलन बुलाने की पहल की, पाकिस्तान और चीन का रवैया निषेधात्मक रहा। या तो इन दोनों देशों ने भारत का निमंत्रण किसी न किसी बहाने ठुकरा दिया या लगभग उसी तरह का आयोजन अपने-अपने देशों में भारत के पहले कर लिया।
मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रपति भारत आएंगे, इस खबर ने चीन की छक्के छुड़ा दिए और उसने भारत से दो दिन पहले भारत की तरह एक परोक्ष-सम्मेलन कर लिया। पाकिस्तान ने भी पहले ऐसा ही किया था। दोनों राष्ट्र यह मानकर चल रहे हैं कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। लेकिन वह यह क्यों भूल रहे हैं कि अफगानिस्तान की आम जनता में भारत के लिए जितना सम्मान है, किसी भी राष्ट्र के लिए नहीं है।
भारत ने पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान में तीन बिलियन डाॅलर लगाकर इतने निर्माण कार्य किए हैं, जितने किसी भी राष्ट्र ने नहीं किए हैं। इतना ही नहीं, 200 किमी की जरंज-दिलाराम सड़क बनाकर भारत ने भूवेष्टित अफगानिस्तान को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कर दिया है। अब समुद्री मार्ग के लिए पाकिस्तान पर उसकी निर्भरता का विकल्प खड़ा हो गया है। अब उसे फारस की खाड़ी तक आवागमन और परिवहन की सुविधा प्राप्त हो गई है।
पांचों राष्ट्रपतियों और हमारे प्रधानमंत्री के बीच संवाद हुआ, उसका एक मुख्य मुद्दा यही था कि अफगान-संकट से कैसे निपटा जाए? मोदी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान और इन पांचों देशों की यात्रा की है।
अफगानिस्तान में यदि तालिबानी कब्जा नहीं हुआ होता तो ये यात्राएं भी शायद इतिहास के हाशिए में चली जातीं लेकिन अब इन पांचों मध्य एशियाई राष्ट्रों ने अफगान-स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। यदि मोदी ने मध्य एशिया को भारत के ‘पड़ौसी-जैसा’ ही कहा तो इन राष्ट्रों के नेताओं ने अफगान-संकट को रेखांकित करते हुए पारस्परिक सुरक्षा और सहयोग को बेहद जरुरी बताया। दोनों पक्षों ने भारत और मध्य एशिया के बीच ‘‘सभ्यता, संस्कृति, व्यापार और जनता से जनता के संबंधों’’ की परंपरा और अभिवृद्धि पर काफी जोर दिया।